हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस एके सिंह की युगलपीठ ने फांसी की सजा को निरस्त करते हुए अपीलकर्ता को हर्जाने के तौर पर एक लाख रुपये प्रदान करने के आदेश जारी किये हैं। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य की कड़ी पूरी नहीं होने के बावजूद भी जिला न्यायालय ने आरोपी को सजा से दंडित किया है। इसके अलावा पुलिस जांच में गंभीर खामियां और गवाहों के बयानों में विसंगतियां थीं। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि उक्त राशि बालाघाट पुलिस अधीक्षक जांच अधिकारियों से वसूल कर सकते हैं।
अभियोजन के अनुसार बालाघाट जिले के तिरोड़ी थानान्तर्गत ग्राम चिटकादेवरी में निवासी आरोपी गिरधारी सोनवाने 4 अप्रैल की सुबह उसके आसपास में रहने वाली भतीजी क्रमश तीन साल और पांच साल 11 माह को मोटर साइकिल से घुमाने के बहाने जंगल में ले गया था। वहां दुराचार करने के बाद उन्हें नहर में फेंक दिया था। तैरना नहीं जाने के कारण दोनों की मौत हो गई थी। पुलिस ने दोनों बहनों के शव पांच अप्रैल को नहर से बरामद किये थे। पुलिस ने जांच में पाया कि आरोपी को अंतिम बार दोनों बच्चियों को बैठाकर ले जाते हुए गवाहों ने देखा था। घटना के समय घर में दोनों बच्चियां अकेले थीं और माता-पिता रिश्तेदारी में गये हुए थे। आरोपी तथा बच्चियों के पिता के बीच संपत्ति विवाद था और जादू-टोना का शक करता था।
युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि गवाह ने 4 अप्रैल की सुबह लगभग 10:30 बजे अपीलकर्ता को मोटर साइकिल पर बैठाकर ले जाते हुए अंतिम बार देखा था। बच्चियों के नहीं मिलने पर गवाह ने लगभग शाम पांच बजे उनके पिता को इस संबंध में जानकारी दी थी। इसके बावजूद पिता बच्चियों को तलाश करता रहा परंतु अपीलकर्ता के घर जाकर उससे पूछताछ नहीं की।
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बच्चियों का पोस्टमार्टम पांच अप्रैल की दोपहर 3 से 5 बजे के बीच हुआ। पोस्टमार्टम के रिपोर्ट के अनुसार बच्चियों की मौत 12 से 18 घंटे पूर्व हुई थीं। अभियुक्त के साथ देखे जाने के 12 घंटे से अधिक समय के बाद उनकी मृत्यु हुई थी। बच्चियों के अपहरण की देहाती नालिशी में अपीलकर्ता के नाम का उल्लेख किया गया था। दूसरे दिन 5 अप्रैल की दोपहर में दर्ज की गयी अपहरण की एफआईआर में अपीलकर्ता के नाम का उल्लेख नहीं था। इसके अलावा मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार बच्चियों की निजता का उल्लंधन नहीं हुआ है। बच्चियों का डायटम टेस्ट करवाया गया था परंतु उसकी रिपोर्ट न्यायालय में पेश नहीं की गई।
युगलपीठ ने शनिवार को जारी अपने आदेश में कहा है कि तिरोड़ी पुलिस स्टेशन के अधिकारी ने गुमशुदा व्यक्ति की रिपोर्ट दर्ज करते समय अभिलेखों में हेराफेरी करने का प्रयास किया है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि अंतिम बार जीवित देखे जाने और मृत पाए जाने के बीच का समय अंतराल इतना कम होना चाहिये कि अभियुक्त के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के अपराध करने की संभावना असंभव हो। युगलपीठ ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कड़ी पूरी नहीं होने तथा गवाहों के विरोधाभासी कथनों के आधार पर जिला न्यायालय के आदेश को निरस्त करते हुए अपीलकर्ता को दोषमुक्त करते हुए उक्त आदेश जारी किये हैं।