सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Uttar Pradesh ›   Lalitpur News ›   Bravehearts of the 1971 War: Lalitpur's brave men remained at the border despite being wounded.

1971 की जंग के जांबाज : घायल होकर भी सीमा पर डटे रहे ललितपुर के वीर

Jhansi Bureau झांसी ब्यूरो
Updated Tue, 16 Dec 2025 12:35 AM IST
विज्ञापन
Bravehearts of the 1971 War: Lalitpur's brave men remained at the border despite being wounded.
विज्ञापन
विजय दिवस पर विशेष
Trending Videos

-पाकिस्तान को करारी शिकस्त दिलाने में जनपद के सैनिकों का रहा अहम योगदान

अमर उजाला ब्यूरो
ललितपुर। देश की रक्षा के लिए जान की बाजी लगाने वाले वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के नायकों में ललितपुर जनपद के वीर सैनिकों का योगदान भी अविस्मरणीय रहा। भले ही आज वे सेवानिवृत्त हो चुके हों, लेकिन युद्ध के वे पल आज भी उनकी स्मृतियों में जीवंत हैं। उनका कहना है कि दुश्मन की हर गोली का भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। घायल होने के बाद भी हौसले नहीं टूटे और 16 दिसंबर 1971 को भारत को ऐतिहासिक विजय दिलाई गई। विजय दिवस के अवसर पर पेश हैं 1971 की जंग के उन जांबाजों के संस्मरण—

बम से घायल होने के बाद भी नहीं छोड़ा मोर्चा
फर्स्ट राजपूत रेजीमेंट में तैनात नायक भगवान सिंह चौहान 1971 के युद्ध के दौरान अगरतला में तैनात थे। युद्ध शुरू होते ही उन्होंने बांग्लादेश सीमा पर मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने बताया कि लड़ाई के दौरान एक गोला उनके बाएं पैर के पास फटा, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और करीब 24 घंटे तक सीमा पर डटे रहे।
विज्ञापन
विज्ञापन

बाद में उन्हें हेलीकॉप्टर से गुवाहाटी ले जाया गया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद कानपुर रेफर किया गया। पैर की हड्डी टूटने के कारण झांसी, अंबाला और बेंगलुरु में कई ऑपरेशन कराने पड़े। स्वस्थ होने के बाद उन्होंने पुनः ड्यूटी ज्वाइन की और 11 वर्षों तक देश सेवा के बाद वर्ष 1982 में सेवानिवृत्त हुए। देश सेवा के लिए उन्हें आहत पदक, नागा हिल्स पदक, पूर्वी स्टार, पश्चिमी स्टार, हिमालय पदक, विदेश सेवा पदक, संग्राम पदक सहित कई सैन्य सम्मान प्राप्त हुए।

दो राइफलों से बनाते थे स्ट्रेचर, बचाते थे साथियों की जान
भारत-पाक युद्ध के दौरान सिक्किम में तैनात कैप्टन अशोक कुमार कौशिक ने बताया कि युद्ध के समय घायल सैनिकों को सुरक्षित कैंप तक पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती होती थी। कई बार स्ट्रेचर उपलब्ध नहीं होता था, तब दो राइफलों की सीलिंग खोलकर अस्थायी स्ट्रेचर बनाया जाता था।
उन्होंने बताया कि कभी-कभी घायल साथी की बेल्ट और अपनी बेल्ट जोड़कर उन्हें घसीटते हुए सुरक्षित स्थान तक लाना पड़ता था। चारों ओर गोलाबारी के बीच यह ध्यान रखना होता था कि दुश्मन की नजर न पड़े। घायल जवान को कैंप लाकर प्राथमिक उपचार के बाद अस्पताल भेजा जाता था। दुश्मन को पराजित करने के बाद जीत की खुशी अवर्णनीय थी। सेवानिवृत्ति के बाद वह समाजसेवा में जुटे हुए हैं।

गोलाबारी के बीच संभाली संचार व्यवस्था
1971 के युद्ध में संचार व्यवस्था की अहम जिम्मेदारी निभाने वाले नायक बलराम सिंह मणिपुर के इंफाल में तैनात थे। युद्ध शुरू होते ही उन्होंने सीमा पर रहकर सिग्नल और वायरलेस सिस्टम की कमान संभाली। हर पल की जानकारी उच्चाधिकारियों तक पहुंचाना उनकी जिम्मेदारी थी।
सीमा पर तैनाती के कारण परिवार से संपर्क नहीं हो पाता था, जिससे परिजन चिंतित रहते थे। चार-पांच दिन में मौका मिलने पर यूनिट के माध्यम से अपनी कुशलता की सूचना घर भेजते थे। उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान खाने-पीने की चिंता किए बिना केवल दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखनी होती थी। भारतीय सेना की विजय के साथ ही पूरे कैंप में जश्न का माहौल बन गया।

सेवानिवृत्त सैनिकों की समस्याओं के समाधान का प्रयास
जिला सैनिक कल्याण अधिकारी नायब सूबेदार वीरेंद्र सिंह परिहार ने कहा कि सेवानिवृत्त सैनिकों को किसी प्रकार की परेशानी न हो, इसके लिए हरसंभव प्रयास किए जाते हैं। पेंशन और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का प्राथमिकता से समाधान कराया जाता है। उन्होंने विजय दिवस के अवसर पर सभी पूर्व सैनिकों को हार्दिक शुभकामनाएं दीं।
विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

Election
एप में पढ़ें

Followed