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यादें: आजाद भारत में पहली बार बीएचयू के गुरु ने संसद में गाया था वंदे मातरम, सबसे बड़ा रहा है संबंध

हिमांशु अस्थाना, अमर उजाला ब्यूरो, वाराणसी। Published by: प्रगति चंद Updated Wed, 10 Dec 2025 03:50 PM IST
सार

Varanasi News: वंदे मातरम का बीएचयू से गहरा नाता रहा है। 15 अगस्त की मध्य रात्रि पर पं. ओंकारनाथ ठाकुर ने 10 मिनट में 22 पंक्ति का वंदे मातरम गाया था और आजादी की सुबह पूरे भारत में प्रसारण हुआ।   

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BHU teacher sang Vande Mataram in Parliament for first time for independent India in varanasi
बीएचयू के प्रोफेसर रहे पंडित ओंकारनाथ ठाकुर - फोटो : File
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वंदे मातरम का एक सबसे बड़ा संबंध बीएचयू से भी रहा है। स्वतंत्र भारत में पहली बार बीएचयू के प्रोफेसर रहे पंडित ओंकारनाथ ठाकुर ने 10 मिनट तक वंदे मातरम गाया और आजाद भारत की पहली हवा में अलसुबह 6.30 बजे इसका प्रसारण किया गया। भारत के स्वतंत्रता पर संसद भवन में मध्यरात्रि पर 14 और 15 अगस्त के बीच आजादी का उत्सव मनाने के लिए एक कार्यक्रम रखा गया। 

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सरदार वल्लभभाई पटेल ने बीएचयू के संगीत एवं मंच कला संकाय के संस्थापक रहे पं. ओंकारनाथ ठाकुर (जो उस दौरान चेन्नई में थे) को वायरलेस संदेश भेजकर संसद में वंदे मातरम गाने का अनुरोध किया। इस पर पं. ओंकारनाथ ने जवाब दिया कि वे वंदे मातरम के पूरे 22 पंक्तियों वाले रूप को ही गाएंगे। उनकी ये शर्त सरदार पटेल ने स्वीकार कर ली। आज सड़क से संसद तक राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की गूंज है। 
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गीत के 150वें वर्ष पर संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- वंदे मातरम राष्ट्र के प्रति समर्पण का माध्यम आजादी के आंदोलन में भी था, आज भी है और 2047 में विकसित भारत के निर्माण के समय भी रहेगा। वहीं, कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने वंदे मातरम के दो टुकड़े कर दिए। पूरी भाजपा सरकार ही इस पर कांग्रेस को घेर रही है। 

विशेष विमान से लाए गए दिल्ली

पंडित जी विशेष विमान से चेन्नई से दिल्ली पहुंचे और संसद भवन में मध्यरात्रि के समय वंदे मातरम गाया। अगले दिन सुबह 6:30 बजे आकाशवाणी पर उनकी प्रस्तुति का प्रसारण किया गया तो पूरे देश में इस गीत की गूंज हो गई। इसके ठीक 50 साल के बाद गोल्डन जुबली पर 15 अगस्त 1997 को सभी आकाशवाणी केंद्रों पर इसाका प्रसारण किया गया। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के 1997-98 की वार्षिक रिपोर्ट में इस तथ्य का उल्लेख किया गया है।

1923 में पं. ओंकारनाथ के गुरु पं. विष्णु दिगंबर पलुस्कर ने कांग्रेस अधिवेशन में विरोध के बाद भी वंदे मातरम गाया। वह कांग्रेस के काकीनाडा अधिवेशन में वंदे मातरम गाने वाले थे। क्योंकि वे 1915 से ही हर कांग्रेस अधिवेशन में इसे प्रस्तुत करते आए थे। लेकिन उस वर्ष अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे मौलाना मोहम्मद अली और उनके भाई शौकत अली ने आपत्ति की। 

उनका कहना था कि क्योंकि इस गीत में हिंदू धर्म की स्तुति है, इसलिए इसे इस मंच पर नहीं गाया जाना चाहिए। इस पर पं. पलुस्कर ने विरोध जताते हुए कहा दिया यह एक जनसभा है, किसी एक धर्म का उपासना स्थल नहीं। जिन्हें आपत्ति है, वे चाहें तो सभा छोड़कर जा सकते हैं। इसके बाद पंडितजी ने पूरा गीत गाकर सुनाया। 
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