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श्रीकृष्ण की नगरी में रावण की पूजा: लंकेश भक्त मंडल ने निकाली शोभायात्रा, पुतला दहन का विरोध

संवाद न्यूज एजेंसी, मथुरा Published by: मुकेश कुमार Updated Sat, 16 Oct 2021 12:30 AM IST
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Followers of Ravana worship him on the Dussehra in Mathura
रावण स्वरूप की पूजा करते लंकेश भक्त मंडल के सदस्य - फोटो : अमर उजाला

बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक विजयदशमी पर्व पर देशभर में रावण के पुतले फूंके गए, लेकिन श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में दशानन की पूजा की गई। शुक्रवार को लंकेश भक्त मंडल के तत्वावधान में विजयदशमी पर लंकापति दशानन की शोभायात्रा निकाली गई। लंकेश के स्वरूप द्वारा पहले यमुना तट स्थित प्राचीन शिव मंदिर में महादेव की विधिविधान पूर्वक पूजा की गई। पंचामृत अभिषेक किया गया। लंकेश भक्त मंडल ने महाआरती करते हुए रावण के पुतला दहन परंपरा का विरोध किया।



आगरा में भी विजयदशमी पर कैलाश मंदिर और रामलाल वृद्ध आश्रम स्थित वृद्धेश्वर महादेव मंदिर पर भगवान शिव के साथ लंकापति रावण का पूजन किया गया। डॉ. मदन मोहन शर्मा ने रावण का वेश धारण कर वृद्ध आश्रम में कन्याओं का पूजन किया। इस दौरान नकुल सारस्वत, रामानुज मिश्रा, कल्लो सारस्वत, प्रवीण सारस्वत, समर्थ सारस्वत, गौरव चौहान, विशाल कुशवाह, शिवम चौहान, दीपक सारस्वत आदि मौजूद रहे।

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रावण स्वरूप ने की भगवान शिव की आराधना - फोटो : अमर उजाला
लंकेश भक्त मंडल द्वारा दशानन स्वरूप को रथ में विराजमान करते हुए राजकीय इंटर कॉलेज परिसर से यमुनापार स्थित शिव मंदिर तक ले जाया गया। जहां उनके भक्तों ने हर हर महादेव, जय लंकेश की जय-जयकार की। मंदिर में बाबा भोलेनाथ का विधिविधान पूर्वक पंचामृत अभिषेक दशानन के स्वरूप से कराया। इस दौरान घंटा और घड़ियाल की धुन के साथ शिव तांडव स्त्रोत पाठ यमुना तट पर किया गया। इसके बाद लंकेश स्वरूप द्वारा भोलेनाथ की आरती की गई। 
 
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रथ पर सवार रावण स्वरूप - फोटो : अमर उजाला
लंकेश भक्त मंडल के अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत एडवोकेट ने कहा कि हिंदू संस्कृति में किसी भी व्यक्ति का अंतिम संस्कार एक ही बार किया जाता है, लेकिन हर वर्ष जो लोग रावण का पुतला बुराई के रूप में जलाते हुए बुराई पर अच्छाई की जीत बताते हैं वो एक कुप्रथा है। 
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सारस्वत समाज ने निकाली रावण की शोभायात्रा - फोटो : अमर उजाला
उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए समुद्र तट पर रावण को अपना आचार्य बनाकर महादेव जी की पूजा कराई थी, जिसे रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है। जहां रावण ने अपने आचार्य धर्म का पालन करते हुए भगवान श्रीराम को लंका पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया था। 
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सारस्वत समाज ने की रावण की महाआरती - फोटो : अमर उजाला
संजय सारस्वत ने कहा कि जब दशानन युद्ध भूमि में परास्त होकर अपने शरीर को त्याग कर विष्णु लोक को जा रहे थे, तब भगवान श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को राजनीति की शिक्षा ग्रहण करने के लिए रावण के पास भेजा था। भगवान श्रीराम ने रावण का सम्मान किया था तो उनके भक्त रावण का सम्मान क्यों नहीं करते। इस परंपरा पर रोक लगनी चाहिए। इसके लिए उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की जाएगी। 
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