Ropeway Varanasi: 1302 क्विंटल वजन के साथ चलेंगे रोपवे के 148 गंडोला, मेट्रो की तरह ऑटोमैटिक बंद होंगे दरवाजे
Varanasi News: वाराणसी में 1302 क्विंटल वजन के साथ रोपवे के 148 गंडोला चलेंगे। रोपवे का कार्य तेजी से चल रहा है। इसका परीक्षण लगातार किया जा रहा है।

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रोपवे के 148 गंडोला 1302.4 क्विंटल वजन के साथ कैंट से रथयात्रा होते हुए गोदौलिया तक चलेंगे। नए साल से शुरू होने जा रहे इस रोपवे प्रोजेक्ट की सुरक्षा को विश्वस्तरीय बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसी कारण टेस्टिंग के दौरान प्रत्येक गंडोला में औसतन 10 यात्रियों का वजन (लगभग 800 किलो) और 10% अतिरिक्त वजन मिलाकर कुल 880 किलो को ध्यान में रखकर परीक्षण किया जा रहा है।

यूरोपीय मानकों के अनुसार सुरक्षा उपकरण लगाए जा रहे हैं। आपातकालीन स्थितियों को ध्यान में रखते हुए आधुनिक सुरक्षा संरचना विकसित की गई है। जैसे मेट्रो के दरवाज़े अंदर से नहीं खुलते, वैसे ही रोपवे के गंडोला के दरवाजे भी अंदर से नहीं खुलेंगे और ऑटोमेटिक तरीके से बंद हो जाएंगे। वेंटिलेशन की समुचित व्यवस्था की गई है ताकि बिजली बाधित होने पर भी यात्रियों को असुविधा न हो।
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60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चलने या मौसम बिगड़ने की स्थिति में भी रोपवे पर असर नहीं पड़ेगा। हालांकि, हवा का दबाव अधिक होने पर इसे कुछ समय के लिए रोका जा सकता है। रोपवे कॉरिडोर के दोनों ओर 8 मीटर के दायरे में भवनों की अधिकतम ऊंचाई 10 मीटर निर्धारित की गई है। कुल 16 मीटर चौड़े इस क्षेत्र में इससे ऊंचे निर्माण प्रतिबंधित होंगे। निगरानी के लिए ज़ोनल अधिकारियों की नियुक्ति की जा रही है।
एशिया का पहला अर्बन रोपवे प्रोजेक्ट
यह एशिया का पहला अर्बन ट्रांसपोर्ट रोपवे प्रोजेक्ट है, जिसे काशी में शुरू किया गया है। कुल 3.8 किलोमीटर लंबे इस मार्ग पर कैंट स्टेशन से गोदौलिया तक यात्रा होगी। बीच में काशी विद्यापीठ और रथयात्रा इंटरमीडिएट स्टेशन होंगे, जबकि गिरजाघर एक तकनीकी स्टेशन होगा। इस प्रकार कुल 5 स्टेशन और 29 टावर बनाए जाएंगे।
परियोजना की कुल लागत 815.58 करोड़ रुपये है, जिसमें 15 वर्षों का ऑपरेशन और मेंटेनेंस भी शामिल है।इंजीनियरों के अनुसार, लोड टेस्टिंग के ज़रिये सुरक्षा की गहन जांच की जाती है। इस प्रक्रिया में यदि निर्माण कार्य में कोई कमी पाई जाती है, तो उसे तत्काल ठीक किया जाता है। यह टेस्टिंग एक बार नहीं बल्कि कम से कम चार बार दोहराई जाती है, ताकि परियोजना को जनता के लिए पूरी तरह सुरक्षित रूप में शुरू किया जा सके। इससे भविष्य में किसी प्रकार की तकनीकी दिक्कतें नहीं आतीं।