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Even after 15 years, the life of Mirchpur victims in Hisar is miserable, forced to live in slums in Deendayal Puram
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हिसार में 15 साल बाद भी मिर्चपुर पीड़ितों का जीवन बदहाल, दीनदयाल पुरम में झुग्गियों में रहने को मजबूर
हिसार के मिर्चपुर कांड के 15 साल बाद भी पीड़ित दलित परिवारों को न्याय और सुविधाओं का इंतजार है। 2010 में हुई जातीय हिंसा के बाद विस्थापित हुए करीब 250 परिवार अब ढंढूर के पास दीनदयाल पुरम में बसाए गए हैं, लेकिन यहां मूलभूत सुविधाओं की कमी से उनका जीवन बदहाल बना हुआ है।
पीड़ितों ने सरकार पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि प्लॉट देने के बाद उन्हें भुला दिया गया। न पीने का पानी, न सीवरेज, न सड़कें सब कुछ अधूरा पड़ा है।2010 के मिर्चपुर कांड में ऊपरी जाति के लोगों ने दलित बहुल इलाके में 18 घरों को आग लगा दी थी, जिसमें 70 वर्षीय ताराचंद और उनकी 17 वर्षीय पोलियो प्रभावित बेटी सुमन जिंदा जल गई थीं।
इस घटना के बाद 258 दलित परिवारों ने गांव छोड़ दिया था। कई परिवार हिसार के टानवर फार्महाउस में शरण ले चुके थे, जहां वे अस्थायी टेंटों में रहते थे।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद केस दिल्ली ट्रांसफर हुआ और 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट ने 32 लोगों को दोषी ठहराया, जिनमें से 12 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।सरकार ने 2018 में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा पुनर्वास योजना की नींव रखी, जिसमें 4.56 करोड़ रुपये खर्च कर दीनदयाल पुरम कॉलोनी विकसित करने का वादा किया गया।
2020 में 102 परिवारों को प्लॉट आवंटित किए गए, लेकिन पीड़ितों का कहना है कि प्लॉट के लिए किस्तों के रूप में पैसे वसूले गए। एक परिवार को 85 वर्ग गज के प्लॉट के लिए 1.5 लाख से लेकर 600 वर्ग गज के लिए 10 लाख रुपये तक चुकाने पड़े।
अब 15 साल बाद भी कॉलोनी में कच्ची गलियां, कोई पक्का रास्ता नहीं, और पीने के पानी की भारी किल्लत है। सीवरेज व्यवस्था का नामोनिशान नहीं, और लोग झुग्गियों में रहने को मजबूर हैं।
पीड़ित परिवारों ने मीडिया से बातचीत में कहा कि भाजपा सरकार ने पुनर्वास का वादा किया था, जिसमें प्लॉट, मकान और सभी सुविधाएं शामिल थीं। लेकिन प्लॉट देने के बाद हमें भूल गए। 250 परिवारों को पीने का पानी तक नहीं मिल रहा। आने-जाने के लिए रास्ता नहीं, गलियां कच्ची हैं।" एक पीड़िता ने बताया, "प्रधानमंत्री आवास योजना या मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत कोई मदद नहीं मिली।
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