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Barabanki News: विश्व के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है भारतीय ज्ञान परंपरा
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जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल पीजी कॉलेज में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में मौजूद शिक्षक व छात्र
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बाराबंकी। भारतीय ज्ञान परंपरा भारत ही नहीं विश्व के लिए वरदान है। ये बात हरेश प्रताप सिंह ने व्यक्त की। वे हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज, जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल पीजी कॉलेज और प्रज्ञाप्रवाह के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन बोल रहे थे। इस दौरान भारतीय ज्ञान परंपरा, संस्कृति और स्वदेशी समाधान मॉडल पर गहन विचार-विमर्श हुआ। देश-विदेश से जुड़े शोधार्थियों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए।
प्रथम तकनीकी सत्र में ऑनलाइन जुड़े लद्दाख विश्वविद्यालय कुलपति प्रोॅ. साकेत कुशवाहा ने कहा कि ज्ञान पुनर्जागरण केवल ज्ञान का पुनः स्मरण नहीं है बल्कि पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक सोच और समकालीन समस्याओं के समाधान से जोड़ने का प्रयास है। स्थानीय समस्याओं के समाधान स्थानिक ज्ञान से बेहतर हो सकते हैं। नवाचार का अर्थ केवल तकनीकी विकास नहीं नई परिस्थिति में नए समाधान खोजना भी है। प्रथम तकनीकी सत्र का संचालन प्रो मनीष पांडेय तथा प्रो. सुनीता यादव ने आभार व्यक्त किया।
संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग के सदस्य हरेश प्रताप सिंह ने भारतीय ज्ञान परंपरा को भारत ही नहीं विश्व के लिए वरदान बताया। अखिल भारतीय टोली प्रज्ञा प्रवाह के सदस्य रामाशीष ने स्वदेशी ज्ञान को ही भारत की विभिन्न समस्याओं का समाधान बताया। इस सत्र में प्रतिवेदन वाचन प्रो. विजय वर्मा ने किया। संगोष्ठी की संयोजिका डॉ अर्चना सिंह ने संगोष्ठी में आए विद्वान अतिथियों , शोधार्थियों एवं सहयोगियों का आभार व्यक्त किया। अंत में प्राचार्य प्रो. सीताराम सिंह ने सफल संगोष्ठी के आयोजन के लिए आयोजकों ,विद्वान व्याख्याताओं, शोधार्थियों की सराहना की।
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प्रथम तकनीकी सत्र में ऑनलाइन जुड़े लद्दाख विश्वविद्यालय कुलपति प्रोॅ. साकेत कुशवाहा ने कहा कि ज्ञान पुनर्जागरण केवल ज्ञान का पुनः स्मरण नहीं है बल्कि पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक सोच और समकालीन समस्याओं के समाधान से जोड़ने का प्रयास है। स्थानीय समस्याओं के समाधान स्थानिक ज्ञान से बेहतर हो सकते हैं। नवाचार का अर्थ केवल तकनीकी विकास नहीं नई परिस्थिति में नए समाधान खोजना भी है। प्रथम तकनीकी सत्र का संचालन प्रो मनीष पांडेय तथा प्रो. सुनीता यादव ने आभार व्यक्त किया।
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संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग के सदस्य हरेश प्रताप सिंह ने भारतीय ज्ञान परंपरा को भारत ही नहीं विश्व के लिए वरदान बताया। अखिल भारतीय टोली प्रज्ञा प्रवाह के सदस्य रामाशीष ने स्वदेशी ज्ञान को ही भारत की विभिन्न समस्याओं का समाधान बताया। इस सत्र में प्रतिवेदन वाचन प्रो. विजय वर्मा ने किया। संगोष्ठी की संयोजिका डॉ अर्चना सिंह ने संगोष्ठी में आए विद्वान अतिथियों , शोधार्थियों एवं सहयोगियों का आभार व्यक्त किया। अंत में प्राचार्य प्रो. सीताराम सिंह ने सफल संगोष्ठी के आयोजन के लिए आयोजकों ,विद्वान व्याख्याताओं, शोधार्थियों की सराहना की।