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अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस: नाबालिगों से खिलवाड़...किशोर उम्र में जेल भेज कर 162 को बना दिया अपराधी

संवाद न्यूज एजेंसी, आगरा Published by: अरुन पाराशर Updated Wed, 10 Dec 2025 04:40 PM IST
सार

वर्ष 2015 से 2023 के बीच कोर्ट के आदेश पर 162 बंदियों को राजकीय संप्रेक्षण गृह स्थानांतरित किया गया। इन बंदियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। मगर उनके बालिग और नाबालिग होने की जांच नहीं की गई।

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International Human Rights Day: 162 people were made criminals by being sent to jail as teenagers
Teenager, crime, child demo - फोटो : freepik
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विस्तार
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थानों में अवैध हिरासत की शिकायत हो या फिर किशोरों को गिरफ्तार कर जेल भेजने के मामले, पुलिस मानवाधिकारों का उल्लंघन सबसे ज्यादा कर रही है। साल 2015 से 2023 तक पुलिस ने 162 किशोरों को जेल भेजा था। आरोपी किशोरों के परिजन ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट के आदेश पर हुई जांच के बाद किशोरों को जेल से किशोर संप्रेक्षण गृह भेजा गया। पुलिस की लापरवाही पर कार्रवाई न होने से लगातार मामले आ रहे हैं। यह खुलासा एक आरटीआई में हुआ है।
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मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने बताया कि उन्होंने जिला जेल से सूचना अधिकार अधिनियम में जानकारी मांगी थी। इसमें सामने आया कि वर्ष 2015 से 2023 के बीच कोर्ट के आदेश पर 162 बंदियों को राजकीय संप्रेक्षण गृह स्थानांतरित किया गया। कार्यकर्ता ने बताया कि इन बंदियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। मगर उनके बालिग और नाबालिग होने की जांच नहीं की गई। इस वजह से नाबालिग आरोपियों को भी जेल में रहना पड़ा। उनके परिजन ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया। जांच में मामला सामने आने के बाद कोर्ट के आदेश पर इन बंदियों को शिफ्ट किया गया। अगर पुलिस पहले ही जांच कर लेती तो इन लोगों को जेल नहीं भेजा गया होता। नाबालिग आरोपियों को पकड़ने के मामले में जारी नियमों का पालन नहीं किया गया।
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अवैध हिरासत में रख रही पुलिस
मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने बताया कि राज्य और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पत्र भेजकर शिकायत की जा सकती है। इसके अलावा ऑनलाइन ईमेल और मोबाइल नंबर के आधार पर भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। इनमें सबसे ज्यादा शिकायत पुलिस की लापरवाही की आ रही हैं। कई बार लोगों की एफआईआर दर्ज नहीं होती है। मामूली शक में भी पुलिस लोगों को उठा लेती है। कई दिन तक अवैध हिरासत में रखा जाता है। थानों में मानवाधिकार आयोग के नियमों की जानकारी वाले बोर्ड लगाने के नियमों का भी पालन नहीं हो रहा है। बोर्ड को या तो दरवाजे से हटाकर लगा दिया जाता है या फिर वो कबाड़ में पड़े हुए हैं।

अधिकारी नहीं सुन रहे, आयोग में दर्ज करा रहे शिकायत
युवा अधिवक्ता संघ के मंडल अध्यक्ष नितिन वर्मा ने बताया कि वर्तमान में राज्य मानवाधिकार आयोग उत्तर प्रदेश में पूर्णकालिक अध्यक्ष ना होने के कारण शिकायतों का सफल निस्तारण नहीं हो पा रहा है। वर्तमान में राज्य मानवाधिकार आयोग में कुल 556 शिकायत ऐसी हैं, जो लंबित हैं। मानवाधिकार आयोग से शिकायत करने वालों में सबसे अधिक संख्या पुलिस से पीड़ित फरियादियों की रहती है। जब कहीं सुनवाई नहीं होती तब पीड़ित व्यक्ति मानवाधिकार आयोग की शरण लेता है।

पुलिस लाइन में बनी है मानवाधिकार सेल
पुलिस लाइन में मानवाधिकार सेल बनी है। इसमें वर्ष 2025 में 500 से अधिक मामले आए हैं। इनमें सबसे ज्यादा शिकायत पुलिस की ही हैं। इसकी प्रभारी अधिकारी अपर पुलिस उपायुक्त प्रोटोकाल पूनम सिरोही हैं।

यह हैं दिशानिर्देश
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में स्पष्ट कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर उसके व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को नहीं छीना जाएगा। इसका अर्थ है कि पुलिस बिना मतलब किसी भी व्यक्ति के साथ गलत व्यवहार या मारपीट नहीं करेगी।
- पुलिस किसी भी व्यक्ति को अगर गिरफ्तार करती है या हिरासत में लेती है तो उसे निरोध रखे गए स्थान के संबंध में अपने मित्र एवं रिश्तेदारों को सूचना देने का अधिकार है।
- गिरफ्तार किए गए या हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पुलिस स्टेशन में रखी पंजिका में जिसे जीडी कहा जाता है, दर्ज किया जाएगा। गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का चिकित्सीय परीक्षण तत्काल कराया जाएगा।
- पुलिस को किसी भी प्रकार के अनावश्यक बल प्रयोग से बचना चाहिए और व्यक्ति की निजता का ध्यान रखना चाहिए। महिलाओं से संबंधित अपराध में महिलाएं ही संबंधित महिलाओं का परीक्षण करें।
- वारंट के बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, यदि वह किसी संज्ञेय अपराध में शामिल है तो उसे नोटिस देकर बुलाया जा सकता है।
- असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर सूर्यास्त के बाद एवं पहले किसी भी स्थिति में बल प्रयोग नहीं किया जाएगा।
- किसी भी प्रकार से पुलिस बर्बरता का शिकार होने पर पीड़ित व्यक्ति राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत कर सकता है। मारपीट में मुआवजे की मांग भी कर सकता है। राज्य सरकार पुलिसकर्मियों के वेतन से हर्जाने की रकम वसूल कर पीड़ित व्यक्ति को देती है।
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