AMU: कैडमियम से भिंडी को बचाएगा क्वेरसेटिन और ग्लूकोज, 55 फीसदी उपज बढ़ेगी, किसानों को होगा मुनाफा
भिंडी की उपज और किसानों का मुनाफा बढ़ाने का तरीका अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के वनस्पति विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने खोज लिया है।
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पानी के जरिये खेतों तक पहुंच रहे कैडमियम (जहरीली भारी धातु) के कारण भिंडी की फसल को नुकसान पहुंच रहा है। उपज कम होने से किसानों को आर्थिक क्षति पहुंच रही है। अब भिंडी की उपज और किसानों का मुनाफा बढ़ाने का तरीका अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के वनस्पति विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने खोज लिया है। पांच साल तक हुए शोध में यह सामने आया है कि क्वेरसेटिन और ग्लूकोज के छिड़काव से भिंडी की उपज 55 फीसदी बढ़ जाती है।
प्रियंका सिंह ने यह शोध विभाग के प्रो. शम्सुल हयात के मार्गदर्शन में किया। शोधार्थी प्रियंका सिंह ने भिंडी की दो किस्म नीलम और जूही पर शोध किया। फसल पर क्वेरसेटिन और ग्लूकोज का छिड़काव कर कैडमियम के प्रभावों को देखा। सभी प्रयोग प्राकृतिक परिस्थितियों में गमलों में किए गए।
बुलंदशहर, अलीगढ़ व आगरा में हुए शोध में पाया गया कि कैडमियम की बढ़ती मात्रा से भिंडी की वृद्धि, प्रकाश संश्लेषण और उपज में भारी गिरावट आती है। साथ ही भिंडी में हानिकारक रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज (आरओएस) का स्तर बढ़ जाता है। इससे कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है। जब भिंडी की फसल पर निर्धारित मानक के हिसाब से क्वेरसेटिन और ग्लूकोज का छिड़काव किया गया तो कैडमियम के दुष्प्रभावों में उल्लेखनीय कमी देखी गई।
अलीगढ़ में पहली बार क्वेरसेटिन पर शोध किया गया है। क्वेरसेटिन और ग्लूकोज के छिड़काव से भिंडी का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, जिसकी कैडमियम से पैदावार कम होती है। - प्रो. शम्सुल हयात, वनस्पति विज्ञान विभाग, एएमयू
कैडमियम से एक क्विंटल भिंडी के उत्पादन में 60 फीसदी की गिरावट
प्रो. हयात ने बताया कि कैडमियम से एक क्विंटल में से 60 किलो भिंडी कम पैदा होती है। अगर भिंडी पर क्वेरसेटिन और ग्लूकोज का छिड़काव किया जाए तो एक क्विंटल में से 95 किलो भिंडी पैदा होगी। इससे किसानों को मुनाफा होगा। यह शोध प्रदूषित मिट्टी में फसल उत्पादन के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है।
कैडमियम क्या है
कैडमियम पृथ्वी की पपड़ी में पाया जाने वाला एक नरम, चांदी-सफेद, विषैला भारी धातु है। इसका उपयोग बैटरी, पेंट, प्लास्टिक स्टेबलाइजर्स और धातु कोटिंग में होता है। यह मिट्टी, हवा, पानी और भोजन में पाया जाता है। इसके संपर्क से फेफड़े, गुर्दे और हड्डियां प्रभावित हो सकती हैं।
खेतों तक कैसे पहुंचता है
फैक्टरी से निकलने वाला कचरा नदियों, नालों में पहुंच जाता है। जब इस पानी से सिंचाई होती है तो फसल में प्रभावित होती है।
