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UP: कल्याण सिंह को जिताने के लिए 'नेताजी' ने लगा दी थी पूरी ताकत, बात प्रतिष्ठा की थी...; ऐसे मिली एटा में जीत

राजीव वर्मा, एटा Published by: धीरेन्द्र सिंह Updated Fri, 22 Mar 2024 02:38 PM IST
सार

लोकसभा चुनाव 2009 में एटा पर सबकी निगाहें टिकी हुईं थीं। यहां से एक नहीं बल्कि दो पूर्व सीएम की प्रतिष्ठा दांव पर थी। दरअसल मुलायम सिंह के समर्थन पर कल्याण सिंह ने यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ा था।

 

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Mulayam Singh had used all his strength to make Kalyan Singh win Lok Sabha Election 2009
कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो) - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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लोकसभा चुनाव 2009 में एटा संसदीय सीट पर पूरे सूबे की निगाहें थीं। यह हॉट सीट बन गई थी। जहां यूपी के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। मुलायम सिंह यादव के समर्थन पर कल्याण सिंह यहां से पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे।
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एक ओर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव थे। जिन्हें अयोध्या में कारसेवकों पर गोलीकांड के बाद मौलाना मुलायम जैसा नाम दे दिया गया था, तो दूसरी ओर थे प्रखर हिंदूवादी नेता कल्याण सिंह। जिनका राजनीति कॅरिअर अयोध्या और हिंदुत्व के मुद्दे पर परवान चढ़ा था। दोनों ही बड़े नेता थे और दोनों की विचारधारा अलग-अलग थी, लेकिन 2009 का वक्त ऐसा आया कि ये दोनों विपरीत विचारधारा के नेता साथ खड़े हो गए।
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कल्याण सिंह 1991 और 1997 में भाजपा की ओर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए थे। जबकि 1999 में अटल विहारी बाजपेयी से मतभेद के चलते उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। अपना नया राजनीतिक दल राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाया। इसमें जहां खुद को राजनीतिक के शिखर पर ले जाने की महत्वाकांक्षा थी तो इससे बड़ा उद्देश्य भाजपा को नुकसान पहुंचाकर अपनी अहमियत साबित करने का भी था। हालांकि इस प्रयोग में वह ज्यादा सफल नहीं रहे और 2004 में भाजपा में वापस आ गए।

 

इसके बाद 2004 में भाजपा के टिकट पर बुलंदशहर से चुनाव लड़कर सांसद बने, लेकिन उम्मीद के अनुसार तवज्जो न मिलने पर फिर भाजपा से मोहभंग हो गया और 2009 में पार्टी छोड़ने का एलान कर दिया। यही वो समय था जब उनकी राजनीतिक विचारधारा के विरोधी पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से उनकी नजदीकियां बढ़ीं। कल्याण सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोधी बहुल एटा सीट पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया, तो मुलायम सिंह ने इस सीट पर पार्टी से प्रत्याशी न लड़ा उन्हें सपा का समर्थन सौंप दिया।

 

प्रदेश से लेकर देश की राजनीति में बड़े कद के दो नेता जब साथ आए तो बड़ी-बड़ी राजनीतिक चर्चाएं एटा पर केंद्रित होने लगीं। कभी अल्पसंख्यक मतदाताओं के पक्षधर मुलायम सिंह पर तो कभी हिंदुत्व का ध्वज लहराने वाले कल्याण सिंह पर सवाल उठाए जाते थे। बहरहाल, जब दोनों बड़े नेता साथ आए तो चुनाव एकतरफा ही हो गया और कल्याण सिंह आसानी से जीत हासिल कर सांसद बन गए। हालांकि बाद में मुलायम-कल्याण का दोस्ताना लंबे समय तक नहीं चला। दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं। 2013 में कल्याण सिंह की भाजपा में फिर वापसी हो गई और 2014 में उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बना दिया गया। 

 

सियासी हलकों में मच गई थी उथल-पुथल
कल्याण सिंह एटा लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने आए तो राजनीतिक हलकों में उथल-पुथल मच गई थी। भाजपा को उनके सामने लड़ाने के लिए प्रत्याशी नहीं मिल रहा था। चिकित्सा पेशे से जुड़े डॉ. श्याम सिंह शाक्य को टिकट दिया गया। जबकि भाजपा के पूर्व सांसद महादीपक सिंह शाक्य अपनी उपेक्षा पर भाजपा छोड़ कांग्रेस से चुनाव लड़ने उतरे। वहीं सपा के पूर्व सांसद देवेंद्र सिंह को पार्टी का निर्णय नागवार गुजरा और उन्होंने विरोध का बिगुल फूंक दिया। बसपा से टिकट हासिल कर चुनाव मैदान में आ खड़े हुए।
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