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UP: एटा, जसराना, दिहुली...राजनीतिक उथल-पुथल का दाैर और जातियों में बंटे डकैत; 1981 के नरसंहार की पूरी कहानी
अमर उजाला न्यूज नेटवर्क, आगरा
Published by: धीरेन्द्र सिंह
Updated Wed, 19 Mar 2025 02:42 PM IST
सार
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शंभूनाथ शुक्ल ने जसराना क्षेत्र के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 को हुए सामूहिक नरसंहार की पूरी कहानी बयां की। अमर उजाला से उनका गहरा नाता रहा है। उन्होंने बताया कि इस समय वे संयोग से एटा में थे।
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Dihuli mass murder case
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
जसराना क्षेत्र के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 को हुए सामूहिक नरसंहार के बारे में जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शंभूनाथ शुक्ल ने बताया कि वे उस समय नपुर के जिस अखबार से जुड़े थे, उसने तीन जिलों की समीक्षा करने का काम सौंपा था। एक तरह से रोविंग करस्पोंडेंट। उन्होंने बताया कि मेरे पास एटा, हमीरपुर और सुल्तानपुर, तीनों जगह जाने के लिए कानपुर से बस के सिवाय और कोई जरिया नहीं। संयोग से 19 नवंबर 1981 को मैं एटा शहर में था। जिलाधिकारी कृष्णन और एसएसपी विक्रम सिंह के दफ्तरों में मायूसी छायी हुई थी। लगता था, कुछ अनहोनी हुई है। कोई कुछ नहीं बोल रहा था। प्रदेश के पूर्व मंत्री नवाब सिंह यादव के घर गया तो वहां भी खुसफुस थी। पता चला मैनपुरी जिले के जसराना थाने के गांव दिहुली में बड़ा हत्याकांड हुआ है। तब ये दोनों मैनपुरी जिले में थे, फिरोजाबाद नहीं बना था। मैंने जसराना जाने का निश्चय किया। अगली सुबह कंधे पर शाल और अटैची उठाकर चल दिया।
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एटा से बस लेकर मैं जसराना थाना पहुंचा। थाने में सन्नाटा पसरा था। मुंशी ने बताया की फोर्स दिहुली गई है वहां मुख्यमंत्री आ रहे हैं। मैंने उसे किसी वाहन का जुगाड़ करने को कहा तो बोला यहां से छह किमी दूर नहर की पटरी से उतर कर जाना है। कोई बस या टेंपो नहीं जाता तभी थाने में एक जीप आ कर रुकी, उसमें पीडब्लूडी के एक्सईएन थे, वे भी दिहुली जा रहे थे। मुंशी ने मुझे भी उस जीप में बिठा दिया। तिरपाल वाली विली जीप और मैं पीछे बैठा था। सूखी नहर की पटरी की धूल ने मुझे भी बिलकुल सफेद कर दिया। दिहुली में जा कर शाल से चेहरा झाड़ा और पीड़ितों की टोली की तरफ चला।
जैल सिंह ने पानी पिया, वीपी सिंह ने नहीं उसी समय आसमान से एक हेलिकॉप्टर उतरा और एक बुजुर्ग सिख शेरवानी पहने हुए उतरे। ये ज्ञानी जैल सिंह थे, उस समय के केंद्रीय गृह मंत्री। वे उन पीड़ित परिवारों में से एक के घर गए और उसकी झोपड़ी की देहरी पर बैठ गए, धूल भरी गंदी जमीन पर। परिवार की स्त्री ने बताया, सब ठकुरन की करतूत है। संतोषा सब का भून डारिस। पता चला संतोषा नाम के डकैत के गैंग ने 23 लोगों को गोलियों से भून डाला। एक जो घायल था, उसे अस्पताल पहुंचाया गया है। उसी वक्त एक और हेलिकाॅप्टर दिहुली में उतरा। मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह आ गए थे।
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जैल सिंह ने पानी पिया, वीपी सिंह ने नहीं उसी समय आसमान से एक हेलिकॉप्टर उतरा और एक बुजुर्ग सिख शेरवानी पहने हुए उतरे। ये ज्ञानी जैल सिंह थे, उस समय के केंद्रीय गृह मंत्री। वे उन पीड़ित परिवारों में से एक के घर गए और उसकी झोपड़ी की देहरी पर बैठ गए, धूल भरी गंदी जमीन पर। परिवार की स्त्री ने बताया, सब ठकुरन की करतूत है। संतोषा सब का भून डारिस। पता चला संतोषा नाम के डकैत के गैंग ने 23 लोगों को गोलियों से भून डाला। एक जो घायल था, उसे अस्पताल पहुंचाया गया है। उसी वक्त एक और हेलिकाॅप्टर दिहुली में उतरा। मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह आ गए थे।
