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Sagar: बुंदेलखंड अंचल में सदियों से होती आ रही सरस्वती पूजा, यहां मिलती है हजार वर्ष पुरानी सरस्वती प्रतिमाएं
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सागर Published by: सागर ब्यूरो Updated Sun, 02 Feb 2025 08:50 AM IST
बसंत पंचमी को माता सरस्वती की जयंती मनाई जाती है। सनातन धर्म में माता सरस्वती को विद्या की देवी माना जाता है बुंदेलखंड अंचल में माता सरस्वती के पूजन के प्राचीन प्रमाण मिलते है, जो यह बताते है कि यहां माता सरस्वती का पूजन सदियों से होता चला आ रहा है।
अंचल के अनेक प्राचीन स्थलों पर माता सरस्वती की प्रतिमाएं प्राप्त होती है। मध्यकाल की यह प्रतिमाएं विभिन्न राजवंशों के राजत्वकाल की है। कहीं माता सरस्वती की प्रतिमा गणपति के साथ है तो कहीं एकल स्वतंत्र प्रतिमा प्राप्त होती है। सागर जिले के रहली में स्थित सूर्य मंदिर की बाहरी भित्ति में सरस्वती की एकल प्रतिमा स्थित है। वहीं जिले की देवरी कलां में स्थित सिद्धेश्वर मंदिर में यह प्रतिमा विराजित अवस्था में गणपति के साथ उपलब्ध है।
विद्या की देवी है सरस्वती
सरस्वती विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं. ब्राह्मणधर्म (सनातन धर्म) में समान रूप से लक्ष्मी, सरस्वती तथा दुर्गा की उपासना की जाती है। जैन तथा बौद्ध धर्म में सरस्वती की आराधना क्रमशः श्रुत देवी तथा प्रज्ञा पारमिता के रूप में की जाती है। शिल्पकला में सरस्वती का अंकन स्वतन्त्र रूप में कम उपलब्ध होते हैं। सूर्य मंदिर की उत्तरी भित्ति में स्थित चतुर्भुजी सरस्वती स्तंभ प्रकोष्ठ के मध्य द्विभंग में खड़ी है। मुकुट, मुक्ताहार, केयूर, कंकण, कटिसूत्र, नूपुर, अधोवस्त्र तथा वनमाला पहने हुई हैं। चतुर्भुजी देवी के ऊपरी दांये हाथ में अक्षमाल तथा निचले हाथ में पुस्तक हैं। शेष दोनों हाथों में वीणा लिये हुए हैं। नीचे बांये तरफ देवी के पैरों की समीप मृग सदृश्य पशु बैठा हुआ है. सरस्वती के साथ वाहन मृग का अंकन अत्यन्त विलक्षण है। सुनार नदी के तट पर सूर्य मंदिर में स्थित यह प्रतिमा श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है, जहां साधारण दिनों के अलावा वसंत पंचमी पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता की इस प्रतिमा के दर्शन करने आते है।
रहली स्थित सूर्य मंदिर में विलक्षण देव प्रतिमाओं का संग्रह है। यहां देवी देवताओं की दुर्लभतम दर्जनों प्रतिमाएं मौजूद है, जो अलग अलग कालखंड की तथा चंदेल तथा कल्चुरी काल की बताई जाती है। यह प्रतिमाएं बताती है कि यहां प्राचीन समय में विभिन्न देवी देवताओं के दो से तीन मंदिर रहे होंगे जो अज्ञात कारण से ध्वस्त हो गए होंगे। उनकी समन्वित प्रतिमाएं यहां एकत्र कर एक नया मंदिर बना दिया गया है। यहां की कुछ प्रतिमाएं सागर विश्विद्यालय के पुरातत्व संग्रहालय तथा राज्य पुरातत्व के जिला संग्रहालय में संरक्षित है।
व्यापक सर्वेक्षण की आवश्यकता
सागर जिले के रहली देवरी तहसीलें पुरातात्विक दृष्टि से समृद्ध मानी जाती है। देवरी क्षेत्र में जहां कल्चुरी शिल्पकला की प्रचुरता वाले पुरावशेष मिलते है। वहीं रहली तहसील में कल्चुरी तथा चंदेल राजवंश के समय की पुरातात्विक महत्व की प्रतिमाएं मिलती रहती है, लेकिन इनकी खोज तथा पहचान के लिए अभी तक कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए।
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