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Hathras News: भूखा रखा गया...घर वापसी की उम्मीद खो चुके थे दोनों
संवाद न्यूज एजेंसी, हाथरस
Updated Fri, 21 Nov 2025 02:49 AM IST
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मर्चेंट नेवी में नौकरी की आस में थाईलैंड पहुंचते ही छात्र-छात्रा एक चाइनीज साइबर ठग गिरोह के चंगुल में फंस गए थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। घर वापसी के बाद दहशत भरे अंदाज में अपनी कहानी सुनाते हुए दोनों कहते हैं कि काम करने से मना करने पर उन्हें भूखा तक रखा जाता था। उन्हें कतई यह नहीं लगा था कि अब कभी अपने घर वापस पहुंच पाएंगे। थाईलैंड से ही गिरोह के एजेंट ने उन्हें अपने चंगुल में फंसा लिया था, इसलिए बात मानने के सिवाय उनके पास कोई चारा न था।
छात्र और छात्रा ने बताया कि सात सितंबर को थाईलैंड के बैंकॉक में लैंडिंग हुई। संजय के बताए अनुसार एयरपोर्ट के बाहर ही कार सवार उन्हें मिला। संजय के भरोसे के अनुसार वे उस कार में बैठ गए। छात्र ने बताया कि छह घंटे तक उन्हें कार में घुमाया गया। चालक से पूछने का प्रयास किया तो वह केवल थाई भाषा में ही बात कर रहा था। मोबाइल पर भाषा ट्रांसलेट कर उससे बात करने का प्रयास किया, जवाब मिला कि जहां पहुंचना है, वहां पहुंचा देगा।
छह घंटे के बाद वे एक होटल में पहुंचे, यहां कुछ देर इंतजार किया। इसके बाद दूसरी कार में बैठा दिया। इस तरह कई बार गाड़ियां बदलीं गईं। उसके बाद से उन्हें कुछ अनहोनी का एहसास होने लगा था।
छात्र ने बताया कि बाद में जब उन्हें एक जंगल में छोड़ दिया गया, तब वे पूरी तरह समझ गए कि कुछ तो गड़बड़ है। यहां चार बाइकों पर लोग आए। दो बाइकों पर सामान रखा और दो बाइकों से उन्हें ले गए तथा काफी दूर जाकर एक झोपड़ी में छोड़ दिया।
तब तक रात हो चुकी थी। वहीं रात बिताई सुबह एक और कार आई। इसी कार ने थाईलैंड पार कराकर म्यांमार में उन्हें एक एजेंट के हवाले कर दिया गया। यहां एक कमरे में उन्हें रखा गया। वहां से पास ही में किसी कंपनी में ले गए, जहां टाइपिंग कराई गई।
साइबर ठगी करने मना किया तो रखा भूखा
पीड़ित युवक व युवती ने बताया कि टाइपिंग का काम करने के दौरान एक चाइनीज व्यक्ति आया। उससे पता चला कि यहां साइबर सलेवरी का काम होता है और उन्हें भी जबरन यहीं रहना पड़ेगा। मना किया तो उन्हें धमकाया गया तथा वहां एजेंट ने उनके पासपोर्ट व मोबाइल फोन छीन लिए। तीन दिनों तक उन्हें कमरों में बंद रखा तथा खानी-पीना नहीं दिया, 18-18 घंटे काम कराया गया। वापस जाने के लिए दोनों से 20-20 हजार डॉलर मांगे गए। पैसा जोड़ने की मजबूरी में लगभग डेढ़ महीने तक उन्होंने वहां काम किया, लेकिन कोई पैसा नहीं मिला। केवल खाना पीना दिया जाता था।
आर्मी ने कराया बॉर्डर पार
छात्र के अनुसार एक दिन कंपनी में भगदड़ व अफरा-तफरी मच गई। कंपनी के ही लोगों ने कहा कि जिसे जाना है, जा सकता है। वहां कोई रेस्क्यू टीम पहुंची थी। वे लोग म्यांमार आर्मी की मदद से बॉर्डर पार कर थाईलैंड पहुंचे। थाईलैंड आर्मी ने पूछताछ की। उन्होंने बताया कि वे भारत वापस जाना चाहते हैं। वहां से उन्हें थाईलैंड इमीग्रेशन भेज दिया गया।
बॉर्डर पार करने पर लगा जुर्माना
