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शक्तिशाली एवं संगठित भारत ही कर सकता है विश्व का कल्याण: डा कृष्ण गोपाल
अधर्म पर धर्म की विजय के पर्व विजयदशमी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपना 100वां स्थापना दिवस पठानकोट में मनाया। आज के दिन 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने कुछ बच्चों को लेकर नागपुर में संघ की स्थापना की थी और आज यह संगठन दुनिया की सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन बन चुका है। समारोह में मेहमानों के साथ संघ के अध्यक्ष विरेंद्र सिंह पठानिया, डा. कृष्ण गोपाल, मुख्यातिथि रिम्पेश समेत आदि देश के विभिन्न हिस्सों से पदाधिकारी शामिल हुए। सबसे पहले विधिवत शस्त्र पूजन किया। मुख्यातिथि रिम्पेश ने कहा कि ‘स्व’ बोध, पर्यावरण संरक्षण, नागरिक कर्तव्य निर्वहन, समरसता व आदर्श परिवार प्रणाली से ही भारत का समग्र विकास हो पाएगा। किसी भी राष्ट्र के निर्माण व उत्थान के लिए वहां के नागरिकों का चरित्रवान व देशभक्ति के गुणों से परिपूर्ण होना आवश्यक है। कई बार चरित्र के बिना शिक्षा व ज्ञान भी घातक बन जाता है। संघ चरित्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण की कार्यपद्धति को लेकर राष्ट्र के परम वैभव के लिए काम कर रहा है। संघ अधिकारी डा. कृष्ण गोपाल ने कहा कि श्री गुरु तेगबहादुर जी ने अपने जीवन का बलिदान दे मानवाधिकारों व मानवीय मूल्यों की रक्षा का संदेश दिया। उन्होंने संदेश दिया कि दुनिया में हर धर्म सम्मानित है और किसी को धर्म के आधार पर दूसरों पर अत्याचार करने, किसी को धर्म बदलने के लिए विवश करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी संदेश दिया कि स्वधर्म की रक्षा के लिए अगर जीवन का बलिदान देना पड़े तो भी मानव को पीछे नहीं हटना चाहिए।
संघ द्वारा दिए गए पंच परिवर्तनों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संघ का मानना है कि एक सशक्त, सुसंकृत और प्रत्येक क्षेत्र में प्रगतिशील राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता अनिवार्य प्रत्यय हैं। जाति, धर्म, वंश और लिंग के आधार पर विभेदित कोई भी राष्ट्र राष्ट्रीय एकता, अक्षुणता और आंतरिक सुरक्षा के स्तर पर विकास के मापांक को प्राप्त नहीं कर सकता है। संघ परिवार को भारतीय संस्कृति, मूल्यों, आदर्शों और संस्कारों की आधारशिला मानता है। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और आधुनिक जीवनशैली के दबाव के कारण पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है। कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से हम अपने परिवारों को भारतीय संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों के प्रति सजग व अग्रसर कर सकते हंै। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण समकालीन परिदृश्य में एक बड़ी वैश्विक चुनौती है और भारत को भी पर्यावरणीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और प्रदूषणों ने पर्यावरण को बहुत अधिक मात्रा में नुकसान पहुंचाया है जिसका मानव जीवन और भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके लिए हमारे लिए पर्यावरण हितौषी जीवन शैली आवश्यक है। संघ अधिकारी ने कहा कि राष्ट्र के विकास के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता अति आवश्यक है। उपभोक्तावादी संस्कृति और आयात पर अत्यधिक निर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था एवं भारतीय संस्कृति के लिए अति हानिकारक है। भारतीय उत्पादों को अपने स्थानीय व्यवसायों को अपनाने एवं उनका उन्नयन करने और भारतीयों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करना स्वाधारित जीवनशैलीका अभिन्न भाग है। स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने वाले अभियानों को प्रेरित करना, पारंपरिक कौशल और उद्योगों को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न करना आवश्यक है। नागरिक कर्तव्यों के बारे बोलते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञानवान एवं उन्नतशील लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए उसके नागरिकों को अपने मौलिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक एवं जिम्मेदार होना अतिआवश्यक है। कर्तव्यों के पालन से ही एक स्वस्थ एवं नागरिक समाज का निर्माण हो सकता है। नागरिक कर्तव्य के प्रति दायित्ववादिता से स्पष्ट है कि नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हों एवं ईमानदारी से उनका पालन करें। नागरिक कर्तव्यों के अंतर्गत मतदान करना, करों का भुगतान करना, सार्वजनिक संपत्ति की संरक्षा करना, कानून का पालन करना और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि इन्हीं पंच परिवर्तनों पर आधारित कार्यक्रम लेकर संघ समाज के बीच जा रहा है। मुख्यातिथि ने कहा कि अपने सद्कर्मों व सकारात्मक कार्यपद्धति के चलते संघ अपने जीवन के 100 सालों में देशभक्ति, आपसी भाईचारे और सेवा का दूसरा नाम बन चुका है। देश में जब भी संकट आता है तो संघ के स्वयंसेवक आगे बढ़ कर अपने राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन करते हैं। इस अवसर पर स्वयंसेवकों ने पथ संचलन भी किया। इस मौके विभाग संघ चालक रामेश, नगर संघ चालक रेवती रमन मौजूद रहे।
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