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Has RJD changed its 'Muslim-Yadav' equation to make a dent in Nitish's vote bank?
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नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए राजद ने बदल दी अपनी ‘मुस्लिम-यादव’ समीकरण?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Wed, 22 Oct 2025 01:17 PM IST
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने इस बार टिकट वितरण में बड़ा बदलाव करते हुए यादव बिरादरी की हिस्सेदारी घटाई है, मगर उसके सियासी समीकरण की रीढ़ अब भी पुराना ‘मुस्लिम-यादव’ (माई) गठजोड़ ही है। 2025 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपने कुल उम्मीदवारों में से लगभग आधे टिकट इन्हीं दो समुदायों को दिए हैं। बदलाव के नाम पर पार्टी ने 36 विधायकों के टिकट काटे हैं और महिलाओं व कुशवाहा बिरादरी को तरजीह देकर जदयू के ‘लव-कुश’ समीकरण में सेंध लगाने की रणनीति अपनाई है।
वर्ष 2020 में राजद ने 144 सीटों पर 58 यादव और 17 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। इस बार यादवों की संख्या घटाकर 51 और मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाकर 19 कर दी गई है। कुल मिलाकर यह संख्या 70 तक पहुंचती है, जो पार्टी के कुल टिकटों का लगभग 49 फीसदी हिस्सा है।
राजद का यह फैसला दिखाता है कि पार्टी ने यादवों की संख्या कम कर भले जातीय प्रतिनिधित्व में विविधता लाने की कोशिश की हो, मगर उसकी रीढ़ अब भी वही परंपरागत ‘माई फैक्टर’ है।
विपक्षी महागठबंधन में शामिल अन्य दलों ने भी इसी समीकरण को तवज्जो दी है। महागठबंधन ने कुल 243 सीटों में 252 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें मुस्लिम और यादव उम्मीदवारों की संख्या 95 है। दिलचस्प बात यह है कि इनमें भाकपा माले के 20 और भाकपा के 9 उम्मीदवारों में से 8 यादव और 2 मुस्लिम हैं।
राजद ने इस बार अपने 77 विधायकों में से 36 के टिकट काट दिए हैं। इनमें बगावत करने वाले 7 विधायक, एआईएमआईएम से आए 4 में से 3 विधायक और पार्टी से निष्कासित तेजप्रताप यादव का नाम भी शामिल है।
इस बड़े बदलाव को पार्टी की एक सियासी रणनीति माना जा रहा है, ताकि स्थानीय स्तर पर विधायकों के खिलाफ पनपी नाराजगी को खत्म किया जा सके और एंटी-इन्कम्बेंसी का असर कम किया जा सके।
राजद के भीतर यह संदेश भी दिया गया है कि टिकट अब प्रदर्शन और जनता के मूड के हिसाब से मिलेगा, वफादारी या पारिवारिक समीकरण से नहीं।
राजद ने इस बार 24 महिला उम्मीदवारों को टिकट देकर नीतीश कुमार के महिला वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है। जदयू ने 13 महिलाओं को टिकट दिया है। इसी तरह राजद ने पहली बार 11 कुशवाहा उम्मीदवारों को मौका दिया है, जबकि जदयू ने 13 सीटों पर कुशवाहा बिरादरी को उम्मीदवार बनाया है। यह रणनीति स्पष्ट रूप से लव-कुश (लव: कुशवाहा, कुश: कुंवर या भूमिहार) समीकरण को तोड़ने की दिशा में है। तेजस्वी यादव की रणनीति इस बार सिर्फ यादव-मुस्लिम पर निर्भर नहीं बल्कि ‘महिला+कुशवाहा’ जोड़ के जरिए नया वोट बैंक बनाने की कोशिश में दिख रही है।
महागठबंधन का हिस्सा बने वामपंथी दलों ने इस बार महिला उम्मीदवारों को लगभग न के बराबर मौका दिया है। तीन वाम दलों की 42 सीटों में सिर्फ एक महिला उम्मीदवार है। भाकपा माले ने दीघा सीट से दिव्या गौतम को मैदान में उतारा है, जबकि सीपीआई और माकपा ने एक भी महिला को टिकट नहीं दिया।
वाम दलों के कुल उम्मीदवारों में 8 यादव और 2 मुस्लिम हैं, जिससे साफ है कि उन्होंने भी जातीय संतुलन साधने के बजाय माई समीकरण को महत्व दिया है।
इस बार के चुनाव में एक तरफ राजग ने अगड़े वर्गों को प्राथमिकता दी है तो दूसरी ओर महागठबंधन का जोर माई समीकरण पर है। आंकड़ों के मुताबिक, राजग के चार दलों ने 85 अगड़े उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि विपक्षी महागठबंधन में माई समीकरण से जुड़े 95 प्रत्याशी मैदान में हैं।
महागठबंधन ने अगड़ा वर्ग से 40 उम्मीदवारों को टिकट दिया है, वहीं राजग की ओर से माई समुदाय से जुड़े महज 21 प्रत्याशी हैं। यह मुकाबला अब केवल सियासी दलों के बीच नहीं बल्कि दो सामाजिक ध्रुवों ‘अगड़ा बनाम माई’ की लड़ाई बनता जा रहा है।
कुल मिलाकर राजद ने इस बार टिकट वितरण में बदलाव की झलक जरूर दी है पुराने चेहरों को हटाकर नए को मौका, महिलाओं की बढ़ी हिस्सेदारी और कुशवाहा पर दांव। लेकिन इसके बावजूद पार्टी का असली भरोसा अब भी उस समीकरण पर टिका है जिसने लालू-राबड़ी और अब तेजस्वी की राजनीति को आधार दिया ‘माई’। तेजस्वी के लिए चुनौती यह होगी कि क्या यह पारंपरिक वोट बैंक फिर से उसी मजबूती से एकजुट हो पाएगा, जैसा 2015 या 2020 में दिखा था। 2025 का चुनाव तय करेगा कि राजद का यह ‘संशोधित माई मॉडल’ बिहार की राजनीति में नई दिशा लाता है या पुराने ढांचे में ही सिमट जाता है।
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