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हिसार: हरियाणवी संस्कृति को फिर से जीवन दे रहीं महिलाएं, कांता हुड्डा के नेतृत्व में पनप रहा परंपराओं का स्वाभिमान
आधुनिकता की तेज रफ्तार के बीच जहां पुरानी लोक परंपराएं धूमिल होने लगी थीं, वहीं शहर की महिलाएं एक बार फिर अपनी जड़ों की ओर लौट रही हैं। इसके पीछे बड़ी प्रेरणा बनी हैं डिफेंस कॉलोनी निवासी कांता हुड्डा, जो पिछले करीब 15 वर्षों से हरियाणवी रिवाज समिति का नेतृत्व करते हुए संस्कृति को पुनर्जीवित करने का काम कर रही हैं।
कांता हुड्डा बताती हैं कि इस सफर की शुरुआत बेहद साधारण तरीके से हुई। “मैंने ये संगठन पार्क से शुरू किया था। फागण के समय महिलाएं भजन-गीत गा रही थीं, साथ बैठकर मुझे कुछ अलग महसूस हुआ। उनके पांव थिरकते और गीत गाते देखा। उस दिन मुझे लगा कि यह सिर्फ गीत नहीं, हमारी धरोहर है, जिसे दोबारा जीवंत करना चाहिए।”कांता ने महिलाओं से कहा कि यदि वह दोबारा से हरियाणवी नृत्य-गीतों की परंपरा शुरू करें, तो क्या वे सभी उनका साथ देंगी। सभी ने उत्साह से हामी भरी। शुरुआत में 8–10 महिलाएं जुड़ीं, फिर हर तीज-त्योहार के पहले 15–20 दिन की तैयारी से माहौल जीवन्त होने लगा। धीरे–धीरे और महिलाएं जुड़ती गईं और आज समिति में 35–40 सक्रिय सदस्य हैं। त्योहारों पर सैकड़ों महिलाओं की भागीदारी इस संगठन की लोकप्रियता बता देती है।
त्योहारों की रौनक और बच्चों में बढ़ती जिज्ञासा
कांता बताती हैं कि उनका उद्देश्य सिर्फ महिलाओं को जोड़ना ही नहीं, बच्चों को भी संस्कृति से परिचित कराना है। एक दिन मैंने घर में कहा कि तीज पर ‘पींघ बढ़ाते’ हैं, तो मेरा बेटा पूछने लगा कि ‘पींघ बढ़ाना क्या होता है?’ उस समय मुझे महसूस हुआ कि हमारी नई पीढ़ी को अपनी परंपराओं का पता ही नहीं। उसी दिन से मैंने तीज-त्यौहार और भी उत्साह से मनाने शुरू किए, ताकि बच्चे भी इसकी असलियत जान सकें।”उन्होंने बताया कि आज छोटे बच्चे भी इन कार्यक्रमों में शामिल होकर हरियाणवी खेल, झूले और पारंपरिक रस्मों को सीख रहे हैं।
नई महिलाओं की जुड़ाव की कहानी
समिति की सक्रिय सदस्य पूजा बताती हैं कि वे एक बार तीज कार्यक्रम देखने आई थीं। बहुत सारी महिलाएं थीं, शानदार नृत्य हो रहे थे। मैं भी नृत्य जानती थी, बस मौका चाहती थी। जब पता चला कि यह कार्यक्रम कहां और कैसे होता है, तो मैं कांता दीदी से मिली और वहीं से मेरी नई शुरुआत हो गई। अब मैं खुलकर अपनी कला दिखा रही हूं और अपनी संस्कृति को आगे बढ़ा रही हूं।
हरियाणवी पहनावे को मिला नया जीवन
समिति ने पारंपरिक परिधानों को भी नई पहचान दी है। आज ग्रुप में चुंदड़ी बनाने वाली, दामन तैयार करने वाली और कुर्ता सिलने वाली महिलाएं खुद रोजगार भी पा रही हैं। पूजा कहती हैं कि मैंने जब हरियाणवी चुंदड़ी देखी तो मन में आया कि मैं भी बनाऊं। आज मैं घर पर चुंदड़ी तैयार करती हूं और हमारे ग्रुप में 8–10 तरह की हरियाणवी ड्रेस दोबारा प्रचलन में आ गई हैं।
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