1999 में जून का महीना देश के हर हिस्से में घाव दे रहा था। वीर शहीदों के पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटे घर आ रहे थे। कारगिल में पाकिस्तानी सेना के साथ युद्ध में 527 से ज्यादा वीरों को हमने खो दिया। 13 जून को मेरठ के दो सपूतों मेजर मनोज तलवार एवं हवलदार यशवीर सिंह ने अदम्य साहस का परिचय देकर अपने टारगेट पर तिरंगा लहरा दिया परंतु मातृभूमि पर कुर्बान हो गए। मेजर मनोज तलवार का तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर 16 जून को घर आया तो उनकी लिखी चिट्ठी भी उसी दिन आई। जिसमें उन्होंने लिखा था... डियर मम्मी-पापा चिंता मत करना, मैं युद्ध में अपना फर्ज निभा रहा हूं।
तिरंगे में लिपटकर आया था शहीद मेजर का पार्थिव शरीर, चिट्ठी में लिखा था, मम्मी-पापा मैं युद्ध में अपना फर्ज निभा रहा हूं
मुझे शादी नहीं करनी मां...
मेजर मनोज तलवार कुछ अलग ही मिट्टी के बने थे। एक बार मां और बहन ने शादी के लिए पूछा तो उन्होंने इतना ही कहा कि सेहरा नहीं बांध सकता मां, मेरा तो समर्पण देश के साथ जुड़ चुका है। मैं किसी लड़की का जीवन बर्बाद नहीं करूंगा। मूल रूप से जालंधर और अब मवाना रोड स्थित डिफेंस कॉलोनी निवासी कैप्टन पीएल तलवार के सुपुत्र मनोज तलवार का जन्म 29 अगस्त 1969 को मुजफ्फरनगर की गांधी कॉलोनी में हुआ था। 12वीं के बाद वे एनडीए में सेलेक्ट हो गए। वर्ष 1992 में कमीशन प्राप्त कर महार रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट बने। पहली तैनाती जम्मू कश्मीर में हुई। कमांडो की विशेष ट्रेनिंग के बाद उन्हें असम में उल्फा उग्रवादियों का सफाया करने के लिए भेजा गया। फरवरी 1999 में मेजर मनोज तलवार की रेजीमेंट फिरोजपुर पंजाब में तैनात हुई परंतु उन्होंने सियाचिन में नियुक्ति की मांग कर दी। जून में कारगिल में भीषण युद्ध छिड़ गया। उन्हें टुरटक से आगे दुश्मन पर हमले का टास्क दिया गया। 13 जून 1999 की शाम दुश्मनों को मारकर उन्होंने ऊंची चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। इसी बीच दुश्मन की तोप के गोले से वे शहीद हो गए। पिता कैंप्टन पीएल तलवार बताते हैं कि 16 जून की सुबह मनोज का पार्थिव शरीर मेरठ लाया गया। उसकी लिखी चिट्ठी भी उसी दिन पहुंची, जो उन्होंने 12 जून को चोटी पर जाने से पहले लिखी थी।
दो महीने चले कारगिल युद्ध में मेरठ के पांच सपूतों ने दिया था बलिदान
कारगिल युद्ध में मेरठ के पांच वीर शहीद हुए। इनमें मेजर मनोज तलवार, हवलदार यशवीर सिंह, लांस नायक सत्यपाल सिंह, नायक जुबैर अहमद और ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ने अदम्य साहस का परिचय देकर मातृभूमि की रक्षा की।
तोलोलिंग जीत के नायक थे यशवीर
तोलोलिंग पर पाकिस्तानी सेना सबसे ज्यादा नुकसान कर रही थी। तोलोलिंग, श्रीनगर- लेह राजमार्ग की एकमात्र प्रमुख कड़ी है। जिस पर कब्जा किए बिना दुश्मन को पीछे धकेलना आसान नहीं था। तोलोलिंग की लड़ाई पर कारगिल युद्ध की सूरत काफी हद तक निर्भर थी। तोलोलिंग पर कब्जा होने के बाद भारतीय सेना ने आसपास के क्षेत्र में अन्य चोटियों पर तेजी से जीत हासिल कर दुश्मन को पीछे धकेल दिया था। यह भारतीय सेना द्वारा अब तक की सबसे कठिन लड़ाई मानी जाती है।
तोलोलिंग लड़ाई की शुरुआत 20 मई 1999 को हुई थी। यदि लड़ाई नहीं की जाती तो दुश्मन कारगिल के लिए एकमात्र आपूर्ति मार्ग काट सकते थे। 12 जून को टू राजपूताना राइफल ने इस प्वाइंट पर हमला किया। मेजर विवेक गुप्ता इसका नेतृत्व कर रहे थे। वह 90 साथियों के साथ आगे बढ़े। यह पलटन प्वाइंट 4950 को अपने कब्जे में लेने के आखिरी चरण में थी। इसी बीच दुश्मनों ने गोलाबारी तेज कर दी। हवलदार यशवीर सिंह ने दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया। सीने पर गोलियां लगने के बावजूद वे ग्रेनेड के साथ पाकिस्तान के बंकरों पर टूट पड़े और उन्हें तबाह कर दिया। यशवीर सिंह को इस अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। बागपत के ग्राम सिरसली एवं वर्तमान में रोहटा बाईपास पर रहने वाली वीर नारी मुनेश देवी बताती हैं कि उनके पति जब शहीद हुए थे छोटा बेटा आठ साल और बड़ा 12 साल का था।
कारगिल युद्ध के बारे में
26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी। इस दिन को हर वर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। कारगिल युद्ध करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया। इस जंग में देश ने 527 से ज्यादा वीरों को खोया और 1300 से ज्यादा घायल हुए थे।
3 मई 1999 : एक चरवाहे ने भारतीय सेना को कारगिल में पाकिस्तान सेना द्वारा घुसपैठ कर कब्जा जमा लेने की सूचना दी।
5 मई : भारतीय सेना की पेट्रोलिंग टीम जानकारी लेने कारगिल पहुंची तो पाकिस्तानी सेना ने उसे पकड़ लिया और पांच जवानों की हत्या कर दी।
9 मई : पाकिस्तानियों की गोलाबारी से भारतीय सेना का कारगिल स्थित गोला बारूद का स्टोर नष्ट हो गया।
26 जुलाई : कारगिल युद्ध आधिकारिक तौर पर समाप्त हो गया।
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