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Lalitpur News: चंद्रप्रभ और पारसनाथ का मनाया गया तप कल्याणक
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धार्मिक कार्यक्रम में मौजूद ग्रामीण
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पंचकल्याणक के लिए पात्रों का हुआ चयन
पवा -तालबेहट। बुंदेलखंड के प्रसिद्ध जैन सिद्ध क्षेत्र पवागिरि में सोमवार को आचार्य विद्यासागर के परम प्रभावक बुंदेली शिष्य मुनि सुव्रत सागर के सानिध्य में मूलनायक पारसनाथ स्वामी एवं चौबीसी के मूलनायक चंद्रप्रभ भगवान का जन्म-तप कल्याणक मनाया गया। इसमें भारी संख्या में स्वाजातीय लोगों ने भाग लिया।
सुबह अभिषेक शांतिधारा पूजन विधान की क्रियाओं के बाद चमत्कारी बाबा मूलनायक पारसनाथ स्वामी का मस्तिकाभिषेक शांतिधारा पूजन विधान किया गया। दोपहर में जनवरी में होने वाले मज्जिनेद्र जिनबिंब प्रतिष्ठा एवं पंचकल्याणक महामहोत्सव के आयोजन के लिए प्रतिष्ठाचार्य संजय भैया के निर्देशन में पात्र चयन किया गया। इसमें चंद्रप्रभा जयकुमार ने माता-पिता, शशि उत्तम चंद्र को सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य मिला।
सायं काल की बेला में तीस चौबीसी मंदिर के मूलनायक भगवान शांतिनाथ, भगवान कुंथुनाथ एवं भगवान अरनाथ की विशाल खड़गासन मूर्ति विराजमान की गई। धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि सुव्रत सागर ने कहा कि पंचकल्याणक पाषाण को भगवान बनाने की आध्यात्मिक प्रक्रिया है। इस धार्मिक अनुष्ठान करने वाले पात्रों को असीम पुण्य का संचय होता हैं। जिन शासन के रथ को आगे बढ़ाने के लिए साधु संतों को श्रावकों के सहयोग की आवश्यकता होती हैं। देवपत-खेवपत द्वारा निर्मित बुंदेलखंड के सात भौंयरों में से एक पवागिरि भौंयरा जो बहुत ही अतिशयकारी है, जिसके दर्शन से सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मौके पर भारी संख्या में आसपास के क्षेत्रों से आए जैन समाज के लोग मौजूद रहे। संचालन ज्ञानचंद्र और जयकुमार ने संयुक्त रूप से किया। अंत में विशाल ने आभार व्यक्त किया।
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पवा -तालबेहट। बुंदेलखंड के प्रसिद्ध जैन सिद्ध क्षेत्र पवागिरि में सोमवार को आचार्य विद्यासागर के परम प्रभावक बुंदेली शिष्य मुनि सुव्रत सागर के सानिध्य में मूलनायक पारसनाथ स्वामी एवं चौबीसी के मूलनायक चंद्रप्रभ भगवान का जन्म-तप कल्याणक मनाया गया। इसमें भारी संख्या में स्वाजातीय लोगों ने भाग लिया।
सुबह अभिषेक शांतिधारा पूजन विधान की क्रियाओं के बाद चमत्कारी बाबा मूलनायक पारसनाथ स्वामी का मस्तिकाभिषेक शांतिधारा पूजन विधान किया गया। दोपहर में जनवरी में होने वाले मज्जिनेद्र जिनबिंब प्रतिष्ठा एवं पंचकल्याणक महामहोत्सव के आयोजन के लिए प्रतिष्ठाचार्य संजय भैया के निर्देशन में पात्र चयन किया गया। इसमें चंद्रप्रभा जयकुमार ने माता-पिता, शशि उत्तम चंद्र को सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य मिला।
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सायं काल की बेला में तीस चौबीसी मंदिर के मूलनायक भगवान शांतिनाथ, भगवान कुंथुनाथ एवं भगवान अरनाथ की विशाल खड़गासन मूर्ति विराजमान की गई। धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि सुव्रत सागर ने कहा कि पंचकल्याणक पाषाण को भगवान बनाने की आध्यात्मिक प्रक्रिया है। इस धार्मिक अनुष्ठान करने वाले पात्रों को असीम पुण्य का संचय होता हैं। जिन शासन के रथ को आगे बढ़ाने के लिए साधु संतों को श्रावकों के सहयोग की आवश्यकता होती हैं। देवपत-खेवपत द्वारा निर्मित बुंदेलखंड के सात भौंयरों में से एक पवागिरि भौंयरा जो बहुत ही अतिशयकारी है, जिसके दर्शन से सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मौके पर भारी संख्या में आसपास के क्षेत्रों से आए जैन समाज के लोग मौजूद रहे। संचालन ज्ञानचंद्र और जयकुमार ने संयुक्त रूप से किया। अंत में विशाल ने आभार व्यक्त किया।
