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devotees come out of the pool of burning embers here After the fulfillment of their vow
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MP: मन्नत पूरी होने पर यहां दहकते अंगारों के कुंड से निकलते है भक्त, 300 साल पुराने मंदिर में मेला हुआ शुरू
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सागर Published by: सागर ब्यूरो Updated Sat, 07 Dec 2024 02:48 PM IST
बुंदेलखंड की विरासत की बात करें, तो यहां खजुराहो, ओरछा, दतिया जैसे अद्भुत मंदिर देश और दुनिया में प्रसिद्ध है, लेकिन कई ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर ऐसे भी है, जिनकी लोगों को कम जानकारी है। लेकिन उन मंदिरों का इतिहास और परम्पराएं अपने आप में अनोखी है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक मंदिर जिले के देवरी में स्थित है। जिसमें देव श्री खंडेराव मंदिर के नाम से जानते हैं। जहां अगहन मास में 9 दिनों का अग्निकुंड मेला भरता है। यह मंदिर करीब 400 साल पुराना है। जहां मनोकामना पूर्ति के लिए भक्त दहकते अंगारों पर निकलकर भगवान का धन्यवाद करते हैं। अगहन मास की षष्ठी यानि चंपा छठ से भरने वाला मेला पूर्णिमा तक चलता है। जिसकी तैयारियां तेज हो गयी है। यहां इस साल 140 अग्निकुंड बनाए जा रहे हैं, जिनमें से हजारों की संख्या में भक्तगण निकलेंगे।
श्रीदेव खंडेराव ने सपने में दिए थे राजा को दर्शन
देवरी में स्थित देव श्री खंडेराव मंदिर का अगहन सुदी चंपा षष्ठी से शुरू होकर पूर्णिमा तक भरने वाला 9 दिवसीय मेला बुंदेलखंड में काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में लोगों की अपार आस्था है और यहां होने वाला चमत्कार देखने लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं। दरअसल इस मेले के दौरान मनोकामना पूर्ति होने पर लोग दहकते अंगारों से भरे अग्निकुंड से निकलते हैं। देवरी के तिलक वार्ड में स्थित 17वीं शताब्दी का प्राचीन देवश्री खंडेराव मंदिर में मेला करीब 300 साल से चला आ रहा है। कहा जाता है कि देवरी जैसा मेला महाराष्ट्र में जाजौरी में भरता है। जहां देव श्री खंडेराव का मंदिर स्थित है।
मेले की शुरुआत राजा रसाल जाजोरी ने की थी और उन्होंने ही मंदिर का निर्माण कराया था। दरअसल राजा का पुत्र एक बार बीमार हो गया था, तब उन्होंने देव श्री खंडेराव से मनोकामना मांगी थी। राजा को सपने में देव श्री खंडेराव ने दर्शन दिए और कहा कि मंदिर में अग्निकुंड से नंगे पैर निकलोगे, तो उनकी मनोकामना पूरी होगी। राजा रसाल ने सपने में मिली प्रेरणा अनुसार काम किया और उनका बेटा स्वस्थ हो गया। तब से परंपरा लगातार चली आ रही है।
भगवान शिव का अवतार हैं देव श्री खंडेराव
ऐसा अनुमान है कि ये मंदिर 15-16 वीं शताब्दी के दौरान निर्मित हुआ है। जिसमें देव श्री खंडेराव घोड़े पर सवार है और अर्धांग रूप में माता पार्वती विराजमान है। भगवान देव श्री खंडेराव को शिव का अवतार मानते हैं। देवरी के मंदिर के गर्भगृह में प्राचीन शिवलिंग भी स्थित है और मंदिर के बाहर नंदी की प्रतिमा भी स्थित है। मंदिर परिसर में एक विशाल बावडी और देवी देवताओं की भी प्रतिमाएं विद्यमान है। मंदिर के गर्भगृह में बने शिवलिंग को स्वयं भू शिवलिंग बताया जाता है।
चंपा षष्ठी के दिन जैसे ही मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर ठीक 12 बजे भगवान सूर्य का प्रकाश पुंज पडता है। तो सभी श्रद्धालु मंदिर के सामने बनाए गए अग्नि कुंडों में पूजा-अर्चना के बाद दोनों हाथों में हल्दी लेकर दहकते अंगारों से निकलना शुरू करते हैं। जय हो श्री खंडेराव के जयकारा लगाते हुए आस्था से सराबोर भक्तगण बिना डरे दहकते अंगारों से दो बार निकलते हैं।
इस साल खोदे जा रहे है 140 अग्निकुंड
मंदिर प्रबंधन द्वारा इस बार मंदिर में 140 अग्निकुंड खुदवाए गए है। मंदिर प्रबंधन ने बताया कि जिन भक्तों को अग्निकुंड से निकलना होता है, उन्हें पहले पंजीयन करवाना होता है। इस साल एक हजार से ज्यादा लोग पंजीयन करा चुके हैं। साल दर साल पंजीयन कराने वाले भक्तों की संख्या बढ़ रही है। इसलिए मंदिर परिसर में मेले के दौरान अग्निकुंड की भी संख्या बढ़ानी पड़ रही है। मंदिर परिसर में विशेष साज सज्जा के साथ 140 अग्निकुंड इस बार खोदे गए है यह मेला 7 दिसंबर से 15 दिसंबर तक चलेगा।
महिलाएं लेती है बढ़ चढ़कर हिस्सा
मुख्य पुजारी नारायण राव वैद्य ने बताया कि अग्निकुंड में निकलने वाले भक्तों में महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है। कुंवारी युवतियों के अलावा महिलाएं सबसे ज्यादा पंजीयन करवाती है। इस बार सबसे अधिक पंजीयन आदिवासी महिलाओं ने कराया है।
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