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Aligarh: 24 साल बाद आया फैसला, व्यापार कर टीम की घेराबंदी के आरोप में भाजपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष बरी

अमर उजाला नेटवर्क, अलीगढ़ Published by: चमन शर्मा Updated Tue, 30 Dec 2025 03:12 PM IST
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सार

तमाम प्रयास के बाद भी कोई गवाह गवाही के लिए अदालत में हाजिर नहीं हुआ। न जारी समन व वारंटों की तामील सूचना अदालत तक वापस आई, जबकि मांची न्यायालय में लगातार हाजिर रहे। अदालत ने अभियोजन का गवाही का समय समाप्त कर संदेह का लाभ देते हुए मुकेश उपाध्याय मांची को बरी कर दिया।

Former BJP leader acquitted on charges of besieging the trade tax team
कोर्ट - फोटो : प्रतीकात्मक
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विस्तार
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व्यापार कर टीम की घेराबंदी कर सरकारी कार्य में बाधा के आरोपी भाजपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष मुकेश उपाध्याय मांची अदालत से बरी कर दिए गए। 24 वर्ष पुराने प्रकरण में अभियोजन की ओर से कोई गवाह पेश नहीं किया जा सका। अलीगढ़ सीजेएम न्यायालय स्तर से किसी गवाह के न आने पर गवाही का समय समाप्त कर निर्णय सुनाया गया है।

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यह प्रकरण 29 दिसंबर 2001 का है। असिस्टेंट कमिश्नर प्रवर्तन व्यापार कर (अब वाणिज्य कर) रामगोपाल गुप्ता की ओर से जिलाधिकारी को तहरीर दी गई। बताया गया कि दोपहर में कर चोरी की सूचना पर दो ट्रकों की तलाश में व्यापार कर अधिकारी एसके तिवारी घरबरा केंद्र व व्यापार कर अधिकारी सचल दल मेहंदी हसन की टीमें कोतवाली क्षेत्र में कालीचरण वार्ष्णेय की ट्रांसपोर्ट पर पहुंचीं। जहां मुकेश उपाध्याय मांची (तत्कालीन नगर निगम पार्षद) अपने साथ मुकुल विक्रम गौतम बिल्लू व 20 से 25 लोगों को लेकर पहुंचे। जहां सरकारी वाहन को रोककर चेकिंग के लिए आने का विरोध करते हुए हाथ पैर तोड़ने की धमकी दी।
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 इस तरह चेकिंग को रोकने के लिए व्यवधान उत्पन्न किया गया व शांति व्यवस्था भंग करने की धमकी दी गई। इस तहरीर पर नौ जनवरी 2002 को कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज की गई। इस पर पुलिस ने मुकेश उपाध्याय मांची व मुकुल विक्रम के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई। मामले में मुकेश उपाध्याय मांची की पत्रावली पर न्यायालय में अलग ट्रायल हुआ। बाद में मुकेश उपाध्याय 2002-05 पर डिप्टी मेयर व 2009-13 तक भाजपा के महानगर अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 2002 से सत्र परीक्षण शुरू होने पर न्यायालय स्तर से पुलिस व व्यापार कर टीम के गवाहों को तलब करने के लिए समन जारी किए। बाद में वारंट भी जारी किए। 

एसएसपी तक को पत्राचार किया गया। तमाम प्रयास के बाद भी कोई गवाह गवाही के लिए अदालत में हाजिर नहीं हुआ। न जारी समन व वारंटों की तामील सूचना अदालत तक वापस आई, जबकि मांची न्यायालय में लगातार हाजिर रहे। हालांकि अभियोजन पक्ष ने रिपोर्ट के आधार पर सजा का अनुरोध किया। बचाव पक्ष की ओर से तर्क रखा गया कि कोई साक्षी नहीं आया। घटना झूठी दर्ज कराई गई थी। इस तरह अदालत ने अभियोजन का गवाही का समय समाप्त कर संदेह का लाभ देते हुए मुकेश उपाध्याय मांची को इस आरोप से बरी कर दिया।

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