वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन छिंदवाड़ा पहुंचे थे। जहां उन्होंने वक्फ अधिनियम को लेकर बड़ा बयान दिया । उन्होंने कहा कि 16 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ अधिनियम 1995 की संवैधानिकता पर अहम सुनवाई होगी, जिसमें वह भी हिंदू पक्ष की ओर से हिस्सा लेंगे।उन्होंने कहा कि “हम वक्फ अधिनियम 1995 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने जा रहे हैं। इस कानून के तहत वक्फ बोर्ड को जो असीमित अधिकार दिए गए हैं, वे न केवल अनुचित हैं बल्कि संविधान की भावना के विरुद्ध भी हैं। कई ऐसे प्रावधान हैं जो मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को विशेष संरक्षण देते हैं, लेकिन अन्य धर्मों की संस्थाओं और संपत्तियों को वैसा अधिकार प्राप्त नहीं है।” उन्होंने कहा कि हम वक्फ अधिनियम 2025 में किए गए संशोधनों का स्वागत करते हैं, क्योंकि उनमें कई ऐसे बिंदु जोड़े गए हैं जो संतुलन लाते हैं और सभी नागरिकों की संपत्तियों की सुरक्षा का प्रयास करते हैं। लेकिन पुराने कानून में जो असंवैधानिक प्रावधान अब भी बचे हुए हैं, उन्हें हटाने की आवश्यकता है।
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वक्फ अधिनियम 1995 को लेकर विवाद क्या है?
वक्फ अधिनियम 1995 एक ऐसा कानून है जो मुस्लिम धर्मस्थलों और संपत्तियों के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए वक्फ बोर्ड को अधिकार देता है। लेकिन इस कानून की कई धाराओं में वक्फ बोर्ड को इतनी शक्ति दी गई है कि वह कई बार निजी संपत्तियों पर भी दावा कर देता है। विशेषकर 40, 52, 54 और 89 जैसी धाराओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जिनमें बिना पर्याप्त सुनवाई के संपत्तियों को वक्फ घोषित करने का प्रावधान है।
सुप्रीम कोर्ट में क्या है मामला?
देशभर से वक्फ अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 15 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। इन्हीं में से एक याचिका में विष्णु शंकर जैन भी पक्षकार हैं, जो यह तर्क दे रहे हैं कि यह कानून अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 25 और 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 300A (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
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राजनीतिक और सामाजिक असर
वक्फ अधिनियम को लेकर देश में लंबे समय से विवाद बना हुआ है। कई सामाजिक संगठनों और धर्मगुरुओं का मानना है कि यह कानून असंतुलन पैदा करता है। वहीं मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह कानून उनके धार्मिक स्थलों और परंपराओं की रक्षा करता है।
क्या होगा आगे?
16 अप्रैल को होने वाली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट यह तय कर सकता है कि वक्फ अधिनियम की कौन-कौन सी धाराएं संवैधानिक हैं और किन्हें रद्द किया जाना चाहिए। यह फैसला आने वाले समय में सभी धार्मिक संस्थाओं के लिए एक नजीर साबित हो सकता है।