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मथुरा हादसा: जिंदा जले थे 19 लोग...दो शवों से डीएनए लेना भी बना चुनाैती, लखनऊ लैब में इस तकनीक से कोशिश जारी
संवाद न्यूज एजेंसी, आगरा
Published by: अरुन पाराशर
Updated Thu, 25 Dec 2025 11:43 AM IST
सार
मथुरा के बलदेव में यमुना एक्सप्रेसवे पर भीषण हादसा हुआ था। 19 लोगों की जिंदा जलकर माैत हो गई थी। शवों की पहचान के लिए डीएनए जांच कराई गई। लेकिन दो शवों से डीएनए हासिल करना भी चुनाैती बन गया है।
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मथुरा हादसा
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
मथुरा में यमुना एक्सप्रेस वे पर 16 दिसंबर की सुबह भीषण हादसे में कई वाहन टकरा गए थे। इसमें 19 लोगों की मृत्यु हो गई थी। जलने की वजह से शवों की पहचान नहीं हो सकी थी। हड्डी और दातों के 15 नमूने आगरा फोरेंसिक लैब भेजे गए थे। विज्ञानियों को 13 नमूनों से डीएनए लेने में सफलता मिली थी। इनमें दो नमूने एक ही शव के थे।
डीएनए मिलान से 12 मृतकों की पहचान हो गई। सात दिन प्रयास के बाद भी दो नमूनों से डीएनए हासिल नहीं होने पर उन्हें लखनऊ फोरेंसिक लैब भेजा गया है। लैब में काम भी शुरू कर दिया गया। विज्ञानी नमूनों के माइटोकांडि्रया से डीएनए निकालने का प्रयास कर रहे हैं।
लैब में विज्ञानियों ने 13 नमूनों से न्यूक्लियस तकनीक से डीएनए हासिल किया था। दो नमूने बेहद जले हुए थे। इस वजह से तकनीक काम नहीं आई। इसको देखते हुए माइटोकांड्रिया की मदद से डीएनए हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है। माइटोकांड्रिया से डीएनए निकालने वाली हाईटेक मशीनें फिलहाल लखनऊ और मुरादाबाद फोरेंसिक लैब में ही हैं। डिप्टी डायरेक्टर अशोक कुमार ने बताया कि लखनऊ लैब में भी अवशेष की जांच कराई जाएगी।
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डीएनए मिलान से 12 मृतकों की पहचान हो गई। सात दिन प्रयास के बाद भी दो नमूनों से डीएनए हासिल नहीं होने पर उन्हें लखनऊ फोरेंसिक लैब भेजा गया है। लैब में काम भी शुरू कर दिया गया। विज्ञानी नमूनों के माइटोकांडि्रया से डीएनए निकालने का प्रयास कर रहे हैं।
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लैब में विज्ञानियों ने 13 नमूनों से न्यूक्लियस तकनीक से डीएनए हासिल किया था। दो नमूने बेहद जले हुए थे। इस वजह से तकनीक काम नहीं आई। इसको देखते हुए माइटोकांड्रिया की मदद से डीएनए हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है। माइटोकांड्रिया से डीएनए निकालने वाली हाईटेक मशीनें फिलहाल लखनऊ और मुरादाबाद फोरेंसिक लैब में ही हैं। डिप्टी डायरेक्टर अशोक कुमार ने बताया कि लखनऊ लैब में भी अवशेष की जांच कराई जाएगी।
सफल है माइटोकांड्रिया तकनीक
डीएनए मिलान के लिए फोरेंसिक लैब के विज्ञानी न्यूक्लियस तकनीक की मदद लेते हैं। एक सेल या कोशिका में एक न्यूक्लियस होता है। मगर, सेल या कोशिका में माइटोकांड्रिया या सूत्र कणिका की संख्या अनगिनत होती है। यह यूकैरियोटिक कोशिकाओं के अंदर पाए जाने वाले छोटे व झिल्ली-बद्ध कोशिकांग हैं। माइटोकॉन्ड्रिया तकनीक से डीएनए निकालना एक प्रक्रिया है, जिसमें कोशिका के 'पावरहाउस' माइटोकॉन्ड्रिया से उसका अपना खास डीएनए निकाला जाता है, जो सामान्य नाभिकीय डीएनए से अलग होता है।
यह तकनीक फोरेंसिक, पैतृक रिश्तों की पहचान और माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों (जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग) के अध्ययन और उपचार (जैसे माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन) के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह केवल मां से बच्चों में मिलता है। इसमें उत्परिवर्तन आसानी से जमा होते हैं।
डीएनए मिलान के लिए फोरेंसिक लैब के विज्ञानी न्यूक्लियस तकनीक की मदद लेते हैं। एक सेल या कोशिका में एक न्यूक्लियस होता है। मगर, सेल या कोशिका में माइटोकांड्रिया या सूत्र कणिका की संख्या अनगिनत होती है। यह यूकैरियोटिक कोशिकाओं के अंदर पाए जाने वाले छोटे व झिल्ली-बद्ध कोशिकांग हैं। माइटोकॉन्ड्रिया तकनीक से डीएनए निकालना एक प्रक्रिया है, जिसमें कोशिका के 'पावरहाउस' माइटोकॉन्ड्रिया से उसका अपना खास डीएनए निकाला जाता है, जो सामान्य नाभिकीय डीएनए से अलग होता है।
यह तकनीक फोरेंसिक, पैतृक रिश्तों की पहचान और माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों (जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग) के अध्ययन और उपचार (जैसे माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन) के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह केवल मां से बच्चों में मिलता है। इसमें उत्परिवर्तन आसानी से जमा होते हैं।
माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए क्या है?
विधि विज्ञान प्रयोगशाला के पूर्व निदेशक अतुल कुमार मित्तल ने बताया कि माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए कोशिका के माइटोकॉन्ड्रिया (ऊर्जा बनाने वाले अंग) में पाया जाता है, जबकि अधिकांश डीएनए नाभिक में होता है। यह एक छोटा, वृत्ताकार डीएनए होता है, जिसमें 37 जीन होते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन के लिए जरूरी होते हैं। यह केवल मां से बच्चों को मिलता है, इसलिए यह पारिवारिक रिश्तों और वंशावली को ट्रैक करने में मदद करता है। चुनौतीपूर्ण नमूनों (जैसे पुराने अवशेष) में व्यक्तियों की पहचान करने के लिए उपयोगी है, जहां नाभिकीय डीएनए खराब हो जाता है।
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विधि विज्ञान प्रयोगशाला के पूर्व निदेशक अतुल कुमार मित्तल ने बताया कि माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए कोशिका के माइटोकॉन्ड्रिया (ऊर्जा बनाने वाले अंग) में पाया जाता है, जबकि अधिकांश डीएनए नाभिक में होता है। यह एक छोटा, वृत्ताकार डीएनए होता है, जिसमें 37 जीन होते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन के लिए जरूरी होते हैं। यह केवल मां से बच्चों को मिलता है, इसलिए यह पारिवारिक रिश्तों और वंशावली को ट्रैक करने में मदद करता है। चुनौतीपूर्ण नमूनों (जैसे पुराने अवशेष) में व्यक्तियों की पहचान करने के लिए उपयोगी है, जहां नाभिकीय डीएनए खराब हो जाता है।
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