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प्रभु श्री राम का नैमिषारण्य से रहा है आध्यात्मिक नाता
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नैमिषारण्य(सीतापुर)। नैमिषतीर्थ का नाम सुनते ही मन में ऋषियों की तपोभूमि व मां ललिता देवी शक्तिपीठ का चित्र सामने आने लगता है। लेकिन भगवान राम का नैमिष तीर्थ का बड़ा ही अनूठा आध्यात्मिक संबंध रहा है। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम राम के वनवास जाने से लेकर रावण वध तक के प्रमाण आज भी नैमिषारण्य क्षेत्र में मौजूद हैं। आज रविवार को रामनवमी है। भगवान राम के जन्म व उनके द्वारा की गई 84 कोसी परिक्रमा और अश्वमेध यज्ञ के प्रमाण आज भी यहां मिलते हैं।
रावध वध के बाद भगवान राम को ब्रह्महत्या से मुक्ति नैमिषारण्य में ही मिली थी। यहां के कण-कण में भगवान राम की महिमा रची बसी हुई है। जहां-जहां भगवान राम के चरण पड़े हैं, उनके प्रमाण आज भी नैमिषारण्य के चौरासी कोसी क्षेत्र की सीमा में मिलते हैं। नैमिषारण्य की अयोध्या में हनुमान जी की बहुत प्राचीन मूर्ति स्थापित है। दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर के अंदरूनी हिस्से में लाल, नीले, सफेद रंगों से बेहतरीन नक्काशी बनी हुई है, जो काफी पुरानी होते हुए भी आज भी बहुत आकर्षक है।
मंदिर के गुंबद में शेर, चीता व विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां भी बनी हुई हैं। रविवार को रामनवमी मनाई जाएगी तो नैमिषारण्य क्षेत्र में एक अलग ही छटा दिखाई देगी। नैमिषारण्य को पुराणों में सतयुग की भूमि कहा गया है। मनु सतरूपा तपस्थान के महंत आचार्य ऋतवृत शास्त्री बताते हैं कि सतयुग में सृष्टि के आदिपुरुष मनु सतरूपा ने यहीं तपस्या की थी। इस कथा का पूरा वर्णन गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के बालकांड में मिलता है।
राजा मनु राजसत्ता को त्यागकर अपने पुत्रों उत्तानपाद व प्रियव्रत को राजसत्ता देकर नैमिष भूमि पर आए थे। निराहार 23 हजार वर्षों के कठिन तप के बाद परमात्मा ने प्रकट होकर राजा मनु और रानी सतरूपा को वरदान दिया कि भगवान स्वयं त्रेतायुग में रामावतार लेंगे। तब मनु राजा दशरथ व सतरूपा रानी कौशल्या बनेंगी। भगवान राम ने अयोध्यावासियों के साथ नैमिषारण्य की चौरासी कोसी परिक्रमा की। इसलिए आज भी परिक्रमार्थियों को रामादल कहा जाता है।
मान्यता है कि जब भगवान राम पर रावण का वध करने का ब्रह्महत्या का दोष लगा। तब ऋषि वशिष्ठ की आज्ञा लेकर उन्होंने नैमिषारण्य के समस्त तीर्थों में स्नान किया। यह दोष प्रभास्कर नामक तीर्थ में छूटा। तब से इस तीर्थ का नाम हत्याहरण तीर्थ पड़ गया, जो अब हरदोई जनपद में पड़ता है। आचार्य शास्त्री बताते हैं कि 84 कोसी परिक्रमा के दौरान नैमिषारण्य में कई ऐसे स्थानों के दर्शन होते हैं, जहां आज भी राम की महिमा का दर्शन होता है। अहिरावण का वध करके हनुमान जी ने नैमिष में विश्राम किया था। यह स्थान हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां हनुमान जी की दक्षिणमुखी प्रतिमा के दाएं और बाएं कंधे पर राम और लक्ष्मण विराजमान हैं।