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एटा के एसएसपी विक्रम सिंह, मैनपुरी के कर्मवीर सिंह और फर्रुखाबाद के एसएसपी मुस्तैद खड़े थे। सिर पर फर की टोपी लगाए और शेरवानी पहने वीपी सिंह भी वहीं आ गए। वे ज्ञानी जैल सिंह के पीछे खड़े थे। ज्ञानी जैल सिंह ने मुझे अपने साथ बिठा लिया था। रोती-कलपती स्त्री को ढांढ़स बंधा कर अचानक ज्ञानी जैल सिंह बोले, स्वरूप कुमारी पानी मंगवाओ। स्वरूप कुमारी बख्शी उस समय उत्तर प्रदेश की गृह मंत्री थीं। उन्होंने मैनपुरी के एसएसपी को कहा और उनसे होता हुआ ऑर्डर सिपाही दुबे तक पहुंचा। वे एक मुरादाबादी लोटे को धो-मांज कर उसमें कुएं का ताजा जल भर कर लाए।
उसके पहले ही उस अनुसूचित जाति की स्त्री ने अपने काई लगे घड़े से एलमूनियम के कटोरे में पानी निकालकर ज्ञानी जैल सिंह को पकड़ा दिया। उन्होंने वीपी सिंह से पूछा, विश्वनाथ पानी पियोगे, मुख्यमंत्री ने नहीं में सिर हिला दिया। ज्ञानी जैल सिंह उस कटोरे का पानी पी गए। मुख्यमंत्री ने सिपाही द्वारा लाए पानी को पिया। मैं सोच रहा था, यह अभिजात्यता ही इस हत्याकांड की जड़ में है। दोनों बड़े नेता। एक उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री दूसरा पंजाब का मुख्यमंत्री रहा और अब केंद्र में गृहमंत्री लेकिन पानी किसका पीना है, यह उनका क्लास तय करता था। दलित राजनीति का उभारछोटा-सा गाँव था। अधिकतर आबादी हरिजनों की, जिन्हें अब दलित कहते हैं। कुछ यादव और कुछ ठाकुर।
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उसके पहले ही उस अनुसूचित जाति की स्त्री ने अपने काई लगे घड़े से एलमूनियम के कटोरे में पानी निकालकर ज्ञानी जैल सिंह को पकड़ा दिया। उन्होंने वीपी सिंह से पूछा, विश्वनाथ पानी पियोगे, मुख्यमंत्री ने नहीं में सिर हिला दिया। ज्ञानी जैल सिंह उस कटोरे का पानी पी गए। मुख्यमंत्री ने सिपाही द्वारा लाए पानी को पिया। मैं सोच रहा था, यह अभिजात्यता ही इस हत्याकांड की जड़ में है। दोनों बड़े नेता। एक उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री दूसरा पंजाब का मुख्यमंत्री रहा और अब केंद्र में गृहमंत्री लेकिन पानी किसका पीना है, यह उनका क्लास तय करता था। दलित राजनीति का उभारछोटा-सा गाँव था। अधिकतर आबादी हरिजनों की, जिन्हें अब दलित कहते हैं। कुछ यादव और कुछ ठाकुर।
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यह वह दौर था, जब उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियां उभर रही थीं और वे चौधरी चरण सिंह के लोकदल की तरफ़ शिफ्ट हो रही थीं। तब लोकदल जनता पार्टी में विलीन हो चुका था। एक साल पहले पुराना जनसंघ अपनी भाजपा बना चुका था। तब भाजपा के अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी थे, जिन्होंने इसे सेकुलर और सोशलिस्ट बनाने का दांव फेंका था। पर इंदिरा गांधी अब भी हरिजनों, ब्राह्मणों और मुसलमानों के भरोसे 1980 में 350 सीटें ले कर आई थीं। तब तक कांशीराम का डीएस फोर बन चुका था और वे कांग्रेस के दलितों को चमचा कहते थे।
उन्होंने चमचा युग को ख़त्म करो का नारा दे कर साइकिल यात्रा भी निकाली थी। अगड़ों और पिछड़ों का संघर्षउत्तर प्रदेश की मध्यवर्ती जातियों में से कुर्मियों के पास जमीन थी और अहीरों-गड़रियों के पास ढोर थे तथा काछी सब्जी बोने का काम करते थे। इन्हें अपनी उपज को बेचने के लिए शहरी बाजार मिले इससे इन जातियों के पास पैसा आया तब इनके अंदर इच्छा शक्ति पैदा हुई कि समाज के अंदर उन्हें वही रुतबा शामिल हो जो कथित ऊंची जातियों को हासिल थी पर इसके लिए उन्हें अपने रॉबिनहुड चाहिए थे ताकि उनकी छवि एक दबी-कुचली जाति के रूप में नहीं बल्कि दबंग, ताकतवर और रौबदाब वाली जाति के रूप में उभरे।
