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Mirzapur News: लालगंज की बेलन घाटी में मिले लाखों वर्ष पुरानी मानव सभ्यता के प्रमाण
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- इलाहाबाद विवि की शोध से हुई है भारत की प्राचीनतम संस्कृतियों में शामिल होने की पुष्टि
संवाद न्यूज एजेंसी
लालगंज। तहसील क्षेत्र की बेलन घाटी में लाखों वर्ष पुरानी मानव उपस्थिति और संस्कृति के ठोस प्रमाण मिलने से देश के प्राचीन इतिहास को नई दिशा मिली है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के शोध में सामने आया है कि लालगंज से लेकर प्रयागराज के कोरांव और मेजा तक फैली बेलन घाटी भारत की प्राचीनतम मानव सभ्यताओं में से एक रही है।
शोध के अनुसार वर्ष 1960 से लगातार चल रहे उत्खनन कार्य में खरीहट, चोपनी मांडव, कोरांव सहित कई स्थलों से मध्यपाषाण काल की मानव बस्तियों, झोपड़ियों के अवशेष, पत्थर के औजार, मिट्टी के बर्तन और चूड़ियों के प्रमाण मिले हैं। साथ ही जंगली अनाज और उगाए गए अन्न के उपयोग के साक्ष्य आदिम मानव जीवन को स्पष्ट करते हैं। इसी क्षेत्र के लोहंडा नाले के पास माटी देवी की हड्डी की बनी मूर्ति प्राप्त हुई। जिसे विश्व की प्राचीनतम मूर्तियों में गिना जाता है। कोलडिहवा से चावल की खेती तथा महगड़ा से ग्राम्य जीवन और पशुपालन के प्रमाण भी सामने आए हैं। इलाहाबाद विवि के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के डॉ. अमित सिंह ने बताया कि यह शोध भारतीय इतिहास की स्थापित समय-रेखा पर पुनर्विचार की जरूरत को रेखांकित करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी ऐतिहासिक महत्ता के बावजूद बेलन घाटी को अब तक राष्ट्रीय पहचान और संरक्षण नहीं मिल सका है। पुरातत्वविद प्रदेश और केंद्र सरकार से बेलन घाटी को संरक्षित पुरातात्विक क्षेत्र घोषित कर वैज्ञानिक उत्खनन और शोध को बढ़ावा देने की जरूरत बताई चुके हैं। उनका कहना है कि इसका संरक्षण शिक्षा, शोध और सांस्कृतिक पर्यटन की नई संभावनाएं खोल सकता है।
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लालगंज। तहसील क्षेत्र की बेलन घाटी में लाखों वर्ष पुरानी मानव उपस्थिति और संस्कृति के ठोस प्रमाण मिलने से देश के प्राचीन इतिहास को नई दिशा मिली है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के शोध में सामने आया है कि लालगंज से लेकर प्रयागराज के कोरांव और मेजा तक फैली बेलन घाटी भारत की प्राचीनतम मानव सभ्यताओं में से एक रही है।
शोध के अनुसार वर्ष 1960 से लगातार चल रहे उत्खनन कार्य में खरीहट, चोपनी मांडव, कोरांव सहित कई स्थलों से मध्यपाषाण काल की मानव बस्तियों, झोपड़ियों के अवशेष, पत्थर के औजार, मिट्टी के बर्तन और चूड़ियों के प्रमाण मिले हैं। साथ ही जंगली अनाज और उगाए गए अन्न के उपयोग के साक्ष्य आदिम मानव जीवन को स्पष्ट करते हैं। इसी क्षेत्र के लोहंडा नाले के पास माटी देवी की हड्डी की बनी मूर्ति प्राप्त हुई। जिसे विश्व की प्राचीनतम मूर्तियों में गिना जाता है। कोलडिहवा से चावल की खेती तथा महगड़ा से ग्राम्य जीवन और पशुपालन के प्रमाण भी सामने आए हैं। इलाहाबाद विवि के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के डॉ. अमित सिंह ने बताया कि यह शोध भारतीय इतिहास की स्थापित समय-रेखा पर पुनर्विचार की जरूरत को रेखांकित करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी ऐतिहासिक महत्ता के बावजूद बेलन घाटी को अब तक राष्ट्रीय पहचान और संरक्षण नहीं मिल सका है। पुरातत्वविद प्रदेश और केंद्र सरकार से बेलन घाटी को संरक्षित पुरातात्विक क्षेत्र घोषित कर वैज्ञानिक उत्खनन और शोध को बढ़ावा देने की जरूरत बताई चुके हैं। उनका कहना है कि इसका संरक्षण शिक्षा, शोध और सांस्कृतिक पर्यटन की नई संभावनाएं खोल सकता है।
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