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जब योगी आदित्यनाथ ने पहली बार दिखाया था दबंग अंदाज, एसएसपी भी सोच रहे होंगे-ये हैं कौन?

डिजिटल न्यूज डेस्क, गोरखपुर Published by: विजय जैन Updated Wed, 12 Feb 2020 09:03 AM IST
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योगी आदित्यनाथ। - फोटो : अमर उजाला।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्पेशल सीरीज का ये चौथा भाग है। पहले तीन भाग में आपने पढ़ा कि कैसे योगी आदित्यनाथ उत्तराखंड स्थित  पैतृक गांव पंचूर से गोरखपुर आए। बेटे को पहली बार भगवा वेष में देख पिता पर क्या बीती? योगी की मां भी बेटे को संन्यासी बने देख भावुक हो गईं। योगी संन्यासी बनने की रस्म पूरी करने के लिए जब दोबारा पंचूर गए तो उन्होंने मां-बाप से ही भिक्षा मांगी और गोरखपुर लौट आए। दीक्षा लेने के बाद योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर में ही रहने लगे थे। अब आगे पढ़ें...
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योगी आदित्यनाथ। - फोटो : अमर उजाला।
मार्च 1994 में पहली बार वह गोरखनाथ मंदिर से बाहर निकलने पर मजबूर हुए। इसकी जरूरत नहीं पड़ती अगर पुलिस गोलघर में हुए विवाद के आरोपियों की तलाश में प्रताप छात्रावास में नहीं घुसी होती। अंत में जब पुलिस ने इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया, तब उनका धैर्य जवाब दे गया।

सैकड़ों युवाओं (जिसमें अधिकांश स्थानीय कॉलेजों के छात्र थे) ने वहां से पांच मिनट की दूरी पर स्थित प्रताप छात्रावास से एसएसपी आवास के बीच जुलूस के जरिए रास्ता जाम कर दिया था। गोरखपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक केके सक्सेना का घर चारों तरफ से घिरा था। प्रदर्शनकारी छात्रों का नेतृत्व 21 वर्ष का एक संन्यासी सा प्रतीत होने वाला युवा कर रहा था। उसने भगवा वस्त्र पहन रखे थे। ये युवा थे योगी आदित्यनाथ।
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योगी आदित्यनाथ। - फोटो : Yogi Adityanath Life
भीड़ में बहुत से लोग योगी आदित्यनाथ के बारे में जानते तक नहीं थे, लेकिन सब उसके अद्दम्य साहस से प्रभावित थे। 15 फरवरी 1994 को ही गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। गोलघर के पास बने छात्रावास में गोरखनाथ मंदिर की शिक्षा शाखा, महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा संचालित विभिन्न विद्यालयों के करीब 250 छात्र रहते थे। 1976 में यह छात्रावास स्थापित हुआ था।

समस्या तब शुरू हुई जब छात्रावास के छात्र कपड़ा खरीदने गए और वहां दुकानदार से दाम को लेकर मोलभाव बहस में बदलने लगी। दुकान के मालिक प्रमोद टेकरीवाल, जो प्रमुख व्यवसायी होने के साथ ही अंशकालिक नेता भी थे, ने नाराज छात्रों को सबक सिखाने के लिए अपनी ताकत दिखाने का फैसला किया। वह दुकान से बाहर आए और हवा में दो गोलियां चला दीं। इससे हंगामा हो गया और वहां पुलिस पहुंच गई।
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अपने सहपाठियों के साथ कालागढ़ के रास्ते में सीएम योगी, बायें से प्रथम। - फोटो : अमर उजाला।
उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की गठबंधन सरकार थी। कांग्रेस भी अप्रत्यक्ष रूप से सरकार में शामिल थी। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में ही पैठ होने के कारण टेकरीवाल की शहर में अच्छी-खासी धौंस थी।
उन्होंने पुलिस पर त्वरित कार्रवाई का दबाव बनाया। यह गोरक्षपीठ की सत्ता को सीधे चुनौती थी। युवा योगी के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। मठ के आधिपत्य की इस प्रकार उपेक्षा नहीं की जा सकती थी। एक नजीर तय की जानी थी।
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अपने बचपन के साथियों के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ। - फोटो : अमर उजाला।
योगी ने फोन उठाया और एसएसपी केके सक्सेना को फोन मिला दिया। मंदिर के बाहर यह उनका पहला संवाद था। इसी बीच युवा उत्तराधिकारी के द्वारा पुलिस प्रमुख को चेतावनी की खबर शहर में जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी। पांच महीने पहले योगी भी उन्हीं की तरह एक छात्र थे।

गोरखपुर के युवाओं को, जिन्होंने वास्तविक नायक के अभाव में माफियाओं और बाहुबलियों को अपना आदर्श मानना शुरू कर दिया था उनको एक नया नायक मिल गया था। दूसरी ओर पुराने लोगों ने कहना शुरू कर दिया- 'महंत दिग्विजयनाथ ने दोबारा जन्म लिया है।'

साभार- यह कहानी योगी आदित्यनाथ की जीवन यात्रा पर लिखी किताब योद्धा योगी से लिया गया है, इसे प्रवीण कुमार ने लिखा है।

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