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बाराबंकी के गांव में आज भी जीवित हैं सती प्रथा के चिन्ह, होती है पूजा
बाराबंकी में जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर बनीकोडर ब्लॉक और अयोध्या लोकसभा क्षेत्र में एक गांव पड़ता है जरौली। जहां आज भी इतिहास की एक भयावह परंपरा की छाया मौजूद है। सती प्रथा... एक ऐसी कुप्रथा, जिसमें किसी महिला को उसके मृत पति की चिता में जीवित जला दिया जाता था। इस गांव में आज भी इसके प्रमाण मौजूद हैं।
हम जब जरौली पहुंचे, तो गांव के बाहर एक पुराने बाग में बने एक छोटे से मंदिर जैसे ढांचे के पास लोगों की आस्था देखते ही बनती है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, यह वही स्थान है जहां अतीत में कोई महिला सती हुई थीं। अब यहां न केवल पूजा होती है, बल्कि मुंडन और अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी इसी जगह पूजा करके की जाती है।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह स्थान कई पीढ़ियों से पूजा का केंद्र रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि यहां सती हुई महिलाएं देवी रूप में पूजनीय हैं। जिस जगह पर स्थान है वहां आसपास कुछ चरवाहे बच्चे मिले। उन्होंने पूछने पर बताया कि यह सती माता है। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं।
ग्राउंड से जो बात सामने आई, वह यह कि सती प्रथा न केवल समाज की एक त्रासदी थी, बल्कि महिलाओं के अधिकारों पर गंभीर हमला भी। इतिहास में दर्ज है कि 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक ने इस पर औपचारिक रोक लगाई थी। उससे पहले राजा राम मोहन राय ने इसके खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी थी, जब उनकी भाभी को सती कर दिया गया था।
जरौली गांव की इस चुपचाप खड़ी दीवारों के पास भले ही आज श्रद्धा के फूल चढ़ाए जा रहे हों, लेकिन इतिहास की आंच अब भी इन पत्थरों से महसूस की जा सकती है। सवाल ये है कि क्या श्रद्धा और इतिहास के बीच संतुलन बनाए रखना समाज की जिम्मेदारी नहीं है? जरौली इकलौता गांव नहीं है बल्कि बाराबंकी के कई गांव में सती माता के स्थान है। आज की नई पीढ़ी शायद उनके इतिहास के बारे में नहीं जानती।
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