आमतौर पर श्मशान (मुक्तिधाम) में लोग शवयात्रा में जाते हैं और वहां उत्साह के आयोजन नहीं होते है, लेकिन मध्यप्रदेश के रतलाम शहर में श्मशान में दीपावली मनाने की अनूठी परपंरा है। यहां त्रिवेणी स्थित श्मशान में पिछले 19 वर्ष से दीपावली के अवसर पर रूप चौदस के दिन दीपावली मनाई जाती है। वैसे अधिकतर समय श्मशान में सन्नाटे की स्थिति रहती है और शाम के बाद अंधेरा छाह जाता है, लेकिन रूपचौदस पर मुक्तिधाम दीपों व आतिशबाजी की रोशनी से जगमगा रहा था। रविवार रात त्रिवेणी स्थित मुक्तिधाम पर बड़ी संख्या में लोगों ने पहुंचकर सैकड़ों दीप जलाकर व आतिशबाजी कर दीपावली पर्न मनाया।
श्मशान में वैसे महिलाएं व बच्चे नहीं जाते है लेकिन बड़ी संख्या में महिलाएं व बच्चे भी अपने परिजन को साथ वहां पहुंचे। लोगों ने दीप जलाकर अपने पुर्वजों को याद किया। इस दौरान आतिशबाजी भी की गई। दीपावली मनाने आए नागिरकों ने मीडियाकमिर्यों से चर्चा करते हुए बताया कि पूर्वजों को मोक्ष मिले, इसके लिए श्मशान आकर दीपदान किया जाता है। एक दिन सभी को यहां आना है तो फिर डर किस बात का।
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मुक्तिधाम आने से सभी डरते हैं। यहां गम का वातावरण रहता है, लेकिन हम यहां दीपावली सा उत्सव मना रहे है, जैसे अपने प्रतिष्ठानों, मंदिरोंमें मनाते है, वैसे ही यहां दीपावली मनाई जा रही है। हम पूवर्जों को श्रद्धांजलि स्वरूप दीपावली मनाकर उनका आशीर्वाद ले रहे हैं। पूर्व पार्षद श्रेणिक जैन ने बताया कि मुक्तिधाम में महिलाएं आने में डरती हैं, लेकिन महिलाएं व बच्चे भी आए हैं। महोत्सव के रूप में दीपावली मनाई जा रही है, घर जैसे माहौल है। राजकुमार संचेती ने बताया कि एक तरफ चिता जल रही है और दूसरी तरप दीपावली मनाई जा रही है। आज के दिन लोग यहां आकर दीपावली मनाते है तथा एक दीपक जरूर लगाते है। पांच वर्ष से वे देख रहे है कि यहां महोत्सव जैसा माहौल रहता है।
2006 में शुरू की गई थी परपंरा
शहर के मुक्तिधाम दीपावली मनाने की परंपरा ज्यादा पुरानी न होकर 19 वर्ष पुरानी है। प्रेरणा संस्था के पांच सदस्यों गजेंद्र कसेरा, चेतन शर्मा, मधुसूदन कसेरा, राजेश विजयवर्गीय और गोपाल सोनी वर्ष 2026 में मुक्तिधाम में त्योहार के दिन पसरे सन्नाटे और अंधकार को देखकर पहली बार 31 दीपक लगाकर इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी। तब से इसने परंपरा का रूप ले लिया है और हर वर्ष मुक्तिधाम में दीपावली मनाई जा रही है। पहले साल पांच लोगों ने मिलकर मुक्तिधाम में दीपदान किया था और इसके बाद हर साल मुक्तिधाम में आने वालों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। अब बड़े स्तर पर लोग यहां आकर दिवाली मनाते हैं।