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VIDEO : ग्रेनो में पराली से बन रही भांप, तीन कंपनियों ने की पहल, वायु प्रदूषण भी नहीं
नोएडा ब्यूरो
Updated Mon, 06 Jan 2025 11:38 AM IST
ग्रेटर नोएडा। ग्रेटर नोएडा में पंजाब और हरियाणा की पराली से बिजली और पैकेजिंग आइटम बन रहे हैं। यहां की तीन कंपनियों में रोजाना करीब 250 टन पराली की खपत हो रही हैं, लेकिन उससे वायु प्रदूषण नहीं हो रहा हैं। इसके लिए इन कंपनियों में वायु प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था डिवाइस इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रीसिपिटेटर का प्रयोग किया हैं। जो काले धुएं को सफेद में बदल रहा हैं। वहीं पराली की राख से खाली जमीन के गड्ढों को भरा जा रहा हैं। पराली के प्रयोग से कंपनियों की बचत भी बढ़ी हैं। सर्दी के मौसम में दिल्ली एनसीआर की हवा काफी प्रदूषित हो जाती हैं। वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता हैं। इसमें पंजाब और हरियाणा के खेतों में जलने वाली पराली के धुंए को भी कारण माना जाता हैं। हर वर्ष खेतों में पराली को जलाने से रोकने का प्रयास किया जाता है, लेकिन सफलता नहीं मिलती। इस बीच ग्रेटर नोएडा की तीन कंपनियों ने एक नई पहल शुरू की हैं। इनमें उद्योग विहार एक्सटेंशन इकोटेक-2 की ई-पैक, सेक्टर साइट-बी की ईस्ट इंडिया टेक्नोलॉजी और उद्योग विहार की स्पेरी प्लास्ट शामिल हैं। जो प्रतिबंधित ईंधन की जगह पराली का प्रयोग कर रही हैं। ईस्ट इंडिया में रोजाना करीब 120 टन, ई-पैक में 50 टन और स्पेरी प्लास्ट में 50 टन से अधिक पराली की खपत हो रही हैं। तीनों कंपनी में पैकेजिंग आइटम का उत्पादन होता हैं। कंपनियां पंजाब और हरियाणा से पराली मंगवा रही हैं। वायु प्रदूषण के कारण एनसीआर की कंपनियों में कोयला समेत अन्य प्रतिबंधित ईंधन के प्रयोग पर रोक लगा दी गई। तब केवल एग्रो वेस्ट ब्रिकेट्स के प्रयोग की अनुमति थी, लेकिन मार्केट में मांग अधिक होने के कारण कमी होने लगी। साथ ही मिलावटी ब्रिकेट्स मिलने लगे। जिनके प्रयोग से उद्यमियों को नुकसान होने लगा। बाॅयलर चौक होने लगे। आए दिन काला धुंआ निकलने की शिकायत होने लगी। परेशान होकर उद्यमियों ने पराली की तरफ रूख किया। उद्योगों को पराली की तरफ जाने के लिए खर्च करना पड़ा हैं। करीब 15 से 20 करोड़ रुपये खर्च कर नया सेटअप तैयार किया हैं। खास किस्म का बाॅयलर के साथ बिजली उत्पादन के लिस टर्बाइन लगाई हैं। साथ ही वायु प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था डिवाइस लगाई हैं। पराली के प्रयोग से उद्यमियों को बचत भी हो रही हैं। करीब 15 से 20 प्रतिशत का खर्च बच रहा हैं। डिवाइस की मदद से प्रदूषण के कणों को हवा में जाने से रोका जा रहा हैं। कंपनी प्रबंधन ने दावा किया है कि पराली से हर घंटे करीब 100 से 150 यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा हैं। उस बिजली का प्रयोग कंपनी में किया जा रहा हैं। कंपनियों में 500 किलोवाट से लेकर एक मेगावाट क्षमता की टर्बाइन लगाई गई हैं। बिजली पर आने वाला खर्च कम हुआ हैं। पराली की राख को गीला कर बाहर निकाला जाता हैं। उसके एक ट्रॉली में भरकर किसी खाली जमीन पर डाला जा रहा हैं। अफसरों का कहना है कि राख जमीन में दब जाएगा। उससे नुकसान नहीं होगा। पिछले करीब एक साल से तीनों कंपनी में पराली का प्रयोग हो रहा हैं। रोजाना बड़ी मात्रा में पजाब व हरियाणा से आने वाली पराली की खपत हो रही हैं। जबकि चिमनी से केवल सफेद धुंआ निकलता हैं। भविष्य में जिले की पराली को भी कंपनियों तक पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी।- डीके गुप्ता, क्षेत्रीय अधिकारी ग्रेनो, यूपीपीसीबी....नवीन कुमार की रिपोर्ट
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