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घूंघट की ओट से निकला ढाणी बीरन, गूंजी बदलाव की कविता
भिवानी। बेटी तो वह है जो हमारे घर पर आती है, हमारे घर को बढ़ाती है, हमने बेटी जन्मी है वह अगलों का घर बढ़ाएगी। आज से हम यह प्रण लेते हैं कि किसी बहू-बेटी को यह नहीं कहेंगे कि घूंघट क्यों उतार रखा है...अगर कोई इसका विरोध करेगा तो उसके खिलाफ पंचायत कर उचित निर्णय लिया जाएगा। ढाणी बीरन गांव की चौपाल पर रात के करीब आठ बजे बुजुर्ग धर्मपाल जब यह कहते हैं तो बाकी लोग दोनों हाथ उठाकर उनका समर्थन करते हैं। साथ ही खड़ीं गांव की सरपंच कविता देवी घूंघट की ओट से बाहर आने की पहल करती हैं...और इस तरह हरियाणा का एक गांव पर्दा प्रथा से बेटियों-बहुओं को मुक्ति दिलाता है।
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