पन्ना टाइगर रिजर्व (पीटीआर) को बाघों से गुलजार करने वाली करिश्माई बाघिन टी-2 की मौत हो गई। उसे 'मदर ऑफ पीटीआर' कहा जाता है। बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत 2009 में लाई गई इस बाघिन ने पन्ना में बाघों की आबादी को दोबारा स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी। हाल ही में, 28 मई को उत्तर वन मंडल के अमरझाला बीट में एक बाघिन का शव मिला था। शुरुआती पहचान नहीं हो सकी थी, लेकिन अब रिकॉर्ड और चिन्हों के आधार पर उसकी पुष्टि बाघिन टी-2 के रूप में की गई है।
दरअसल, वर्ष 2008 में पन्ना टाइगर रिजर्व से बाघ पूरी तरह विलुप्त हो गए थे। इसके बाद वर्ष 2009 में 'बाघ पुनर्स्थापना योजना' शुरू की गई। टी-01 बाघिन को 4 मार्च 2009 को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से लाया गया था। इसके पांच दिन बाद, 9 मार्च 2009 को बाघिन टी-2 को कान्हा टाइगर रिजर्व से एयरफोर्स के विशेष विमान द्वारा पीटीआर लाया गया। टी-2 को शुरू में कुछ दिन बड़गड़ी स्थित बाघ बाड़े में सॉफ्ट रिलीज प्रक्रिया के तहत रखा गया। इसके बाद उसे जंगल में स्वतंत्र रूप से विचरण के लिए छोड़ दिया गया।
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21 शावकों की जननी, 85 संतानों की वंशज
टी-2 ने पेंच टाइगर रिजर्व से लाए गए नर बाघ टी-3 के साथ प्रजनन कर 7 बार में कुल 21 शावकों को जन्म दिया। उसकी चार पीढ़ियों से अब तक कुल 85 संतानों का वंश पन्ना सहित अन्य अभयारण्यों में फैला हुआ है। उसके वंशज आज सतपुड़ा, संजय, बांधवगढ़, रानीपुर, चित्रकूट, सतना, माधव नेशनल पार्क (शिवपुरी) सहित कई अभयारण्यों और वन क्षेत्रों में विचरण कर रहे हैं।
19 साल की थी बाघिन
फील्ड डायरेक्टर अंजना सुचिता तिर्की ने बताया दी कि टी-2 बाघिन ने लगभग 19 वर्ष की आयु पूर्ण की, जो फ्री-रेंजिंग टाइगर्स के लिए उल्लेखनीय और दुर्लभ मानी जाती है। अपने जीवनकाल में उसका मूवमेंट पन्ना कोर, हिनौता, मड़ला, गंगऊ, गहरीघाट और देवेन्द्रनगर वन परिक्षेत्र तक सीमित रहा।
फील्ड डायरेक्टर की श्रद्धांजलि
टी-2 सिर्फ एक बाघिन नहीं थी, बल्कि वह पन्ना टाइगर रिजर्व के पुनर्जन्म की प्रतीक थी। उसकी भूमिका कभी भुलाई नहीं जा सकती।
अंजना सुचिता तिर्की, फील्ड डायरेक्टर, पन्ना टाइगर रिजर्व