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उन्होंने चमचा युग को ख़त्म करो का नारा दे कर साइकिल यात्रा भी निकाली थी। अगड़ों और पिछड़ों का संघर्षउत्तर प्रदेश की मध्यवर्ती जातियों में से कुर्मियों के पास जमीन थी और अहीरों-गड़रियों के पास ढोर थे तथा काछी सब्जी बोने का काम करते थे। इन्हें अपनी उपज को बेचने के लिए शहरी बाजार मिले इससे इन जातियों के पास पैसा आया तब इनके अंदर इच्छा शक्ति पैदा हुई कि समाज के अंदर उन्हें वही रुतबा शामिल हो जो कथित ऊंची जातियों को हासिल थी पर इसके लिए उन्हें अपने रॉबिनहुड चाहिए थे ताकि उनकी छवि एक दबी-कुचली जाति के रूप में नहीं बल्कि दबंग, ताकतवर और रौबदाब वाली जाति के रूप में उभरे।
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अहीरों ने अपनी लाठियां भांजीं। मगर अगड़ों ने पुलिस की मदद से उन्हें जेल में डलवाया लेकिन तब तक अगड़ी जातियों के ज्यादातर डकैत आत्मसमर्पण कर चुके थे। अब गंगा यमुना के दोआबे में छविराम यादव, अनार सिंह यादव, विक्रम मल्लाह, मलखान सिंह और मुस्तकीम का राज था। महिला डकैतों की एक नई फौज आ रही थी जिसमें कुसुमा नाइन व फूलन प्रमुख थीं। छविराम और अनार सिंह का एटा व मैनपुरी के जंगलों में राज था तो विक्रम, मलखान व फूलन का यमुना व चंबल के बीहड़ों में।
मुस्तकीम कानपुर के देहाती क्षेत्रों में सेंगुर के जंगलों में डेरा डाले था। ये सारे डकैत मध्यवर्ती जातियों के थे। अगड़ी जातियों के पराभव का दाैर उस समय वीपी सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे। यह उनके लिए चुनौती थी। एक तरफ उनके सजातीय लोगों का दबाव और दूसरी तरफ गांवों में इन डाकुओं को उनकी जातियों का मिलता समर्थन। वीपी सिंह तय नहीं कर पा रहे थे।
मुस्तकीम कानपुर के देहाती क्षेत्रों में सेंगुर के जंगलों में डेरा डाले था। ये सारे डकैत मध्यवर्ती जातियों के थे। अगड़ी जातियों के पराभव का दाैर उस समय वीपी सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे। यह उनके लिए चुनौती थी। एक तरफ उनके सजातीय लोगों का दबाव और दूसरी तरफ गांवों में इन डाकुओं को उनकी जातियों का मिलता समर्थन। वीपी सिंह तय नहीं कर पा रहे थे।
यह मध्य उत्तर प्रदेश में अगड़ी जातियों के पराभव का काल था। गांवों पर राज किसका चलेगा। यादव, कुर्मी और लोध जैसी जातियां गांवों में चले सुधार कार्यक्रमों और सामुदायिक विकास योजनाओं तथा गांव तक फैलती सड़कों व ट्रांसपोर्ट सुलभ हो जाने के कारण संपन्न हो रही थीं। शहरों में दूध और खोए की बढ़ती मांग ने अहीरों को आर्थिक रूप से मजबूत बना दिया था। यूं भी अहीर ज्यादातर हाई वे या शहर के पास स्थित गांवों में ही बसते थे। लाठी से मजबूत वे थे ही ऐसे में वे गांवों में सामंती जातियों से दबकर क्यों रहें। उनके उभार ने उन्हें कई राजनेता भी दिए।
यूपी में चंद्रजीत यादव या रामनरेश यादव इन जातियों से भले रहे हों लेकिन अहीरों को नायक मुलायम सिंह के रूप में मिले। इसी तरह कुर्मी नरेंद्र सिंह के साथ जुड़े व लोधों के नेता स्वामी प्रसाद बने। लेकिन इनमें से मुलायम सिंह के सिवाय किसी में भी न तो ऊर्जा थी और न ही चातुर्य। मुलायम सिंह को अगड़ी जातियों में सबसे ज्यादा घृणा मिली लेकिन उतनी ही उन्हें यादवों व मुसलमानों में प्रतिष्ठा भी।
यूपी में चंद्रजीत यादव या रामनरेश यादव इन जातियों से भले रहे हों लेकिन अहीरों को नायक मुलायम सिंह के रूप में मिले। इसी तरह कुर्मी नरेंद्र सिंह के साथ जुड़े व लोधों के नेता स्वामी प्रसाद बने। लेकिन इनमें से मुलायम सिंह के सिवाय किसी में भी न तो ऊर्जा थी और न ही चातुर्य। मुलायम सिंह को अगड़ी जातियों में सबसे ज्यादा घृणा मिली लेकिन उतनी ही उन्हें यादवों व मुसलमानों में प्रतिष्ठा भी।