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Raj Thackeray and Uddhav Thackeray did not get along, refused to form an alliance!
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राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच नहीं बनी बात, गठबंधन से किया इंकार!
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Wed, 16 Jul 2025 05:54 PM IST
राजनीतिक गलियारों में उस समय हलचल मच गई जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए स्पष्ट किया कि उन्होंने शिवसेना (यूबीटी) के साथ किसी भी तरह के गठबंधन की चर्चा नहीं की है। उन्होंने मीडिया के एक वर्ग पर आरोप लगाया कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई।
पार्टी के इगतपुरी शिविर के बाद से जिस तरह ठाकरे भाइयों के पुनर्मिलन और चुनावी गठबंधन की अटकलें तेज़ हुई थीं, उन्हें राज ठाकरे ने ठंडा कर दिया है।
राज ठाकरे ने ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर एक लंबा पोस्ट लिखकर मीडिया के एक हिस्से की आलोचना की। उन्होंने लिखा कि यदि उन्हें कोई राजनीतिक बयान देना होता, तो वे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के बात रखते। उन्होंने बताया कि 14 और 15 जुलाई को नासिक के इगतपुरी में मनसे के चुनिंदा पदाधिकारियों की बैठक थी, जहां पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत हुई थी।
राज ने बताया कि इस बातचीत में पत्रकारों ने उनसे पांच जुलाई को मुंबई में हुई ‘विजय रैली’ को लेकर सवाल किया, तो उन्होंने इसे मराठी अस्मिता की जीत का जश्न बताया, न कि कोई राजनीतिक गठजोड़।
लेकिन मीडिया में उनके हवाले से यह चलाया गया कि “गठबंधन पर फैसला नगर निकाय चुनाव से पहले लिया जाएगा”, जो कि उन्होंने कभी नहीं कहा।
राज ठाकरे ने अपने पोस्ट में लिखा कि वे 1984 से पत्रकारों के बीच हैं, पत्रकारिता को समझते हैं। लेकिन कुछ पत्रकारों का वर्तमान व्यवहार उनके पेशे के मानदंडों के अनुरूप नहीं है। उन्होंने अनौपचारिक बातचीत को अनौपचारिक ही रहने देने की अपील की।
पांच जुलाई को जब राज और उद्धव ठाकरे दो दशक बाद एक साथ मंच पर दिखे, तो इसे सिर्फ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम से अधिक माना गया। इस मंच की पृष्ठभूमि महाराष्ट्र सरकार के हिंदी थोपने वाले आदेशों के विरोध में थी।
राज ठाकरे ने इस मंच पर भी यही कहा था कि यह कार्यक्रम मराठी मानुष की विजय का प्रतीक है, न कि कोई राजनीतिक संकेत।
उद्धव ठाकरे ने हालांकि मंच से कहा था कि “हम साथ आए हैं और साथ रहेंगे”, जिससे सियासी चर्चाओं को और हवा मिली। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिए कि आने वाले बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव में वह मनसे के साथ गठबंधन के इच्छुक हैं।
2005 में शिवसेना के आंतरिक विवादों और नेतृत्व को लेकर मतभेदों के कारण राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ दी थी और अपनी खुद की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बनाई थी।
राज तब से खुद को ‘भूमिपुत्र’ यानी मराठी हितों के रक्षक के रूप में स्थापित करने में लगे हैं।
तब से अब तक, दोनों ठाकरे भाइयों की पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ती रही हैं, और मनसे ने अपने अलग राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ी है।
लेकिन बीते कुछ वर्षों में मनसे का जनाधार कमजोर हुआ है, वहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) भी शिवसेना के विभाजन और चुनाव चिन्ह विवाद के बाद लगातार संघर्ष कर रही है।
ऐसे में दोनों दलों के मराठी वोट बैंक को बचाने के लिए सामूहिक रणनीति की बात होने लगी थी।
महाराष्ट्र की राजनीति में BMC चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हैं। शिवसेना लंबे समय तक मुंबई महानगरपालिका की सत्ता पर काबिज रही है, लेकिन अब भाजपा उसे चुनौती दे रही है।
मनसे और शिवसेना (यूबीटी) अगर साथ आते हैं तो वे मराठी मतदाताओं को फिर से एकजुट कर सकते हैं, और भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
लेकिन राज ठाकरे की स्पष्ट प्रतिक्रिया और गठबंधन से इनकार ने संकेत दिया है कि यह राह इतनी आसान नहीं है।
राज ठाकरे के बयान ने जहां मीडिया की भूमिका पर प्रश्न उठाया, वहीं मराठी एकता की उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है। उद्धव ठाकरे अगर गठबंधन के पक्ष में हैं, तो राज ठाकरे फिलहाल सावधानी बरतने और आत्मनिर्भरता की नीति पर चलते दिख रहे हैं।
हालांकि, नगर निकाय चुनावों की घोषणा के बाद मनसे क्या रुख अपनाती है, इस पर नजर बनी रहेगी।
पांच जुलाई की रैली के बाद जिस तरह से राज और उद्धव ठाकरे का मंच साझा करना चर्चा का विषय बना, अब साफ हो गया है कि यह सिर्फ मराठी मुद्दों पर एकता का प्रदर्शन था, न कि किसी राजनीतिक गठबंधन का संकेत।
राज ठाकरे की नाराज़गी यह भी दिखाती है कि वे स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए सजग हैं। वहीं, उद्धव ठाकरे की गठबंधन की उत्सुकता बताती है कि वे मराठी मतदाताओं को एकजुट करके भाजपा को टक्कर देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
पर क्या दोनों का यह द्वंद्व भविष्य में एक समरसता में बदल पाएगा? यह सवाल आने वाले हफ्तों में और भी गूंजेगा, खासकर BMC चुनावों की तारीखें जैसे-जैसे पास आएंगी।
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