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वाराणसी: पिशाचमोचन कुंड पर पितरों के प्रति आस्था का रेला, अस्सी से राजघाट के बीच कई जगह हुआ तर्पण

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वाराणसी Published by: हरि User Updated Tue, 21 Sep 2021 07:13 PM IST
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सार

कुछ पुरोहितों ने मोबाइल पर वीडियो कॉल के जरिये अपने यजमानों से प्रतिपदा के श्राद्ध को संपन्न कराया। सुबह से ही गंगा के घाट पर स्नान करने के बाद लोग अपने पितरों को पिंडदान करने में लगे रहे।
 

Tripindi Shradh at Pishchamochan Kund of Varanasi on Pitru Paksha tarpan between Assi to Rajghat
पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करते लोग। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पितृपक्ष की प्रतिपदा पर गयातीर्थ की मान्यता वाले वाराणसी स्थित पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध की परंपरा का निर्वहन हुआ। मंगलवार को अस्सी से लेकर राजघाट के बीच के कई घाटों पर श्रद्धालु प्रतिपदा का श्राद्ध करते हुए नजर आए। गंगा के बढ़े हुए जलस्तर के कारण सावधानी  के साथ ही नेमियों ने पितरों के श्राद्ध व तर्पण की प्रक्रिया को पूर्ण किया।

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पिशाचमोचन कुंड पर सुबह से ही त्रिपिंडी श्राद्ध के लिए श्रद्धालु पहुंचते रहे। सुबह से शुरू हुआ त्रिपिंडी श्राद्ध का सिलसिला देर शाम तक चलता रहा। दोपहर में कुंड पर सबसे अधिक भीड़ रही। वहीं कुछ पुरोहितों ने मोबाइल पर वीडियो कॉल के जरिये अपने यजमानों से प्रतिपदा के श्राद्ध को संपन्न कराया। सुबह से ही गंगा के घाट पर स्नान करने के बाद लोग अपने पितरों को पिंडदान करने में लगे रहे।
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श्राद्ध क्या है, क्यों आवश्यक है
काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री पंडित दीपक मालवीय ने बताया कि श्रीमद्भागवत गीता में उल्लेख है कि संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च। पतन्ति पितरो हैषां लुप्त पिंडोदकक्त्रिस्या। अर्थात लुप्त पिंड, तर्पण क्रिया और वर्णसंकरों, कुलघातियों से उनके पितर नरक में गिरते हैं तथा श्राप देते हैं जिससे उनकी पीढ़ी में कोई आपदा, आर्थिक, मानसिक, परेशानियां उत्पन्न होने लगती हैं और व्यक्ति पितृ ऋण का दोषी हो जाता है। इसके लिए पितरों का पूजन श्राद्ध आदि करना चाहिए।

जानें कितने प्रकार के होते हैं

पिंडक्रिया : यह प्रश्न स्वाभाविक है कि श्राद्ध में दी गई अन्न सामग्री पितरों को कैसे मिलती है। वायुपुराण के अनुसार नाम गौत्रं च मन्त्रश्च दत्तमन्नम नयन्ति तम। अपि योनिशतम प्राप्तान्सतृप्तिस्ताननुगच्छन्ति। अर्थात श्राद्ध में दिए गए अन्न को नाम, गोत्र, हृदय की श्रद्धा, कल्पपूर्वक दिए हुए पदार्थ, भक्तिपूर्वक उच्चारित मंत्र, उनके पास भोजन रूप में उपलब्ध होते हैं।

ब्राह्मण भोजन : मनुस्मृति के अनुसार निमन्त्रितान हि पितर उपतिष्ठन्ति तान द्विजान। वायुवच्चानुगच्छन्ति तथासिनानुपासते। अर्थात श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मण में पितर गुप्त रूप से प्राणवायु की भांति उनके साथ भोजन करते हैं। मृत्यु के पश्चात पितर सूक्ष्म शरीरधारी होते हैं, इसलिए वह दिखाई नहीं देते हैं। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि तिर इव वै। पितरो मनुष्येभ्य। अर्थात सूक्ष्म शरीरधारी पितर मनुष्यों से छिपे होते हैं।
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