आचार्य सदानंद द्विवेदी बताते हैं कि गोमती तट स्थित दशाश्वमेध घाट का वर्णन वाल्मीकि रामायण में मिलता है। भगवान राम ने लोककल्याण के लिए जब अश्वमेध यज्ञ किया, तब सीताजी के स्थान पर सोने की सीता की मूर्ति रखकर पूजा की थी। यह स्थान दशाश्वमेध घाट आज भी मौजूद है। जिसे अब सिद्धेश्वर नाथ के मंदिर नाम से जाना जाता है। गोमती के तट पर मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने रामेश्वरम की स्थापना की थी।
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रावध वध के बाद भगवान राम को ब्रह्महत्या से मुक्ति नैमिषारण्य में ही मिली थी। यहां के कण-कण में भगवान राम की महिमा रची बसी हुई है। जहां-जहां भगवान राम के चरण पड़े हैं, उनके प्रमाण आज भी नैमिषारण्य के चौरासी कोसी क्षेत्र की सीमा में मिलते हैं। नैमिषारण्य की अयोध्या में हनुमान जी की बहुत प्राचीन मूर्ति स्थापित है। दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर के अंदरूनी हिस्से में लाल, नीले, सफेद रंगों से बेहतरीन नक्काशी बनी हुई है, जो काफी पुरानी होते हुए भी आज भी बहुत आकर्षक है।
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मंदिर के गुंबद में शेर, चीता व विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां भी बनी हुई हैं। रविवार को रामनवमी मनाई जाएगी तो नैमिषारण्य क्षेत्र में एक अलग ही छटा दिखाई देगी। नैमिषारण्य को पुराणों में सतयुग की भूमि कहा गया है। मनु सतरूपा तपस्थान के महंत आचार्य ऋतवृत शास्त्री बताते हैं कि सतयुग में सृष्टि के आदिपुरुष मनु सतरूपा ने यहीं तपस्या की थी। इस कथा का पूरा वर्णन गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के बालकांड में मिलता है।
राजा मनु राजसत्ता को त्यागकर अपने पुत्रों उत्तानपाद व प्रियव्रत को राजसत्ता देकर नैमिष भूमि पर आए थे। निराहार 23 हजार वर्षों के कठिन तप के बाद परमात्मा ने प्रकट होकर राजा मनु और रानी सतरूपा को वरदान दिया कि भगवान स्वयं त्रेतायुग में रामावतार लेंगे। तब मनु राजा दशरथ व सतरूपा रानी कौशल्या बनेंगी। भगवान राम ने अयोध्यावासियों के साथ नैमिषारण्य की चौरासी कोसी परिक्रमा की। इसलिए आज भी परिक्रमार्थियों को रामादल कहा जाता है।
मान्यता है कि जब भगवान राम पर रावण का वध करने का ब्रह्महत्या का दोष लगा। तब ऋषि वशिष्ठ की आज्ञा लेकर उन्होंने नैमिषारण्य के समस्त तीर्थों में स्नान किया। यह दोष प्रभास्कर नामक तीर्थ में छूटा। तब से इस तीर्थ का नाम हत्याहरण तीर्थ पड़ गया, जो अब हरदोई जनपद में पड़ता है। आचार्य शास्त्री बताते हैं कि 84 कोसी परिक्रमा के दौरान नैमिषारण्य में कई ऐसे स्थानों के दर्शन होते हैं, जहां आज भी राम की महिमा का दर्शन होता है। अहिरावण का वध करके हनुमान जी ने नैमिष में विश्राम किया था। यह स्थान हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां हनुमान जी की दक्षिणमुखी प्रतिमा के दाएं और बाएं कंधे पर राम और लक्ष्मण विराजमान हैं।
आचार्य सदानंद द्विवेदी बताते हैं कि गोमती तट स्थित दशाश्वमेध घाट का वर्णन वाल्मीकि रामायण में मिलता है। भगवान राम ने लोककल्याण के लिए जब अश्वमेध यज्ञ किया, तब सीताजी के स्थान पर सोने की सीता की मूर्ति रखकर पूजा की थी। यह स्थान दशाश्वमेध घाट आज भी मौजूद है। जिसे अब सिद्धेश्वर नाथ के मंदिर नाम से जाना जाता है। गोमती के तट पर मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने रामेश्वरम की स्थापना की थी।