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VIDEO: रायबरेली: आजादी से अब तक नहीं बदली बरचंदा गांव की सूरत, सई नदी की धारा बदलने से उन्नाव सीमा से सटा
रायबरेली के बछरावां ब्लॉक क्षेत्र का बरचंदा गांव बीते कई दशकों तथा आजादी से अब तक गांव की सूरत नहीं बदली है। रायबरेली मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत मदा खेड़ा के बरचंदा गांव की सूरत जस की तस बनी हुई है। बरचंदा गांव में कुल आबादी 250 है । वहीं 145 मतदाता इस गांव में रहते हैं। गांव में ही प्राथमिक विद्यालय है जहां दो शिक्षक तथा 35 छात्र हैं । यह गांव उन्नाव बॉर्डर पर साई नदी के तट पर था। आजादी के पहले सई नदी में भीषण बाढ़ आई और नदी ने अपना रास्ता बदल दिया। इससे गांव उन्नाव जनपद की ओर पहुंच गया। हालांकि कागजों पर बरचंदा गांव आज भी बछरावां विकासखंड का एक गांव है।
रायबरेली जनपद का ही विकास कार्य इस गांव में होता है। गांव में शिक्षा व्यवस्था की बात की जाए तो प्राथमिक विद्यालय बरचंदा है। वहीं गांव में जाने के लिए पक्की सड़क नहीं है। सई नदी किनारे बसे इस गांव के चारों ओर जंगल से घिरा हुआ गांव है। रात के वक्त अगर इस गांव की महिलाओं को प्रसव पीड़ा हो या फिर किसी बीमारी से तबीयत खराब हो जाए तो गांव तक एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है। ऐसे में तीन-चार किलोमीटर दूर तक ग्रामीणों को अपने मोटरसाइकिल साइकिल से ही जाकर एंबुलेंस तक मरीज को पहुंचाना पड़ता है। बरसात के मौसम पर या फिर हल्की हवा चलने पर बिजली फाल्ट होने के चलते कई दिनों तक गांव में बिजली नहीं पहुंचती है।
ग्रामीण अर्जून, रमन, ब्रजेश, शिव बहादुर ने बताया कि आजादी से अब तक इस गांव का विकास नहीं हुआ एक सड़क व सई नदी पर पुल का निर्माण नहीं किया गया है। गांव में 2024 लोकसभा चुनाव में पहली बार पोलिंग बूथ तो बनाया गया था परंतु राजनीतिक पार्टियों गांव तक नहीं पहुंचती हैं। खंड विकास अधिकारी शिव बहादुर सिंह ने बताया कि संपर्क मार्ग के लिए प्रस्ताव भेजा गया है।
चुनाव में गर्म पड़ता है बरचंदा गांव के विकास का मुद्दा ग्रामीण रामचन्द्र, गया, मनोहर, राजू का कहना है कि गांव के विकास का मुद्दा सिर्फ चुनाव के वक्त नेताओं को याद आता है। चुनाव खत्म होते ही गांव के विकास का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला जाता है।
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