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हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी : जज का आचरण ऐसा हो कि न्यायिक प्रणाली पर आम आदमी का भरोसा कायम रहे

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Sun, 11 May 2025 05:33 AM IST
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सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कौशाम्बी में तैनात रहे विशेष न्यायाधीश रमेश कुमार यादव को दी गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को रद्द करने से इन्कार कर दिया। कहा कि हमें यह मानने में हिचकिचाहट नहीं है कि सेवा अभिलेखों में मौजूद प्रतिकूल समाग्रियां ऐसी हैं कि उन्हें जज के रूप में बने रहने का कोई हक नहीं।

High Court harsh comment judge conduct should be such that the common man's trust in the judicial
अदालत का फैसला। - फोटो : अमर उजाला।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कौशाम्बी में तैनात रहे विशेष न्यायाधीश को दी गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को रद्द करने से इन्कार कर दिया। कहा कि हमें यह मानने में हिचकिचाहट नहीं है कि सेवा अभिलेखों में मौजूद प्रतिकूल समाग्रियां ऐसी हैं कि उन्हें जज के रूप में बने रहने का कोई हक नहीं। एक जज का आचरण ऐसा होना चााहिए कि न्यायिक प्रणाली के प्रति आम आदमी का भरोसा कायम रह सके।

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यह तल्ख टिप्पणी न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की अदालत ने रमेश कुमार यादव की याचिका खारिज करते हुए की है। पीसीएसजे रमेश कुमार यादव 2001 में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) नियुक्त हुए। 2006 में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के रूप में पदोन्नत होने के बाद उन्हें उच्च न्यायिक सेवा में पदोन्नति देते हुए कौशाम्बी में विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम) के पद पर तैनाती दी गई थी। उनकी सेवानिवृत्ति फरवरी 2026 में पूरी होती, लेकिन 2021 में उन्हें प्रशासनिक जज की ओर से दी गई प्रतिकूल प्रविष्टि के आधार पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। इसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। कहा कि प्रशासनिक जज की प्रतिकूल टिप्पणी अंतिम रूप ले चुकी है। वर्ष 2008-09 में प्रशासनिक जज की ओर से दी गई प्रतिकूल प्रविष्टि की सत्यता पर मौजूदा याचिका में टिप्पणी नहीं की जा सकती। खासकर तब जब प्रतिकूल टिप्पणी को चुनौती नहीं दी गई है। हालांकि, 2008-09 में याची के खिलाफ प्रशासनिक जज की ओर से दर्ज की गई प्रतिकूल टिप्पणी रिकॉर्ड में मौजूद है। इसके मुताबिक स्क्रीनिंग समिति की ओर से अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सिफारिश जायज है। याचिका में स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों के खिलाफ किसी भी तरह के पक्षपात या दुर्भावना का आरोप नहीं लगाया गया है। ऐसी परिस्थितियों में याची को अनिवार्य सेवानिवृत्त दिए जाने के आदेश में हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।

 

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