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Lalitpur News: मजदूरों के लिए नहीं मंडी...तिराहे पर खड़े होकर तलाशते हैं काम
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संवाद न्यूज एजेंसी
ललितपुर। दिहाड़ी मजदूरों के लिए एक भी अधिकृत मंडी नहीं है। इस कारण काम की तलाश में आने वाले मजदूर पुराने बस स्टैंड तिराहे पर खड़े होकर काम तलाशते हैं। प्रतिदिन करीब दो सैकड़ा मजदूर आते हैं और चाहे धूप हो, ठंड या बारिश, तिराहे पर खड़े दिखते हैं।
जिले की सीमाएं तीन ओर से मध्यप्रदेश से लगती हैं। ललितपुर प्रदेश के पिछड़े जिलों में शुमार है। कोई उद्योग धंधा, कारखाने न होने से ग्रामीण क्षेत्रों से दो सैकड़ा से अधिक दिहाड़ी मजदूर प्रतिदिन शहर आते हैं। वे शहर के पुराना बस स्टैंड तिराहे पर सुबह से खड़े रहते हैं और मजदूरी मिलने की आस रहती है। करीब 30 फीसदी मजदूर ऐसे हैं, जिन्हें रोजाना काम नहीं मिल पाता। काम मिलने की उम्मीद में वह दोपहर तक खड़े रहते हैं। जब काम नहीं मिलता तो निराश होकर खली हाथ लौट जाते हैं। पुराना बस स्टैंड पर दिहाड़ी मजदूरों के बैठने के लिए न कोई व्यवस्था है और न ही छांव। सड़क किनारे लगे हैंडपंप से प्यास बुझाते हैं। सबसे बुरी हालत गर्मी के दिनों में होती है।
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मनरेगा भी नाकाफी
मनरेगा के 1.45 लाख सक्रिय जॉब कार्डधारक धारक हैं। इस योजना के तहत मजदूरों को सौ दिन का रोजगार मिलता है, लेकिन यह योजना मजदूरों के लिए नाकाफी साबित होती है। कारण, जॉब कार्डधारकों को मजदूरी के बदले सिर्फ 230 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मिलना। कुछ मजदूर बताते हैं कि मनरेगा में कम मजदूरी मिलती है, जबकि अन्य जगह दिहाड़ी मजदूरी करने पर उन्हें अधिक रुपया मिल जाता है।
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मनरेगा को छोड़ नहीं जानते अन्य योजना
पुराना बस स्टैंड पर जुटने वाले मजदूरों के बीच लोकसभा चुनाव को लेकर भी चर्चा होती है। अधिकतर मजदूर कहते हैं कि चुनाव से सिर्फ पार्टियों को लाभ है, किसी को मजदूरों की चिंता नहीं है। अधिकांश मजदूरों को सरकारी योजनाओं तक की जानकारी नहीं है। वह सिर्फ मनरेगा के बारे में जानते हैं।
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ललितपुर। दिहाड़ी मजदूरों के लिए एक भी अधिकृत मंडी नहीं है। इस कारण काम की तलाश में आने वाले मजदूर पुराने बस स्टैंड तिराहे पर खड़े होकर काम तलाशते हैं। प्रतिदिन करीब दो सैकड़ा मजदूर आते हैं और चाहे धूप हो, ठंड या बारिश, तिराहे पर खड़े दिखते हैं।
जिले की सीमाएं तीन ओर से मध्यप्रदेश से लगती हैं। ललितपुर प्रदेश के पिछड़े जिलों में शुमार है। कोई उद्योग धंधा, कारखाने न होने से ग्रामीण क्षेत्रों से दो सैकड़ा से अधिक दिहाड़ी मजदूर प्रतिदिन शहर आते हैं। वे शहर के पुराना बस स्टैंड तिराहे पर सुबह से खड़े रहते हैं और मजदूरी मिलने की आस रहती है। करीब 30 फीसदी मजदूर ऐसे हैं, जिन्हें रोजाना काम नहीं मिल पाता। काम मिलने की उम्मीद में वह दोपहर तक खड़े रहते हैं। जब काम नहीं मिलता तो निराश होकर खली हाथ लौट जाते हैं। पुराना बस स्टैंड पर दिहाड़ी मजदूरों के बैठने के लिए न कोई व्यवस्था है और न ही छांव। सड़क किनारे लगे हैंडपंप से प्यास बुझाते हैं। सबसे बुरी हालत गर्मी के दिनों में होती है।
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मनरेगा भी नाकाफी
मनरेगा के 1.45 लाख सक्रिय जॉब कार्डधारक धारक हैं। इस योजना के तहत मजदूरों को सौ दिन का रोजगार मिलता है, लेकिन यह योजना मजदूरों के लिए नाकाफी साबित होती है। कारण, जॉब कार्डधारकों को मजदूरी के बदले सिर्फ 230 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मिलना। कुछ मजदूर बताते हैं कि मनरेगा में कम मजदूरी मिलती है, जबकि अन्य जगह दिहाड़ी मजदूरी करने पर उन्हें अधिक रुपया मिल जाता है।
मनरेगा को छोड़ नहीं जानते अन्य योजना
पुराना बस स्टैंड पर जुटने वाले मजदूरों के बीच लोकसभा चुनाव को लेकर भी चर्चा होती है। अधिकतर मजदूर कहते हैं कि चुनाव से सिर्फ पार्टियों को लाभ है, किसी को मजदूरों की चिंता नहीं है। अधिकांश मजदूरों को सरकारी योजनाओं तक की जानकारी नहीं है। वह सिर्फ मनरेगा के बारे में जानते हैं।