मध्यप्रदेश में खरगोन जिले के कसरावद ब्लॉक स्थित नर्मदा किनारे के ग्राम भट्टियान के एक आश्रम में निवासरत सियाराम बाबा एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु और संत माने जाते हैं। माना जाता है कि अपनी आयु के शतायु वर्ष से अधिक पूरे कर चुके सियाराम बाबा हनुमान जी के परम भक्त हैं। आश्रम में सदा ही उन्हें रामचरित्र मानस का पाठ करते हुए देखा जा सकता है। बाबा के आश्रम में प्रति दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु उनका आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं। बीते कुछ दिनों से संत सियाराम बाबा का स्वास्थ्य खराब चल रहा था, उन्हें निमोनिया बताया गया था, जिसको लेकर मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने भी फोन कर बाबा का हाल-चाल जाना था।
इसके बाद से ही जिला प्रशासन का अमला भी लगातार बाबा के स्वास्थ्य पर नजर रखे हुए हैं तो वहीं जिला कलेक्टर, एसडीएम, सीएमओ, सीएचएमओ सहित आला अधिकारी लगातार दौरा कर बाबा का स्वास्थ्य जान रहे हैं। इसी बीच बीते कुछ समय से लगातार बाबा अपने स्वास्थ्य को लेकर खबरों की सुर्खियों में बने हुए हैं। हालांकि, इस दौरान बाबा के स्वास्थ्य को लेकर कुछ अफवाहों का दौर भी चला था, लेकिन आपको बता दें कि फिलहाल बाबा के सेवादारों से मिली जानकारी के अनुसार उनका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक है और बाबा फिलहाल अपने आश्रम में ही आराम कर स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं।
निमाड़ क्षेत्र में प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु और संत सियाराम बाबा को प्रदेश भर में बड़े ही सम्मान के साथ पूजा जाता है। माना जाता है कि खरगोन जिले के एक छोटे से गांव में जन्मे बाबा बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे और बचपन से ही उन्होंने अपने जीवन को प्रभु की सेवा और भक्ति के लिए समर्पित कर रखा है। मिली जानकारी के अनुसार, उनके पिता एक किसान थे, तो वहीं उनकी माताजी घरेलू महिला थीं। सियाराम बाबा का बचपन बहुत ही साधारण था और उन्होंने अपने गांव में ही प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने कक्षा 7 या कक्षा 8 तक की शिक्षा हासिल की है, जिसके बाद से ही वे एक संत के संपर्क में आए और उनका प्रभाव सियाराम बाबा के जीवन में इस तरह से पड़ा कि वे वैरागी हो गए और अपना घर-परिवार छोड़कर वे हिमालय की यात्रा पर चले गए, जहां रहकर कुछ दिनों तक तपस्या की।
हिमालय यात्रा के दौरान की गई तपस्या के बाद संत सियाराम बाबा और फिर से वापस मध्यप्रदेश की ओर लौटे। जहां खरगोन जिले के भट्टियान गांव में आकर उन्होंने विश्राम किया। बाबा बचपन से ही हनुमान जी के परम भक्त थे और यहां आकर वे लगातार रामायण का पाठ करने में जुट गए। उनके अनुयायियों के अनुसार, इस दौरान उन्होंने करीब 12 साल तक लगातार मौन व्रत भी रखा था।
मान्यता के अनुसार, करीब 10 साल तक बाबा ने एक पैर पर खड़े रहकर तप किया भी किया है, जिसके चलते उनके पास चमत्कारी शक्तियां हैं, जिससे धीरे-धीरे क्षेत्र के साथ ही देश और विदेश से भी कई लोग उनके दर्शन के लिए आने लगे। इस तरह बाबा की प्रसिद्धि फैलती गई। उनके भक्त उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान, दया और उनकी मानव प्रजाति के लिए की जा रही सेवा भाव के लिए जानते हैं। वे अपने आश्रम आने वाले अनुयायियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन तो प्रदान करते ही हैं। साथ ही उन्हें जीवन के सही मूल्यों को समझने में भी मदद करते हैं। यही नहीं, वे इस तरह से अपने अनुयायियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
संत सियाराम बाबा के अनुयायियों के अनुसार, नर्मदा किनारे स्थित उनकी संपत्तियों से दो करोड़ से अधिक की राशि जुटाकर, यह पूरी ही राशि बाबा ने नर्मदा नदी के घाटों की मरम्मत और वहां चल रहे विकास कार्यों के लिए दान कर दी थी। इतनी बड़ी धनराशि दान करने के चलते उनके अनुयाई उन्हें दानी बाबा के नाम से भी जानते हैं। वहीं उनके आश्रम में अब भी श्रद्धालुओं से केवल 10 रुपये का ही दान लिया जाता है, और इससे अधिक रुपया दान देने पर उसे वापस लौटा दिया जाता है। इसलिए उन्हें 10 रुपये दान वाले बाबा भी कहा जाता है।
वह किसी भी तरह के मौसम में केवल एक लंगोट पहने ही ध्यान और साधना में लीन दिखाई देते हैं। बरसों इसी तरह रहने के चलते उनका शरीर भी अब इसके अनुकूल हो गया है और करीब 108 साल की उम्र होने के बावजूद भी बाबा अपने सारे काम खुद ही करना पसंद करते हैं। यहां तक की बाबा इतनी अधिक उम्र होने के बावजूद अपना भोजन भी स्वयं ही पकाते हैं। वे सादा भोजन ही करते हैं और कई बार तो केवल फलाहार पर जीवित रहते हैं। इसी सब के चलते बाबा का आश्रम अब एक बड़ा आस्था का केंद्र बन गया है।