महामना की 164वीं जयंती: पाकिस्तान के डर से बीएचयू से 'हिंदू' शब्द हटाना गलत, पंजाब के सांसद ने किया था विरोध
Varanasi News: 60 साल पहले संसद में शिक्षा मंत्री के बीएचयू से 'हिंदू' शब्द हटाने के प्रस्ताव पर पंजाब के सांसद ने विरोध किया था। कहा था कि पाकिस्तान के डर से बीएचयू से 'हिंदू' शब्द हटाना गलत है।
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बीएचयू में बृहस्पतिवार को महामना पं. मदन मोहन मालवीय की 164वीं जयंती मनाई जाएगी। महामना और महाराजा प्रभु नारायण सिंह ने इस विश्वविद्यालय में हिंदू नाम का प्रस्ताव 120 साल पहले ही दे दिया था। बीएचयू के 110 साल के इतिहास में हिंदू शब्द सबसे ज्यादा चर्चित रहा। 60 साल पहले, 1965 में जब शिक्षा मंत्री एमसी छागला ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय 1964 विधेयक संसद में रखा, तब उन्होंने हिंदू नाम हटाकर काशी विश्वविद्यालय के नाम का प्रस्ताव दिया।
इस पर संसद से लेकर सड़क तक विरोध का बिगुल बज गया। सदन में ही चर्चा के दौरान पंजाब के जगत नारायण ने कहा विरोध कर दिया था। उन्होंने कहा, मैं यह समझता हूं कि पाकिस्तान के डर से विश्वविद्यालय के नाम से हिंदू शब्द हटा देना बहुत गलत बात है। इसे कम्युनल नहीं समझना होगा। जगत नारायण 30 साल तक कांग्रेस के सदस्य भी थे। वहीं, संसद में मध्य प्रदेश के विमल कुमार चौरड़िया ने भी इसका विरोध किया था।
कहा था कि मैं नाम बदलने के पीछे की भावना को समर्थन नहीं देता। यदि एएमयू में मुस्लिम शब्द रह सकता है तो बीएचयू में हिंदू शब्द से भय खाने की जरूरत नहीं है। हिंदू शब्द से इतना एलर्जिक होना ठीक नहीं। नेता आईके गुजराल ने कहा था कि 50 वर्षों से बीएचयू ने अपने लिए दुनिया में बड़ा नाम किया है। उसकी हिंदुस्तान में भी इज्जत है। नाम सिर्फ इसलिए बदल देना कि उसमें किसी का हुलिया नजर आए तो यह ठीक नहीं होगा।
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हिंदू शब्द वापस लेने के साथ ही बजा अंग्रेजी हटाओ का बिगुल
बीएचयू के पूर्व विशेष कार्याधिकारी डॉ. विश्वनाथ पांडेय ने बताया कि विश्वविद्यालय से हिंदू नाम हटाने का विरोध छात्रनेताओं ने भी किया। सड़क पर मोर्चा बीएचयू के देवव्रत मजूमदार और अन्य छात्र नेताओं ने संभाल रखा था। हिंदू शब्द हटाने का विरोध होने के साथ ही अंग्रेजी हटाओ की भी वकालत की गई। इसे लेकर बीएचयू में बहुत बड़ा आंदोलन किया गया। तब जाकर संसद से इस विधेयक को वापस लिया गया। संस्थापक महामना पं. मदन मोहन मालवीय और काशीराज प्रभु नारायण सिंह ने 1905 में टाउनहॉल में हुई बैठक के दौरान काशी हिंदू विश्वविद्यालय का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। महामना को मैकाले की वह बात भी काफी चोट पहुंचाती थी कि भारत के पास एक आलमारी से ज्यादा साहित्य नहीं है।
