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High Court: सजा पूरी होने के बाद भी जेल में रखना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है, यह अनुच्छेद 21 का घोर उल्लंघन

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Wed, 17 Dec 2025 01:35 PM IST
सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए उस दोषी को तत्काल रिहा करने का देश दिया है। जो 10 साल की पूरी सजा काटने के बावजूद 2.5 महीने तक जेल में बंद रहा।

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Keeping someone in jail even after completion of sentence is a violation of personal liberty
अदालत। - फोटो : ANI
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विस्तार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए उस दोषी को तत्काल रिहा करने का देश दिया है। जो 10 साल की पूरी सजा काटने के बावजूद 2.5 महीने तक जेल में बंद रहा। कारण था 27 लाख रुपये का जुर्माना जमा न कर पाना। जबकि हाईकोर्ट पहले ही जुर्माने की वसूली पर रोक लगा चुका था। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का घोर उल्लंघन माना। यह आदेश न्यायमूर्ति समीर जैन की एकल पीठ ने विनोद कुमार की याचिका पर दिया।

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विनोद कुमार को ट्रायल कोर्ट ने फरवरी 2013 में दोषी ठहराते हुए अधिकतम 10 वर्ष के कारावास और 27 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। जुर्माना न देने की स्थिति में उसे 4 वर्ष 7 माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी थी। विनोद कुमार ने सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दी। सितंबर में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने कोर्ट को बताया कि अभियुक्त मूल सजा पूरी कर चुका है। केवल जुर्माना जमा न होने के कारण जेल में बंद है। इस पर हाईकोर्ट ने 24 सितंबर को जुर्माने की वसूली पर रोक लगाते हुए कहा था कि मामलों के भारी बोझ के चलते अपील की जल्द सुनवाई संभव नहीं है। इसके बावजूद विनोद कुमार को जेल से रिहा नहीं किया गया।

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कोर्ट ने कहा

“यह अत्यंत चौंकाने वाला है कि अभियुक्त आज तक जेल में बंद है। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह दोषी ही क्यों न हो, बिना वैध आदेश के हिरासत में नहीं रखा जा सकता। जब सजा पूरी हो चुकी है और जुर्माने पर इस न्यायालय ने रोक लगा दी है, तब आगे की हिरासत पूरी तरह असंविधानिक है।” हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को फटकार लगाते हुए विनोद कुमार को व्यक्तिगत मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया।आ

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