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Will CM Nitish's JDU form an alliance with RJD in the Bihar assembly elections?
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बिहार विधानसभा चुनाव में सीएम नीतीश की JDU करेगी RJD के साथ गठबंधन?
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Tue, 16 Sep 2025 05:47 PM IST
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बिहार की राजनीति में “पलटू राम” की छवि से जूझ रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में अपनी NDA के प्रति निष्ठा जताई। सोमवार को पूर्णिया की रैली में नीतीश ने कहा- “मैं अब वापस आ चुका हूं और कहीं नहीं जाऊंगा। पहले एक-दो बार अपने ही साथियों के कहने पर इधर-उधर गया था, लेकिन अब हमेशा यहीं रहूंगा।”
यह बयान सुनकर पीएम मोदी ने मुस्कुराकर तालियां बजाईं, लेकिन यह सवाल भी उठने लगा कि नीतीश आखिर क्यों बार-बार अपनी “वफादारी” साबित करने पर मजबूर हैं।
नीतीश ने अपने भाषण में इशारों-इशारों में जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि “पार्टी के ही कुछ लोगों ने मुझे भटकाया था। लेकिन अब वह सब अतीत की बातें हैं।” यह पहली बार नहीं था जब उन्होंने ललन पर निशाना साधा। मई में मधुबनी की रैली में भी नीतीश ने यही बात दोहराई थी।
नीतीश कुमार ने NDA को दो बार छोड़ा है।
• पहली बार 2014 लोकसभा चुनाव से पहले, जब उन्होंने बीजेपी से किनारा किया।
• दूसरी बार 2022 में, जब उन्होंने बीजेपी पर जदयू तोड़ने की कोशिश का आरोप लगाकर RJD के साथ सरकार बना ली।
दूसरी बार NDA छोड़ने के बाद तो उन्होंने विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक की नींव डालने में भी अहम भूमिका निभाई। लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव से पहले वह अचानक पलटी मारते हुए फिर NDA में लौट आए।
2020 विधानसभा चुनाव नीतीश के लिए बड़ा झटका लेकर आया। उनकी पार्टी जदयू सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई, जबकि बीजेपी 74 सीटें जीतकर बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पहली बार नीतीश की पार्टी “जूनियर पार्टनर” बन गई। तब भी बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखा, लेकिन नीतीश की राजनीतिक ताकत कमजोर हो गई।
इस बार 2025 विधानसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे में जदयू पर भारी दबाव रहेगा। 2020 का प्रदर्शन आधार बने तो जदयू को कम सीटें मिल सकती हैं। यही वजह है कि नीतीश अपनी अहमियत लगातार जताने की कोशिश कर रहे हैं।
2020 में नीतीश को सबसे बड़ा नुकसान चिराग पासवान ने पहुंचाया था। LJP ने NDA से अलग होकर जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ प्रत्याशी उतारे और जदयू की सीटें कम हो गईं। इस बार चिराग NDA में वापस आ चुके हैं और बीजेपी के साथ खड़े हैं। ऐसे में नीतीश के लिए समीकरण और भी चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।
पिछले कुछ महीनों में नीतीश कुमार की सेहत को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं हुई हैं। विपक्षी नेता बार-बार उनके नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं। हालांकि अभी भी वे राज्य की राजनीति के केंद्र में हैं और सत्ता का संतुलन साधे हुए हैं।
नीतीश की सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी उनका महिला वोट बैंक और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) आधार है। हाल ही में हुई जातीय सर्वेक्षण रिपोर्ट में सामने आया कि EBC सबसे बड़ा समूह है। नीतीश बार-बार इस वोट बैंक को अपने पक्ष में रखने की कोशिश कर रहे हैं। यही उनकी असली राजनीतिक ताकत है, जिससे NDA भी उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकता।
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