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Bhilwara Chaitra Navratri festival and fair begins with Ghat installation at Shaktipeeth Dhanop Mata video
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Bhilwara: शक्तिपीठ धनोप माता में घट स्थापना के साथ चैत्र नवरात्र महोत्सव और मेला शुरू, देखें वीडियो
न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, भीलवाड़ा Published by: भीलवाड़ा ब्यूरो Updated Sat, 29 Mar 2025 07:31 PM IST
भीलवाड़ा जिले के फुलिया कलां उपखंड क्षेत्र स्थित प्राचीन और प्रसिद्ध शक्तिपीठ धनोप माता मंदिर में शनिवार को चैत्र अमावस्या के शुभ अवसर पर घट स्थापना के साथ चैत्र नवरात्र महोत्सव और वार्षिक मेला विधिवत रूप से शुरू हो गया। भक्तों की भारी भीड़, पूजा-अर्चना और आरती के बीच पूरे मंदिर परिसर में श्रद्धा और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिला। यह 10 दिवसीय मेला सात अप्रैल सोमवार को दशमी तिथि के साथ समाप्त होगा। मेले का प्रमुख आकर्षण पांच अप्रैल को अष्टमी पर लगने वाला विशाल मेला है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेंगे।
पुजारी प्रदीप पंडा, धर्मेंद्र पंडा, नवल पंडा और राजेश पंडा ने बताया कि शनिवार दोपहर 12.15 बजे घट स्थापना कर विधिवत पूजा-अर्चना और महाआरती के साथ चैत्र नवरात्र महोत्सव का शुभारंभ हुआ। इस मौके पर धनोप प्रन्यास मन्दिर ट्रस्ट अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह राणावत मोजूद रहे। यह उत्सव दस दिनों तक विशेष धार्मिक आयोजन, पूजा-पाठ और आरती के साथ चलेगा।
मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह राणावत ने बताया कि मेले से पूर्व मंदिर परिसर में तैयारियों की व्यापक समीक्षा की गई, जिसमें अस्थायी दुकानों का आवंटन, सजावट, पार्किंग, धर्मशालाओं की व्यवस्थाएं शामिल थीं। प्रशासन द्वारा भी मेले के सफल संचालन हेतु आवश्यक इंतजाम किए हैं।
महोत्सव में आरती और पूजा का विशेष क्रम
पुजारी निखिल पंडा और लक्की पंडा ने बताया कि नवरात्रों में विशेष आरती का क्रम तय किया गया है। प्रातः 3.30 बजे मंगला आरती, सुबह 7.30 बजे मुख्य आरती, शाम 7.15 बजे सायं आरती प्रतिदिन होती है। महोत्सव के अंतिम दिन सात अप्रैल को दिन में 11.30 बजे आरती के पश्चात ज्वारा विसर्जन कर मेले का समापन किया जाएगा।
धनोप माता मंदिर का इतिहास और पौराणिक मान्यता
धनोप माता मंदिर भीलवाड़ा जिले का सबसे प्राचीन शक्तिपीठ माना जाता है। यह मंदिर 1100 वर्षों से भी अधिक पुराना है, जिसकी पुष्टि मंदिर में स्थापित विक्रम संवत 912 के शिलालेख से होती है। मान्यता है कि माता ने अपने स्वप्न में दर्शन देकर टीले की खुदाई करवाने का संकेत दिया। इसके बाद खुदाई में माता अपनी सात बहनों के साथ प्रकट हुईं। माता की ये मूर्तियां हैं अष्टभुजा, अन्नपूर्णा, चामुंडा, बीसभुजा (महिषासुर मर्दिनी), कालिका तथा दो अन्य मूर्तियां जो शृंगार कक्ष में स्थापित हैं। माता का शृंगार फूलों और पत्तियों से किया जाता है, जिसमें नीम और आक को छोड़कर सभी पेड़ों की पत्तियों का उपयोग होता है। मंदिर में शिव-शक्ति का युगल रूप, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, और 64 योगिनियां भी स्थापित हैं। मंदिर में स्थित औघड़नाथ बालाजी की पूजा भी विशेष रूप से होती है। मान्यता है कि इनकी स्थापना धनोप माता के साथ ही की गई थी। इस परंपरा के अनुसार पुजारी साबुन-सर्फ का उपयोग नहीं करते, ताकि उनका शरीर और वस्त्र शुद्ध बने रहें।
एकलिंगनाथ मंदिर और ऐतिहासिक संधि
धनोप माता मंदिर में भगवान शिव एकलिंगनाथ भी स्थापित हैं, जिनकी स्थापना पृथ्वीराज चैहान और राजा जयचंद द्वारा की गई थी। इतिहास के अनुसार, मोहम्मद गोरी से युद्ध के बाद पृथ्वीराज चैहान ने कन्नौज के राजा जयचंद से संधि की थी और दोनों ने धनोप माता की पूजा कर एकलिंगनाथ की स्थापना की। जयचंद ने सभा मंडप का निर्माण भी करवाया था। यह स्थल ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां लगे शिलालेख मंदिर की प्राचीनता की पुष्टि करते हैं।
दाधीच ब्राह्मणों की सेवा परंपरा
वर्तमान में मंदिर की पूजा-अर्चना दाधीच ब्राह्मणों द्वारा की जाती है जो मूलतः नागौर जिले के गोठ मांगलोद गांव के निवासी हैं। करीब 22 पीढ़ियों से यह परिवार मंदिर की सेवा कर रहा है। पुजारी रामप्रसाद पंडा बताते हैं कि उनके पूर्वज दधिमथी माता मंदिर के पुजारी थे। जब वहां अकाल पड़ा, तब वे अपने परिवार के साथ यहां पहुंचे। यहां उनकी कुलदेवी दधिमथी माता ने स्वप्न में दर्शन देकर धनोप माता की मूर्तियों को बाहर निकाल पूजा करने का आदेश दिया। राजा धुंधमार को भी स्वप्न में निर्देश मिला और उन्होंने खुदाई कर माता की मूर्तियां प्रकट करवाईं। इसके बाद दाधीच परिवार यहीं बस गया और तब से आज तक यह परिवार मंदिर की सेवा कर रहा है। एक रोचक तथ्य यह भी है कि धनोप माता मंदिर के पुजारियों के परिवार में हमेशा 20 घर ही रहते हैं। न कभी घटते हैं और न बढ़ते हैं। इसे माता का विशेष वरदान माना जाता है।
धनोप गांव का पुरातात्विक महत्व
धनोप गांव की खुदाई के दौरान अक्सर प्राचीन मूर्तियां, सिक्के और धातु की वस्तुएं प्राप्त होती हैं। हाल ही में निकले चांदी के सिक्कों पर राजा की आकृति और सिंहासन या अग्निवेदी के चित्र मिले हैं, जिनका संबंध हूण शासकों से जोड़ा जाता है।
मेला बना श्रद्धा और संस्कृति का संगम
हर वर्ष की भांति इस बार भी नवरात्र के दौरान लगने वाला मेला श्रद्धालुओं और ग्रामीणों के लिए एक विशेष उत्सव बन गया है। मेले के दौरान भजन संध्या, भोग वितरण, धार्मिक झांकियां, अस्थायी बाजार, झूले, खाने-पीने के स्टॉल आदि लगते हैं। मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह राणावत और सचिव रमेश चंद्र पंडा ने बताया कि प्रशासन, पुलिस, चिकित्सा विभाग तथा सफाईकर्मियों के सहयोग से मेले को सुचारु रूप से संचालित किया जाएगा।
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