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UP : यूपी में खत्म होगी पैरोकारी की व्यवस्था, अब थानों से हाईकोर्ट को ई-मेल पर मिलेगी जानकारी

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Fri, 26 Dec 2025 07:18 AM IST
सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में डीजीपी की ओर से प्रस्तुत किए गए सर्कुलर के अनुसार अब पुलिस थानों से सरकारी वकीलों को केस डायरी और अन्य निर्देश व्यक्तिगत रूप से भेजने के बजाय सीधे आधिकारिक ई-मेल के माध्यम से भेजे जाएंगे।

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The system of advocacy will end in UP, now the High Court will get information from police stations via email.
इलाहाबाद हाईकोर्ट। - फोटो : अमर उजाला।
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विस्तार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में डीजीपी की ओर से प्रस्तुत किए गए सर्कुलर के अनुसार अब पुलिस थानों से सरकारी वकीलों को केस डायरी और अन्य निर्देश व्यक्तिगत रूप से भेजने के बजाय सीधे आधिकारिक ई-मेल के माध्यम से भेजे जाएंगे। ऐसे में अब पैरोकार की व्यवस्था खत्म हो जाएगी। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने रतवार सिंह की जमानत याचिका पर दिया है।

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कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की ओर से 17 दिसंबर 2025 को जारी उस सर्कुलर को रिकॉर्ड पर लिया, जिसमें सभी जिला पुलिस प्रमुखों को निर्देश दिया गया है कि जमानत और अन्य आपराधिक मामलों की जानकारी अब केवल इलेक्ट्रॉनिक मोड में संयुक्त निदेशक (अभियोजन) की आईडी पर भेजी जाए।

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इस तकनीकी सुधार के लिए कोर्ट ने एनआईसी दिल्ली के डीडीजी शशिकांत शर्मा और एनआईसी इलाहाबाद हाईकोर्ट के संयुक्त निदेशक मार्कंडेय श्रीवास्तव के योगदान की विशेष प्रशंसा की। इन अधिकारियों ने ''ई-समन'' और ''बीओएमएस'' (बेल ऑर्डर मैनेजमेंट सिस्टम जैसे प्रोजेक्ट्स को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

यह आदेश रतवार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में आया। याची पर सोनभद्र के राबर्ट्सगंज थाने में हत्या का प्रयास के आरोप में प्राथमिकी दर्ज है। उसने जमानत के हाईकोर्ट में अर्जी दायर की। कोर्ट ने पक्षों को सुनने व मेडिकल रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद पाया कि सभी चोटें सामान्य प्रकृति की। याची 12 अक्तूबर 2025 से जेल में बंद है। अन्य तथ्यों के मद्देनजर उसे सशर्त जमानत दे दी।

कोर्ट ने यह भी कहा कि अब जमानत आदेशों के लिए भौतिक प्रतियों का इंतजार नहीं करना होगा। ट्रायल कोर्ट को निर्देशित किया गया है कि वे रिहाई का आदेश सीधे जेल अधीक्षक को ''बीओएमएस'' के माध्यम से भेजें ताकि देरी न हो। आवेदक को हाईकोर्ट की वेबसाइट से डाउनलोड की गई कॉपी के आधार पर भी रिहा किया जा सकेगा, बशर्ते वकील 15 दिनों में प्रमाणित प्रति देने का हलफनामा दें।

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