इस्लामी माह मोहर्रम की नवमी की रात शनिवार को शहर में रिमझिम बारिश के बीच पूरी आस्था और जोश के साथ जुल्फिकार का पारंपरिक जुलूस निकाला गया। जुलूस की शुरुआत पृथ्वीगंज से हुई और शहर की प्रमुख मस्जिदों के मुकामी ताजियों को सलामी देने के बाद यह मध्यरात्रि में पृथ्वीगंज लौट आया।
जुलूस के लिए तैयारियां शुक्रवार रात नमाज के बाद ही शुरू कर दी गई थीं। सिलावटवाड़ी मस्जिद में समाज के बुजुर्गों के निर्देशन में जुल्फिकार बांधी गई। इसके बाद पहली सलामी पंच सिलावटवाड़ी के मोहर्रम को दी गई। जैसे ही जुल्फिकार को पृथ्वीगंज मस्जिद से बाहर लाया गया, युवाओं ने "या हुसैन..." के नारों से माहौल को गमगीन कर दिया।
जुलूस ने परंपरागत रूप से मस्जिद के सामने पेड़ के तीन चक्कर लगाए और फिर जलसा सदर के नेतृत्व में ढोल-नगाड़ों के साथ कस्टम चौराहा, पुराना बस स्टैंड, गांधीमूर्ति, चंद्रपोल, पीपली चौक होते हुए पाला स्थित जामा मस्जिद पहुंचा। यहां मुकामी ताजियों को सलामी दी गई। इसके बाद कंधारवाड़ी, मकरानीवाड़ा और गोरखईमली मस्जिदों से होते हुए जुलूस पृथ्वीगंज लौट आया।
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इस दौरान अकीदतमंदों ने जुल्फिकार पर फूल-मालाएं चढ़ाईं और मन्नतें पूरी होने पर चांदी के नींबू व छत्र अर्पित किए। जुलूस में अंजुमन सदर, कार्यकारिणी, विभिन्न पंचों के पदाधिकारी और बड़ी संख्या में समुदायजन शामिल रहे। इसके बाद रात में मुकामी ताजियों की सलामी के पश्चात ताजियों का शहर गश्त का जुलूस निकाला गया, जो पारंपरिक मार्गों से होते हुए अपने मुकाम तक पहुंचा। रविवार को यौमे आशुरा के मौके पर ताजियों का पारंपरिक जुलूस जौहर की नमाज के बाद निकाला जाएगा। शाम को करबला में ताजियों को ठंडा किया जाएगा। कई अकीदतमंद इस अवसर पर रोजा भी रखेंगे।