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Siddharthnagar News: सती के चरित्र से महिलाओं को लेनी चाहिए प्रेरणा
संवाद न्यूज एजेंसी, सिद्धार्थनगर
Updated Sun, 21 Dec 2025 11:18 PM IST
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भनवापुर। ब्लाॅक क्षेत्र के चौखड़ा में चल रहे श्रीमद्भभागवत कथा में शनिवार को कथा वाचक प्रेमशरण ने सती चरित्र की कथा सुनाकर दर्शकों का मन मोह लिया। उन्होंने बताया कि सती के चरित्र से महिलाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए।
कथावाचक ने बताया कि माता सती के पिता दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया था और उसमें अपने सभी संबंधियों को बुलाया। लेकिन, बेटी सती के पति भगवान शंकर को नहीं बुलाया। जब सती को यह पता चला तो उन्हें बड़ा दुख हुआ और उन्होंने भगवान शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। भगवान शिव ने उन्हें यह कहकर मनाकर दिया कि बिना बुलाए कहीं जाने से इंसान के सम्मान में कमी आती है। लेकिन, माता सती नहीं मानी और राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में पहुंच गई। वहां पहुंचने पर सती ने अपने पिता सहित सभी को बुरा भला कहा और स्वयं को यज्ञ अग्नि में स्वाहा कर दिया। जब भगवान शिव को ये पता चला तो उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर राजा दक्ष की समस्त नगरी तहस-नहस कर दी और सती का शव लेकर घूमते रहे। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े किए। जहां शरीर का टुकड़ा गिरा, वहां-वहां शक्तिपीठ बनी। इसी दौरान कथा वाचक प्रेम शरण महाराज ने ध्रुव चरित्र की कथा का भी बड़े ही मार्मिक ढंग से कराया। इस दौरान आचार्य रितेश, आचार्य केशव राम, कंचना सिंह, अनिल कुमार सिंह, गोपाल जी सिंह, हरि सिंह आदि मौजूद रहे।
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कथावाचक ने बताया कि माता सती के पिता दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया था और उसमें अपने सभी संबंधियों को बुलाया। लेकिन, बेटी सती के पति भगवान शंकर को नहीं बुलाया। जब सती को यह पता चला तो उन्हें बड़ा दुख हुआ और उन्होंने भगवान शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। भगवान शिव ने उन्हें यह कहकर मनाकर दिया कि बिना बुलाए कहीं जाने से इंसान के सम्मान में कमी आती है। लेकिन, माता सती नहीं मानी और राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में पहुंच गई। वहां पहुंचने पर सती ने अपने पिता सहित सभी को बुरा भला कहा और स्वयं को यज्ञ अग्नि में स्वाहा कर दिया। जब भगवान शिव को ये पता चला तो उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर राजा दक्ष की समस्त नगरी तहस-नहस कर दी और सती का शव लेकर घूमते रहे। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े किए। जहां शरीर का टुकड़ा गिरा, वहां-वहां शक्तिपीठ बनी। इसी दौरान कथा वाचक प्रेम शरण महाराज ने ध्रुव चरित्र की कथा का भी बड़े ही मार्मिक ढंग से कराया। इस दौरान आचार्य रितेश, आचार्य केशव राम, कंचना सिंह, अनिल कुमार सिंह, गोपाल जी सिंह, हरि सिंह आदि मौजूद रहे।
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