दस दिनों तक परतला के महाराजा के दरबार में गूंजते जयकारों और भक्ति गीतों के बीच जब बप्पा की विदाई का समय आया, तो भक्तों के चेहरे निराशा से भर गए। हर साल गाजे-बाजे और डीजे की धुन पर निकलने वाला भव्य विसर्जन जुलूस इस बार पूरी तरह मौन रहा।
दोपहर 3:30 बजे प्रतिमा स्थापना स्थल से प्रारंभ हुआ चल समारोह देर शाम छोटा तालाब पहुंचा। इस दौरान सैकड़ों भक्त हाथों में ‘मौन विसर्जन’ लिखे होर्डिंग थामे प्रशासन के डीजे प्रतिबंध का विरोध करते नजर आए।
दो महीने पहले कर ली थी डीजे की बुकिंग
परतला के महाराजा समिति के अध्यक्ष उमेश चौहान ने बताया कि समिति ने नागपुर से डीजे साउंड सिस्टम और बैंड-बाजे की बुकिंग की थी, जिसकी एडवांस राशि भी दी जा चुकी थी। लेकिन प्रशासन ने अंतिम समय पर अनुमति नहीं दी। मजबूरन समिति को मौन विसर्जन करना पड़ा। चौहान ने कहा— “धार्मिक आयोजनों में आस्था जुड़ी होती है, इस पर इस तरह की सख्ती ठीक नहीं है।”
पहली बार निकला मौन जुलूस
समिति के सदस्यों ने बताया कि परतला के महाराजा का विसर्जन जुलूस छिंदवाड़ा के इतिहास में पहली बार बिना गाजे-बाजे के निकला है। वहीं, निगम अध्यक्ष धर्मेंद्र सोनू मांगो ने आरोप लगाया- भक्तों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली यह कार्रवाई भाजपा की राजनीति से प्रेरित है।
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भक्तों की आंखें नम, लेकिन विरोध दर्ज
जुलूस में शामिल भक्तों ने बप्पा को विदा करते समय आंसुओं के साथ विदाई दी। किसी ने इसे आस्था पर प्रहार बताया, तो कोई इसे प्रशासन की तानाशाही कह रहा था। मौन विसर्जन के दौरान भक्त बप्पा के साथ तो रहे, लेकिन उनके दिलों में नाराजगी और आंखों में आंसू साफ झलक रहे थे।