उज्जैन के बड़नगर के पास स्थित ग्राम भिडावद में बुधवार सुबह रोंगटे खड़े कर देने वाली अनोखी परंपरा निभाई गई। यहां मनोकामना पूरी होने पर उपासक जमीन पर लेट गए और गायों का झुंड उनके ऊपर से दौड़ता हुआ निकला। आश्चर्य की बात यह रही कि इससे किसी को चोट नहीं आई।
गांव में बुधवार सुबह गौरी पूजन पर्व मनाया गया। इस अवसर पर गायों को पूजा कर खुले स्थान पर लाया गया। गांव के लोग जमीन पर उलटे लेट गए और दर्जनों गाय उनके ऊपर से दौड़ती हुई निकली। यह नजारा देखने वालों की सांसें थम गईं, लेकिन किसी को मामूली चोट तक नहीं आई।
सुबह सबसे पहले गायों को नहलाकर चौक में गो माता की पूजा की गई। पूजा सामग्री में गाय का गोबर विशेष रूप से रखा गया। पारंपरिक गीत गाकर सुख और शांति का आशीर्वाद देने का आह्वान किया गया। इसके बाद मन्नतधारी लोगों को लेकर चौक में लाया गया। उपासकों को गायों के सामने जमीन पर लेटाया गया और ढोल-नगाड़ों की थाप पर गायों ने उनके ऊपर से दौड़ लगाई। इसके बाद गांव में जश्न और जुलूस निकाला गया।
गांव के कपिल कुमार दुबे के अनुसार, जो लोग कोई मनोकामना पूरी होने पर उपवास रखते हैं, वे इस परंपरा में भाग लेते हैं। दीपावली से पांच दिन पहले मन्नतधारी लोग भवानी माता मंदिर में रहकर भजन-कीर्तन करते हैं। दीपावली के अगले दिन यह परंपरा निभाई जाती है, जिसमें लोग गायों के ऊपर लेटते हैं ताकि उनके मनोकामना पूरी हों।
ग्रामीणों का कहना है कि इस परंपरा की शुरुआत कब हुई, किसी को याद नहीं। यह गांव और आसपास के क्षेत्रों में आस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। दूर-दूर से लोग अपनी मन्नतें पूरी कराने या पूरी हुई मन्नतों के लिए यहां आते हैं।
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गांव वालों के अनुसार, गौ माता देवी का स्वरूप है और यह सुख, समृद्धि और शांति का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन गायों की पूजा मां गौरी के रूप में की जाती है। पारंपरिक गीतों और ढोल-नगाड़ों के माध्यम से मां गौरी का आह्वान किया जाता है। मन्नतधारी पूजा की थाली में गाय के गोबर सहित अन्य सामग्री रखते हैं। गाय उपासकों के ऊपर से गुजरने के बाद उन्हें उठाया जाता है और गांव में ढोल-नगाड़ों के साथ जश्न मनाया जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि इस परंपरा में आज तक किसी को चोट नहीं आई। गाय को सुख, समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है।