स्वास्थ्य विभाग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए श्यामपुर क्षेत्र के अहमदपुर में बिना डिग्री और बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे दो क्लीनिकों को सील कर दिया। डॉ. नीरज डागोर, सीबीएमओ डॉ. नवीन मेहर और डॉ. मनोज पटेल की अगुवाई में बनी संयुक्त टीम ने एलोपैथिक दवाएं और इंजेक्शन जब्त किए। अहमदपुर में के.के. विश्वास और पर्वत सिंह दांगी के क्लीनिकों में बिना डिग्री इलाज चल रहा था। जब टीम ने रजिस्ट्रेशन मांगा, तो दोनों डॉक्टर्स कोई दस्तावेज नहीं दिखा पाए। मौके से कई अन्य फर्जी डॉक्टर अपनी दुकानें बंद कर फरार हो गए। इधर चरनाल में ग्रामीणों के विरोध के चलते टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा।
अहमदपुर के बाद जब टीम चरनाल गांव पहुंची, तो माहौल अचानक तनावपूर्ण हो गया। वहां तपस विश्वास के क्लीनिक पर जब कार्रवाई शुरू हुई, तो ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई। लोगों ने टीम को घेर लिया और विरोध शुरू कर दिया। ग्रामीणों ने कहा कि सरकारी अस्पताल में डॉक्टर रहते नहीं, दवाएं नहीं मिलतीं, ऐसे में यही क्लीनिक हमारे लिए सहारा है। टीम ने कार्रवाई के लिए पुलिस बल बुलाया लेकिन विरोध इतना तीव्र था कि टीम को आखिरकार क्लीनिक सील किए बिना ही लौटना पड़ा।
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चरनाल के सरपंच प्रतिनिधि नर्मदा प्रसाद साहू, सुमित गुप्ता और आरिफ ने कहा कि गांव में सिर्फ यही डॉक्टर है, जो रात में मरीजों को देखता है। सरकारी डॉक्टर कभी मौजूद नहीं रहते। अगर यह भी बंद हुआ, तो मरीजों को सीहोर या भोपाल जाना पड़ेगा, जो हर किसी के लिए संभव नहीं। ग्रामीणों ने स्वास्थ्य विभाग पर भेदभावपूर्ण कार्रवाई के आरोप लगाए और कहा कि पहले सरकारी सेवाएं दुरुस्त की जाएं, फिर निजी डॉक्टरों पर कार्रवाई हो।
इधर स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि जिले में बिना डिग्री वाले डॉक्टरों के खिलाफ अभियान जारी है। अहमदपुर में दो क्लीनिक सील किए गए हैं और चरनाल में एलोपैथिक दवाएं जब्त की गईं। सीबीएमओ डॉ. नवीन मेहर ने बताया कि तीन अपात्र डॉक्टरों के खिलाफ रिपोर्ट तैयार कर सीएमएचओ को सौंपी गई है। आगे भी अभियान जारी रहेगा।
स्वास्थ्य विभाग की इस कार्रवाई ने ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी सच्चाई भी सामने ला दी है, जहां सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर, स्टाफ और दवाएं नहीं हैं, वहीं अपात्र डॉक्टर ही लोगों का सहारा बने हुए हैं।
चरनाल, अहमदपुर और आसपास के कई गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो हैं, लेकिन या तो डॉक्टर रहते नहीं या समय पर दवा नहीं मिलती। ऐसे में ग्रामीणों की मजबूरी है कि वे उन्हीं लोगों पर भरोसा करें, जिनसे तुरंत इलाज मिल सके, भले ही वे योग्य न हों।