Taj Mahal: रूस और एएमयू के वैज्ञानिक लौटाएंगे ताजमहल की पीली पड़ी रंगत, मिलकर चल रहा काम
एएमयू म्यूजियोलॉजी विभाग के चेयरमैन प्रोफेसर अब्दुर्रहीमके के साथ रूसी वैज्ञानिक पीटर व एक एएमयू रिसर्च स्कॉलर इस काम में लगे हुए हैं। दो वर्षों से काम चल रहा है।
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विश्व हेरिटेज इमारत ताज महल की फीकी पड़ रही रंगत को सुधारने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) और रूस के वैज्ञानिकों ने काम शुरू कर दिया है। वैज्ञानिक पीले पड़े संगमरमर पर फोटो कैटेलिटिक नैनो मैटेरियल का प्रयोग कर रहे हैं। जिसके परिणाम बेहद शानदार आए हैं। इससे उत्साहित वैज्ञानिकों का दावा है कि एमओयू के मुताबिक अब अगले तीन साल में पूरी इमारत के संगमरमर को पूरी तरह चमका दिया जाएगा।
एएमयू म्यूजियोलॉजी विभाग के चेयरमैन प्रोफेसर अब्दुर्रहीमके के साथ रूसी वैज्ञानिक पीटर व एक एएमयू रिसर्च स्कॉलर इस काम में लगे हुए हैं। दो वर्षों से काम चल रहा है। प्रो. अब्दुर्रहीम ने बताया कि मौसम, धूप, धूल और प्रदूषण की मार से ताजमहल का संगमरमर वक्त के साथ अपनी रंगत खोने लगा है। हमने जब परीक्षण किया तो पाया कि ताज का फर्श वाला हिस्सा सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। सबसे पहले उसी पर प्रयोग शुरू किए गए।
वह कहते हैं कि रूस में एक विशेष केमिकल फोटो कैटेलिटिक नैनो मैटेरियल विकसित किया गया है। यह मार्बल (संगमरमर) में आने वाले पीलेपन और उसके क्षरण को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में मदद करता है। सबसे खास बात यह है कि भारतीय वातावरण में यह प्रभावी है और इसका कोई नकारात्मक असर नहीं है। इससे पहले ताजमहल की संगमरमर को पीला पड़ने से बचाने के लिए मुलतानी मिट्टी का प्रयोग किया गया था जो अधिक कारगर नहीं रहा।
संगमरमर में क्षरण को भी रोकेगा फोटो कैटेलिटिक नैनो मैटेरियल
प्रोफेसर अब्दुर्रहीम के कहते हैं कि पीलेपन के साथ ही ताज की संगमरमर में क्षरण की भी समस्या देखी गई। यह वक्त के साथ होने वाली स्वाभाविक प्रक्रिया है। फोटो कैटेलिटिक नैनो मैटेरियल के प्रयोग से इसको भी रोका जा सकेगा।
गुंबद और मीनार का कई जगह से रंग बदला
इस प्रोजेक्ट में लगे वैज्ञानिकों का कहना है कि ताज का निर्माण 1632 में हुआ था। इसकी संगमरमर ने 393 वर्ष का सफर तय किया है। इस लंबी अवधि के दौरान गुंबद, मीनार आदि कई जगहों से संगमरमर का रंग बदल गया है। परीक्षण में उन हिस्सों को चिह्नित किया है। बाहरी दीवारों पर भी हवा का प्रभाव देखा गया है। यहां पर काम करने के लिए पुरातत्व विभाग भी सहयोग कर रहा है।
