सागर जिले की रहली में किसानों ने एसडीएम को ज्ञापन सौंपा है। किसानों का कहना है कि सोयाबीन फसल का समर्थन मूल्य छह हजार रुपये प्रति क्विंटल किए जाएं तथा समर्थन मूल्य पर खरीदी करने के लिए शासकीय खरीदी केन्द्र बनाए जाएं।
शुक्रवार को रहली में आसपास के गांवों से आकर किसान सुबह से ही एकत्र होने लगे थे। एकत्र होकर किसान रहली एडीएम कार्यालय पहुंचे तथा वहां अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाजी की। किसानों का कहना है कि किसानों की आय को दोगुना करने और कृषि को लाभ का धंधा बनाने के सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं और किसान कर्ज के दलदल में फंसते जा रहे हैं। सोयाबीन फसल की उत्पादन लागत लगातार बढ़ने और बिक्री मूल्य लगातार घटने से किसान परेशान हैं, जिससे किसानों में जमकर आक्रोश है।
सोयाबीन की फसल को समर्थन मूल्य पर खरीदने एवं सोयाबीन का मूल्य छह हजार रुपये करने की मांग को लेकर इन किसानों ने एसडीएम को ज्ञापन सौंपा। किसानों ने प्रधानमंत्री से मांग की है कि सोयाबीन की खरीदी समर्थन मूल्य पर की जाए एवं सोयाबीन का दाम कम से कम छह हजार रुपये प्रति क्विंटल किया जाए।
प्रति एकड़ पांच हजार रुपये का है घाटा
किसानों का कहना है कि सोयाबीन मध्यप्रदेश राज्य की मुख्य फसल है तथा प्रदेश में सोयाबीन फसल ही किसानों की आर्थिक उन्नति का मुख्य स्त्रोत है। परन्तु दिन-प्रतिदिन सोयाबीन की फसल उन्हें घाटे का सौदा साबित हो रही है। इस फसल की उत्पादन लागत बढ़ती जा रही और कीमत घटती जा रही है। अगर इस फसल के दाम नहीं बढ़ाए जाते तो किसानों को यह घाटे का सौदा साबित होगा, जिससे छोटे और मंझोले किसान कर्ज तले दब जाएंगे।
किसानों ने बताया कि साल 2013-14 में सोयाबीन का मूल्य 4600 रुपये प्रति क्विंटल था तथा लागत राशि कम थी। वहीं, साल 2024 में 3800 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल इसके दाम हैं। जबकि अगर एक एकड़ में जुताई, बुआई, खाद और कीटनाशक की लागत निकाली जाए तो यह 25,150 रुपये प्रति एकड़ पड़ती है। जबकि एक एकड़ में जो सोयाबीन पैदा होता है, वह आज के भाव अनुसार बीस हजार रुपये का होता है ,जिससे किसान को पांच हजार रुपये प्रति एकड़ घाटा हो रहा है। किसानों ने कहा कि यह कैसा लाभ का धंधा है, जिसमें उन्हें घर से ही पैसा लगाकर घाटा उठाना पड़े।