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Digvijaya Singh on RSS: Why Congress weakens in elections, Digvijaya Singh makes a big claim
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Digvijaya Singh on RSS: चुनाव में क्यों कमजोर पड़ जाती है कांग्रेस, दिग्विजय सिंह का बड़ा दावा
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Sun, 28 Dec 2025 09:43 PM IST
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी की एक पुरानी तस्वीर… और उस तस्वीर से उठा सियासी तूफान। आख़िर दिग्विजय सिंह ने ये फोटो क्यों शेयर की? क्या इसके जरिए कांग्रेस RSS पर हमला कर रही थी या बीजेपी को कोई नया मुद्दा मिल गया? दिग्विजय सिंह ने खुद को RSS की विचारधारा का विरोधी बताया, लेकिन उसी RSS की संगठनात्मक ताकत की तारीफ भी कर दी, ऐसे में इसे विरोधाभास समझा जाए या कुछ और? और जब RSS को लेकर सवाल उठे, तो कांग्रेस की अपनी संगठनात्मक कमजोरी पर दिग्विजय सिंह ने क्या स्वीकार किया?
कांग्रेस अपने आंदोलन को वोटों में बदलने में चूक जाती है? और जब इतने वरिष्ठ नेता की बातें बार-बार सामने आती हैं, तो क्या कांग्रेस नेतृत्व तक उनकी आवाज सच में पहुंच रही है? मोदी–आडवाणी की तस्वीर से शुरू हुआ विवाद, RSS बनाम कांग्रेस की सोच, और विपक्ष के भीतर उठते सवाल- इस पूरी सियासी बहस का सच और दिग्विजय सिंह की सफाई, चलिए इस वीडियो में खोलते है इस पूरी कहानी की एक-एक परतें और जानते है हर सवाल के जवाब।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी की एक पुरानी तस्वीर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किए जाने के बाद सियासत गरमा गई है। बीजेपी ने इस फोटो को लेकर कांग्रेस और खासतौर पर राहुल गांधी पर निशाना साधा, वहीं अब खुद दिग्विजय सिंह ने इस पूरे विवाद पर खुलकर सफाई दी है।
न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में दिग्विजय सिंह ने स्पष्ट किया कि वह आरएसएस की विचारधारा के शुरू से विरोधी रहे हैं और आज भी उसी रुख पर कायम हैं। उन्होंने कहा, “मैं लगातार यही कहता आया हूं कि मैं आरएसएस की विचारधारा का विरोध करता हूं। वे न तो संविधान का सम्मान करते हैं और न ही देश के कानूनों का। आरएसएस एक गैर-पंजीकृत संगठन है।”
हालांकि, इसी के साथ दिग्विजय सिंह ने यह भी जोड़ा कि वह आरएसएस की संगठनात्मक क्षमता की प्रशंसा करते हैं। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा संगठन है जो पंजीकृत भी नहीं है, इसके बावजूद इतना शक्तिशाली हो गया है कि प्रधानमंत्री खुद लाल किले से इसे दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन बताते हैं। दिग्विजय सिंह ने सवालिया लहजे में कहा, “अगर यह गैर-सरकारी संगठन है तो इसके नियम-कानून कहां हैं? फिर भी, मैं उनकी संगठनात्मक क्षमता की सराहना करता हूं।”
दरअसल, दिग्विजय सिंह द्वारा शेयर की गई पुरानी तस्वीर को बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस की कथनी और करनी में विरोधाभास बताते हुए राहुल गांधी से जोड़ दिया। बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस आरएसएस और बीजेपी की आलोचना तो करती है, लेकिन अंदरखाने उनकी राजनीति से प्रेरणा भी लेती है। इसी हमले के जवाब में दिग्विजय सिंह ने अपने बयान के जरिए यह साफ करने की कोशिश की है कि विचारधारा और संगठनात्मक दक्षता, दोनों अलग-अलग बातें हैं।
इसी बातचीत में दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस पार्टी की संगठनात्मक स्थिति पर भी बेबाक टिप्पणी की। जब उनसे पूछा गया कि कांग्रेस की संगठनात्मक क्षमता आरएसएस या बीजेपी के मुकाबले कहां खड़ी है, तो उन्होंने कहा कि हर संगठन में सुधार की गुंजाइश होती है और कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं इतना ही कह सकता हूं कि कांग्रेस में सुधार की जरूरत है। कांग्रेस मूल रूप से एक मूवमेंट यानी आंदोलन की पार्टी है और रहनी भी चाहिए।”
दिग्विजय सिंह ने आगे स्वीकार किया कि कांग्रेस किसी मुद्दे को आंदोलन का रूप देने में तो माहिर है, लेकिन उस आंदोलन को चुनावी जीत में तब्दील करने में अक्सर चूक जाती है। उन्होंने कहा, “हम किसी भी मुद्दे को आंदोलन बना लेते हैं, उस पर लोगों को जोड़ लेते हैं, प्रदर्शन होते हैं, लेकिन उस मूवमेंट को वोटों में बदलने में हम कमजोर पड़ जाते हैं। यही हमारी सबसे बड़ी चुनौती है।”
जब उनसे यह सवाल किया गया कि वे खुद कांग्रेस के इतने वरिष्ठ नेता हैं, कई राज्यों के प्रभारी रह चुके हैं, फिर भी उनकी बातें पार्टी नेतृत्व तक क्यों नहीं पहुंच पातीं, तो दिग्विजय सिंह ने हल्के अंदाज में जवाब दिया। उन्होंने कहा, “आप मुझसे पूछ रहे हैं, तो बात क्यों नहीं पहुंचेगी।” इस जवाब को राजनीतिक हलकों में कांग्रेस के अंदरूनी संवाद और फैसले लेने की प्रक्रिया पर एक तंज के तौर पर भी देखा जा रहा है।
कुल मिलाकर, पीएम मोदी और लालकृष्ण आडवाणी की तस्वीर से शुरू हुआ यह विवाद अब आरएसएस की भूमिका, कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी और विपक्ष की रणनीति तक पहुंच गया है। दिग्विजय सिंह के बयान ने जहां बीजेपी को पलटवार का मौका दिया है, वहीं कांग्रेस के भीतर भी आत्ममंथन की जरूरत को एक बार फिर सामने ला दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सियासी बहस सिर्फ बयानबाजी तक सीमित रहती है या कांग्रेस अपनी संगठनात्मक संरचना को लेकर कोई ठोस कदम उठाती है।
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