नर्मदापुरम के सेठानीघाट स्थित 700 वर्ष पुराने श्री जगदीश मंदिर में ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान जगन्नाथ का पारंपरिक महास्नान विधि-विधान के साथ संपन्न हुआ। यह आयोजन पुरी (ओडिशा) की परंपरा के अनुरूप आयोजित किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के विग्रहों को गर्भगृह से बाहर लाकर सहस्त्रधारा में स्नान कराया गया। स्नान में पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) सहित 21 विधियों से अभिषेक किया गया। करीब 100 लीटर पंचामृत और पवित्र जल का उपयोग कर महास्नान की प्रक्रिया सम्पन्न हुई।
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पौराणिक मान्यता के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन महास्नान के बाद भगवान जगन्नाथ सर्दी लगने से अस्वस्थ हो जाते हैं और आषाढ़ द्वितीया तक शयनकक्ष में विश्राम करते हैं। इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक औषधियों से उपचार दिया जाता है। आचार्यों के अनुसार, यह समय ऋतु परिवर्तन का संधिकाल होता है, जिसमें मनुष्यों को भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। भगवान स्वयं बीमार होकर भक्तों को इस समय विशेष परहेज व स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने का संदेश देते हैं। महंत नारायणदास ने बताया कि इन 15 दिनों तक भगवान को मूंग की दाल, दलिया और औषधीय पेय दिए जाते हैं। इस अवधि में मंदिर में भगवान के विग्रह का दर्शन नहीं होता, बल्कि मात्र उनके मुकुट की पूजा की जाती है।
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रथ यात्रा के लिए होगी वापसी
भगवान के पूर्णतः स्वस्थ होने के पश्चात वे अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ भव्य रथ यात्रा पर नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे। यह रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकाली जाएगी। महंत के अनुसार, यह परंपरा सदियों पुरानी है, जिसमें भगवान अपने भक्त माधवदास के कष्टों को अपने ऊपर लेकर बीमार होते हैं। यही कारण है कि इस विशेष काल में भक्तगण उपवास, पूजा और आरोग्य की भावना से भगवान की आराधना करते हैं।