थाईलैंड इमीग्रेशन में दोनों को नौ दिन बिताने पड़े। छात्र ने बताया कि एक-एक दिन भारी पड़ रहा था। लग नहीं रहा था कि वे घर लौट पाएंगे भी या नहीं। वहां गहन पूछताछ पूरी होने के बाद भारतीय दूतावास के लोग आए। उनकी मदद से थाईलैंड कोर्ट में पेश हुए, जहां बॉर्डर पार करने पर दोनों पर 35 सौ थाई बात का जुर्माना लगा। इसके बाद वे कारगो से सात नवंबर को दिल्ली आ सके। यहां गाजियाबाद में सीबीआई ने भी पूछताछ की। इसके बाद वे घर पहुंच सके। घर वालों को जब पूरे घटनाक्रम को बताया तो उनके होश उड़ गए। परिवार ने राहत की सांस ली।
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छात्र और छात्रा ने बताया कि सात सितंबर को थाईलैंड के बैंकॉक में लैंडिंग हुई। संजय के बताए अनुसार एयरपोर्ट के बाहर ही कार सवार उन्हें मिला। संजय के भरोसे के अनुसार वे उस कार में बैठ गए। छात्र ने बताया कि छह घंटे तक उन्हें कार में घुमाया गया। चालक से पूछने का प्रयास किया तो वह केवल थाई भाषा में ही बात कर रहा था। मोबाइल पर भाषा ट्रांसलेट कर उससे बात करने का प्रयास किया, जवाब मिला कि जहां पहुंचना है, वहां पहुंचा देगा।
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छह घंटे के बाद वे एक होटल में पहुंचे, यहां कुछ देर इंतजार किया। इसके बाद दूसरी कार में बैठा दिया। इस तरह कई बार गाड़ियां बदलीं गईं। उसके बाद से उन्हें कुछ अनहोनी का एहसास होने लगा था।
छात्र ने बताया कि बाद में जब उन्हें एक जंगल में छोड़ दिया गया, तब वे पूरी तरह समझ गए कि कुछ तो गड़बड़ है। यहां चार बाइकों पर लोग आए। दो बाइकों पर सामान रखा और दो बाइकों से उन्हें ले गए तथा काफी दूर जाकर एक झोपड़ी में छोड़ दिया।
तब तक रात हो चुकी थी। वहीं रात बिताई सुबह एक और कार आई। इसी कार ने थाईलैंड पार कराकर म्यांमार में उन्हें एक एजेंट के हवाले कर दिया गया। यहां एक कमरे में उन्हें रखा गया। वहां से पास ही में किसी कंपनी में ले गए, जहां टाइपिंग कराई गई।
साइबर ठगी करने मना किया तो रखा भूखा
पीड़ित युवक व युवती ने बताया कि टाइपिंग का काम करने के दौरान एक चाइनीज व्यक्ति आया। उससे पता चला कि यहां साइबर सलेवरी का काम होता है और उन्हें भी जबरन यहीं रहना पड़ेगा। मना किया तो उन्हें धमकाया गया तथा वहां एजेंट ने उनके पासपोर्ट व मोबाइल फोन छीन लिए। तीन दिनों तक उन्हें कमरों में बंद रखा तथा खानी-पीना नहीं दिया, 18-18 घंटे काम कराया गया। वापस जाने के लिए दोनों से 20-20 हजार डॉलर मांगे गए। पैसा जोड़ने की मजबूरी में लगभग डेढ़ महीने तक उन्होंने वहां काम किया, लेकिन कोई पैसा नहीं मिला। केवल खाना पीना दिया जाता था।
आर्मी ने कराया बॉर्डर पार
छात्र के अनुसार एक दिन कंपनी में भगदड़ व अफरा-तफरी मच गई। कंपनी के ही लोगों ने कहा कि जिसे जाना है, जा सकता है। वहां कोई रेस्क्यू टीम पहुंची थी। वे लोग म्यांमार आर्मी की मदद से बॉर्डर पार कर थाईलैंड पहुंचे। थाईलैंड आर्मी ने पूछताछ की। उन्होंने बताया कि वे भारत वापस जाना चाहते हैं। वहां से उन्हें थाईलैंड इमीग्रेशन भेज दिया गया।
बॉर्डर पार करने पर लगा जुर्माना
थाईलैंड इमीग्रेशन में दोनों को नौ दिन बिताने पड़े। छात्र ने बताया कि एक-एक दिन भारी पड़ रहा था। लग नहीं रहा था कि वे घर लौट पाएंगे भी या नहीं। वहां गहन पूछताछ पूरी होने के बाद भारतीय दूतावास के लोग आए। उनकी मदद से थाईलैंड कोर्ट में पेश हुए, जहां बॉर्डर पार करने पर दोनों पर 35 सौ थाई बात का जुर्माना लगा। इसके बाद वे कारगो से सात नवंबर को दिल्ली आ सके। यहां गाजियाबाद में सीबीआई ने भी पूछताछ की। इसके बाद वे घर पहुंच सके। घर वालों को जब पूरे घटनाक्रम को बताया तो उनके होश उड़ गए। परिवार ने राहत की सांस ली।